- हर साल पानी की उपलब्धता कम हो रही है जोकि चिंता का विषय : निदेशक डी.सी. राणा
शिमला: जलवायु परिवर्तन पर पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने शिमला में विभिन्न विभागों के साथ 3 दिन की कार्यशाला का आयोजन किया। जिसमें कई वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन पर अपने विचार सांझा किए। वहीं कार्यशाला के दौरान वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के नुकसान और उससे निपटने के लिए क्या किया जाए, इसको लेकर अपने-अपने विचार जहां सांझा किए वहीं जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपने सुझाव भी दिए। प्रदेश में ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदी-नालों में जलस्तर तो बढ़ रहा है लेकिन भविष्य में पानी की कमी हो सकती है। जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए लोगों को अभी से तैयार होना पड़ेगा और बारिश का पानी स्टोर करना होगा। प्रदेश में पिछले 18 वर्षों में करीब 20 मीटर ग्लेशियर कम हुए हैं जोकि चिंता का विषय है। विभाग स्नो हार्वेस्टिंग पर भी काम कर रहा है ताकि ग्लेशियर बच सकें।
पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के निदेशक डी.सी. राणा ने बताया कि क्लाइमेट चेंज के कारण कृषि, बागवानी, पानी, वन और प्रकृति पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है, जिसमें पानी एक बहुत बड़ा संकट है। हर साल पानी की उपलब्धता कम हो रही है जोकि चिंता का विषय है। तापमान में बढ़ौतरी हो रही, जिससे प्राकृतिक स्त्रोत भी खत्म हो रहे हैं। इससे कृषि और बागवानी पर भी बुरा असर पड़ रहा है। इस समस्या से कैसे निपटा जाए इसको लेकर वैज्ञानिकों के साथ विभागों के अधिकारियों ने चर्चा की है ताकि भविष्य में नुक्सान को कम किया जा सके।