- रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग भूमि की उर्वरकता को कर रहा समाप्त : राज्यपाल
- रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों को निपटाया जा सकता है प्राकृतिक खेती से
धर्मशाला : किसानों को बचाने तथा उनकी आय को दोगुना करने का एकमात्र समाधान शून्य लागत प्राकृतिक खेती है। इस प्रणाली के अन्तर्गत किसानों को एक भी पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है, बल्कि बंजर भूमि को पुनर्जीवित करने, पानी का न्यूनतम उपयोग, स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित उत्पादन, पर्यावरण बचाने जैसे अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने बुधवार को कांगड़ा जिले के धर्मशाला में राष्ट्रीय कैडेट कॉर्पस कम्पनी, 5 एचपी तथा कृषि विभाग द्वारा शून्य लागत प्राकृतिक खेती के तहत आयोजित जागरूकता शिविर में बोल रहे थे। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री किशन कपूर भी इस अवसर पर बतौर विशेष अतिथि उपस्थित रहे। कांगड़ा, मण्डी, हमीरपुर तथा बिलासपुर जिलों से एनसीसी की तीन शाखाओं ने शिविर में भाग लिया।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के बावजूद आज उत्पादन गिर रहा है और फल पौधों पर भारी रासायनिक स्प्रे के कारण ये लम्बे समय तक टिकाऊ नहीं रह पाते। इससे स्पष्ट है कि भूमि की उर्वरकता खराब हो रही है और पौधों की प्रतिरोधी क्षमता भी कम हो गई है। उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों को प्राकृतिक खेती से निपटाया जा सकता है।
उन्होंने मिशन को गम्भीरतापूर्वक लेने तथा किसान समुदाय के कल्याण के लिए प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के अन्तर्गत पहली बार 25 करोड़ रुपये के बजट प्रावधान के लिए राज्य सरकार को बधाई दी।
इस अवसर पर राज्यपाल ने युवाओं को नशे की लत से दूर रहने तथा हिमाचल को नशामुक्त बनाने का संकल्प लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि नशीली दवाओं ने हमारी स्मरण शक्ति, रचनात्मकता, कौशल को मार दिया है और आशा व्यक्त की कि सामूहिक प्रयासों के साथ नशे जैसी बुराई के विरूद्ध जंग को जीतना सम्भव है।