होलिका दहन कब; और क्या है शुभ मुहूर्त समय, जानें पूजा विधि एवं कथा : आचार्य महिन्दर शर्मा
होलिका दहन कब; और क्या है शुभ मुहूर्त समय, जानें पूजा विधि एवं कथा : आचार्य महिन्दर शर्मा
रविवार, 24 मार्च 2024 को होलिका दहन
होली सोमवार, 25 मार्च 2024 को
हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के बाद अगली सुबह को गुलाल और रंगों से लोग सराबोर होने लगते हैं। होलिका दहन का रिवाज कई सालों से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है। जिसके अनुसार होली के एक महीने पहले माघ पूर्णिमा वाले दिन गुल्लर के पेड़ की टहनी को मोहल्ले के चौराहे के बीच में लगा दिया जाता है। इसके बाद फाल्गुन पूर्णिमा पर लोग मिलकर लकड़ियां एकत्र कर होलिका दहन करते हैं। होलिका दहन करने से पहले विधिवत पूजा की जाती है और दहन का शुभ मुहूर्त देखा जाता है फिर होलिका को अग्नि दी जाती है।
कालयोगी आचार्य महिन्दर शर्मा के अनुसार आज भद्रा रात 10 बजकर 27 मिनट पर खत्म हो जाएगी, फिर इसके बाद होलिका दहन किया जा सकता है। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त आज रात 11 बजकर 15 मिनट से मध्य रात्रि 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगा। आज रात को होलिका दहन का त्योहार मनाया जाएगा। इस बार होलिका दहन पर भद्रा का साया रहेगा जिसके कारण भद्रा के खत्म होने के बाद ही होलिका जलेगी। पंचांग के मुताबिक भद्रा आज सुबह 09 बजकर 24 मिनट से शुरू हो गई थी, जो रात 10 बजकर 27 मिनट पर समाप्त होगी। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 15 मिनट से आधी रात को 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।
पूजा विधि: पूजा के लिए इस दिन जल, रोली, फूल माला, चावल, गुड़ और नई पकी फसल के पौधों की बालियां रखें। होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के समय चार मालाएं होलिका को अर्पित की जाती है। इससे आपको सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके बाद तीन या सात बार होलिका की परिक्रमा करनी चाहिए।
उक्त मन्त्र आप सभी कर सकतें हैं जाप
ॐ ह्लिम ॐ
ॐ क्लीं ॐ ऐं बज्र स्वयं सिद्ध
पैसों के लिए : ॐ लं लं लक्ष्मये ऐं श्री नमः
सर्वार्थ सिद्धि योग – 24 मार्च सुबह 7.34 से 25 मार्च सुबह 6.19 बजे तक
रवि योग – सुबह 6.20 बजे से 25 मार्च सुबह 7.34 बजे तक
वृद्धि योग – 24 मार्च रात 8.34 से 25 मार्च रात 9.30 तक
धन शक्ति योग – होली पर कुंभ राशि में मंगल और शुक्र की युति से धन शक्ति योग बन रहा है।
त्रिग्रही योग – शनि, मंगल, शुक्र होली पर कुंभ राशि में रहेंगे, जो कि बढि़या योग है।
बुधादित्य योग – होली पर इस बार सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग भी बन रहा है। इससे व्यक्ति व्यापार, शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में सफलता पाता है।
कथा:- एक बार एक राजा हिरण्यकश्यप था। उसने भगवान शिव की पूजा की और वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई नहीं मार सकता। भगवान शिव ने उसे वरदान दिया कि उसे कोई भी देवता, भगवान या मनुष्य नहीं मार सकता, उसे घर के अंदर या बाहर नहीं मारा जा सकता, उसे रात में या दिन में नहीं मारा जा सकता। यह वरदान मिलने के बाद, हिरण्यकश्यप ने सोचा कि यह अपरिहार्य है और वह अभिमान से भर गया। उसने सभी को केवल उसकी पूजा करने के लिए कहा, भगवान विष्णु या किसी अन्य देवता की नहीं। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। उसके पिता ने उसे भगवान विष्णु की पूजा न करने के लिए कहा लेकिन उसने जारी रखा। अब हिरण्यकश्यप इतना क्रोधित हो गया कि उसने अपने ही बेटे प्रह्लाद को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उसने प्रह्लाद को मारने की कई बार कोशिश की लेकिन वह असफल रहा. एक दिन उसने अपनी बहन होलिका को इसके बारे में कुछ करने के लिए बुलाया. होलिका का शरीर अग्निरोधी था। वह चिता में बैठ गई और प्रह्लाद को अपनी गोद में ले लिया। प्रह्लाद जप करता रहा और जल्द ही होलिका आग में जल गई और प्रह्लाद बच गया। बाद में भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध किया। इसीलिए होली को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।
राधा-कृष्ण के शाश्वत प्रेम का होली के प्रारंभिक इतिहास में विभिन्न लोक कथाओं और पुराणों में भी है, इस उत्सव के दौरान, लोग एक-दूसरे पर रंग लगते हैं और साथ में मिलकर मिठाई खाते हैं। यह भगवान कृष्ण और राधा रानी के प्रेम की कहानी है। जब कृष्ण वृंदावन में रहते थे तो वे राधा से प्रेम करते थे। कृष्ण अपने काले-नीले रंग को लेकर असुरक्षित थे जबकि राधा का रंग गोरा था। उनकी माँ ने उन्हें राधा को जो भी रंग पसंद हो, रंगने के लिए कहा। भगवान कृष्ण ने अपना प्रेम दिखाने के लिए राधा को अपने रंग में रंग दिया। राधा पहले से ही कृष्ण से प्रेम करती थीं। तब से उनके प्रेम को हर साल होली पर रंगों और खुशियों के साथ मनाया जाता है।
सबसे पहले माता होलिका की विधिवत तथा शास्त्रवत पूजा होती है। भक्त प्रहलाद की कथा होती है। सम्मत में शुद्ध हवन सामग्री भी डाली जाती है। कपूर तथा चंदन की कुछ लकड़ी भी होती है। सब लोग फिर सामूहिक भक्ति गीत गाकर होलिका माता को प्रसन्न करते हैं। इस दिन अपनी किसी एक न एक बुराई को दहन अर्थात समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए। फिर सामूहिक फाल्गुन गीत होता है। अबीर तथा गुलाल लगा के एक दूसरे से गले मिलते हैं।
होलिका दहन की रात्रि में करें ये काम
आज की रात्रि अपने वजन के बराबर अन्न दान करें। गरीब जनों में वस्त्र तथा भोजन बाटें। निर्धन जन के बच्चों में खिलौने तथा अबीर गुलाल बांटने से कभी धन की कमी नहीं आती तथा अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
होलिका दहन की रात्रि में श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करना चाहिए। इस रात्रि संकट से परेशान लोग सुंदरकांड का पाठ करें। होलिका दहन की रात्रि में कई तांत्रिक सिद्धियां भी प्राप्त की जा सकती हैं बंगलामुखी अनुष्ठान भी किया जा सकता है। शनि की साढ़ेसाती से या शनि की महादशा से प्रभावित जन शनि के बीज मंत्र का जप करें तथा हनुमान जी की विधिवत पूजा करें।