“परिवार” बच्चों के व्यक्तित्व विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी

“परिवार” बच्चों के व्यक्तित्व विकास की महत्वपूर्ण कड़ी

“किड्स विशेष” अपने इस कॉलम में हम बच्चों के बेहतर भविष्य के बारे में आपको कुछ जानकारी देने जा रहे हैं। कि किस प्रकार बच्चों के लिए अभिभावकों को उनके बेहतर भविष्य के लिए विशेष बातों का ख़ास ध्यान देना आवश्यक होता है। बच्चों को सामाजिकता सिखाने के लिए आपको ही पहल करनी होती है। कभी आपने ध्यान दिया कि आस-पड़ोस में आपके मित्रों की तुलना में आपके बच्चों के मित्रों व परिचितों की संख्या ज्यादा होती है, क्योंकि बच्चे जल्दी दूसरों को अपना मित्र बना लेते हैं यह उनके व्यक्तित्व विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।

बच्चों को सामाजिकता सिखाने के लिए आपको ही पहल करनी होगी। छोटे बच्चे तो शीघ्र ही मित्र बना लेते हैं लेकिन बड़ा होते-होते वे सकुचाने लगते हैं। ऐसे में दोस्ती करने के लिए उन्हें किसी बिचौलिए की आवश्यकता हो सकती है। यह भूमिका आप ही निभाएं तो बेहतर होगा।

बच्चे के प्रत्येक कार्य, हाव-भाव, व्यवहार व स्वभाव में उसके परिवार की शैली झलकती है। यदि उसे बचपन से ही उचित प्रशिक्षण दिया जाए तो वह व्यवहार कुशल बन सकता है। बच्चों को बचपन से ही आपस में मिलबांट कर खाने की आदत डालें। उसे जब भी खाने की कोई वस्तु दें तो सभी सदस्यों में वितरित करने को कहें। इस तरह बच्चे को पता चलेगा कि मिलबांट कर खाना एक गुण है।

“परिवार” बच्चों के व्यक्तित्व विकास की महत्वपूर्ण कड़ी

“परिवार” बच्चों के व्यक्तित्व विकास की महत्वपूर्ण कड़ी

अगर आपका बच्चा अकेला है तो आपको विशेष रूप से ध्यान देना होगा क्योंकि अकेले बच्चे प्राय: सामाजिक नहीं होते। उसे समय-समय पर दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने व समय बिताने का अवसर दें। उस समय उसके साथ न रहें ताकि वह दूसरे बच्चों से स्वयं ही संपर्क स्थापित करें। कुछ ही दिन में उसे समुह के साथ खेलने में आनंद आने लगेगा।

प्लीज़, थैंक्यू, सॉरी-तीन सुनहरे शब्द हैं। यह शब्द भले ही औपचारिक हों परन्तु दूसरों पर इसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। यदि आप स्वयं इन शब्दों का प्रयोग करेंगे तो बच्चा खुद-ब-खुद इन्हें सीख जाएगा।

घर में अपने बच्चों के साथ भी शिष्टता से पेश आएं। बच्चे सदा बड़ों का अनुकरण करते हैं। वे भी स्वयं तमीज़ से बात करने लगेंगे और इसे सिखाना नहीं पड़ेगा।

गुड मैनर्स व गुड हैबिट्स सिखाने के लिए बचपन से ही कोशिश करनी होगी। बच्चों को अपने रिश्तेदारों के समारोहों में अवश्य ले जाएं। अंकल-आंटी संस्कृति में पलने वाले बच्चे मामा-मामी, ताऊ-ताई व मौसा-मौसी आदि संबोधन भूल गए हैं। बच्चों को इन रिश्तों की आत्मीय डोर से बांधें और किसी भी समारोह में उनसे परिचित करवाएं। किसी के भी घर जाने से पहले बच्चों को सिखा दें कि उन्हें वहां कैसा व्यवहार करना है क्योंकि प्राय: बच्चे दूसरों के घर जाकर ज्यादा ही उदंड हो जाते हैं। ऐसे में आपका सामाजिक दायरा भी कट सकता है। बच्चों को दूसरों के घरों में हुड़दंग न मचाने दें। अगर वे पड़ोस के बच्चों से लड़ते-झगड़ते हैं तो उन बच्चों की मांओं से बहसबाजी करने की बजाए बच्चों को समझाएं। यदि वे उस समय न भी माने तो कुछ समय बाद फिर एक हो जाएंगे परंतु आपके बिगड़ेसंबंधों में सुधार लाना कठिन हो सकता है। अत: बच्चे को जीवन में सफल बनाने के लिए सामाजिक बनना सिखाएं।

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