कुछ दिन बवाल फिर चुप्पी...

कुछ दिन बवाल फिर चुप्पी…

  • पीड़ाजनक दौर से गुजर रही हैं देश की बेटियां…कुछ दिन बवाल और फिर चुप्पी
  • पीड़ाजनक दौर से गुजर रही हैं देश की बेटियां…कुछ दिन बवाल और फिर चुप्पी
  • कब देश की बेटियां अपने आपको महसूस करेंगी…. “सुरिक्षत”?
  • रोज कहीं न कहीं कोई मासूम हो रही दरिन्दगी का शिकार….
  • कुछ दिन बवाल जरुर होता है लेकिन फिर चुप्पी…
  • भले ही हम विकास की बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल कर गौरवान्वित हो लें, लेकिन जिस दिन भी दुखी किसी एक भी बेटी की आह लग गई न तो विकास से विनाश होते भी देर नहीं लगेगी
  • जिस देश आकर विदेशी सैलानी भी खुद को महफूज समझतीं थीं, आज उसी देश की बेटियां अपने ही घर सुरक्षित नहीं…..
  • सरकार को अब तो जाग जाना चाहिए बेटियों की सुरक्षा को लेकर गम्भीरता से सोचने और जल्द से जल्द सख्त कानून बनाने के लिए निर्णय लेने की जरूरत है। ताकि कोई भी बेटी अपने घर अपने गांव, अपने शहर अपने देश में खुद को असहज न महसूस करे। बहुत आवश्यक है “सख्त कानून” और “जल्द ऐसे संवेदनशील मामलों का निपटारा”।

बेटी माँ की कोख में भी सुरक्षित नहीं उसके बाद परिवार, आस-पड़ोस, गाँव, फिर शहर… कहीं भी सुरक्षित नहीं। इससे शर्मनाक क्या हो सकता है कि घरों में सभी लोग देवी काली, दुर्गा माँ, और नवरात्रों में छोटी-छोटी कन्याओं की पूजा तो करते हैं परन्तु बावजूद इसके उन्हीं देवीस्वरूप मासूम बच्चियों व महिलाओं के साथ घिनौना कुकृत्य करते हुए बाज नहीं आते। यह भारत देश किस और जा रहा है? ऐसी तो कभी हमारे देश की छवि न थी। जिस भारत देश में विदेशों से अकेले ही आने वाली महिला सैलानी भी खुद को महफूज समझतीं थीं आज उसी देश की खुद के घर की बेटियां ही सुरक्षित नहीं है। ऐसे में अब विदेशों में हमारे देश की क्या छवि बन रही है…सब जानते हैं। आखिर कब देश की बेटियां अपने आपको महसूस करेंगी…. “सुरिक्षत”?

दु:खद : देश में आए दिन मासूम बच्चियों, लड़कियों व महिलाओं पर बढ़ती आपराधिक घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं हैं। रोज देश के किसी न किसी कोने से दिल को दहला देने वाले घटनाएं सामने आ रही हैं। कुछ दिन बवाल जरुर होता है लेकिन उसके बाद फिर चुप्पी.. फिर कोई बेटी शिकार होती है फिर वबाल फिर चुप्पी। ये चुप्पी ही तो इन आपराधिक घटनाओं को बढ़ावा देती है। अगर आवाज उठी है तो उसे तब तक न रुकने दिया जाए जब तक गुनाहगार को सख्त से सख्त सजा न मिल जाए। दो दिन के लिए वबाल करके क्या होगा…..

सोशल मीडिया आज सब पर हावी है। फेसबुक और व्हाट्सएप्प से गाँव क्या शहर क्या सब लोग जुड़े हैं। कहीं भी कोई घटना घटित होती है तो सब उस पर अपनी राय, अपना गुस्सा और अपना दुःख जाहिर कर अपनी फर्ज पूरा कर देते हैं। लेकिन उसका क्या फायदा क्या….कुछ नहीं। जब भी कोई आपराधिक घटना घटित होती है वो चाहे किसी महिलाओं के साथ की हो, या फिर किसी अन्य आपराधिक घटना से जुड़ी, उस पर आक्रोश तब तक थमना नहीं चाहिए जब तक कि न्याय की जीत न हो जाए और दोषी को सख्त से सख्त सजा न मिल जाए। ताकि अपराधी अपराध करने की सोच से भी घबराए कि नहीं मुझे ऐसा सोचना भी नहीं है। उसके लिए सड़कों पर उतरना हो तो उतरते हैं, सरकार पर सख्त से सख्त कानून बनाने का दबाव बनाते हैं तब तक जब तक कानून बन न जाए और गुनाहगार को सजा मिल न जाए।

बेटियां न देश में सुरक्षित न प्रदेश में, न घर में सुरक्षित न ही पहरेदारों में….ये बेटियों के लिए कैसी विडंबना है कि जिन्हें मां दुर्गा का रूप मानकर छोटी-छोटी कंजकों के रूप में घर-घर पूजा जाता है वहीं आज इस देश का शायद ही कोई कोना हो जहां बेटियां सुरक्षित हों। आए दिन बेटियों के साथ मासूम बच्चियों के साथ दिल को दहला देने वाली घटनाएं पेश आ रही हैं कि समझ पाना मुश्किल है कि आखिर भरोसा किस पर करें।

  • …आखिर बेटियों पर हो रहे इन कुकर्मों पर कब लगेगा अंकुश?
पीड़ाजनक दौर से गुजर रही हैं देश की बेटियां..

पीड़ाजनक दौर से गुजर रही हैं देश की बेटियां..

एक वक्त था जब हम दूसरे राज्यों में आपराधिक घटनाएं सुनते थे और सहम जाते थे। तब हम और बड़े-बुजुर्ग भगवान और देवी-देवताओं का शुक्रिया अदा करते थे कि हमारा हिमाचल प्रदेश हमारी बहु-बेटियों के लिए बहुत सुरक्षित है। लेकिन हिमाचल जैसे शांत और देवताओं की भूमि कहे जाने वाला प्रदेश आज खुद बेटियों की सुरक्षा को लेकर सवालों के घेरे में खड़ा हो चुका है। बहुत से मामले हर दिन सामने आ रहे हैं जिनसे हिमाचल में भी अब बेटियों की सुरक्षा को लेकर प्रश्न चिन्ह लगने शुरू हो गए हैं। पहरेदारों से लेकर रसूखदारों तक साजिश की सुई घूमती जा रही है। लेकिन अफसोस जो मामले सामने आते हैं उनमें न्याय मिलने में वर्षों गुजर जाते हैं और कुछ मामले दफन हो जाते हैं। बेटी हिन्दू की हो या मुस्लिम की, अमीर की हो या गरीब की, बेटी सिर्फ बेटी होती है और वो बेटी सबकी होती है। उसकी हिफाजत की जानी चाहिए लेकिन अफसोस कुछ दिन खूब बवाल मचता है फिर सब वहीं। फिर कोई दूसरी घटना फिर वबाल फिर कुछ नहीं। ये एक घर, एक परिवार, एक गांव, एक शहर एक प्रदेश की बात नहीं आज ये अपराध पूरे देश का ज्वलंत मुद्दा बन गया है। आखिर बेटियों पर हो रहे इन कुकर्मों पर अंकुश कब लगेगा? सदियों से बेटियां अपराध सहती रहे..आखिर क्यों? पहले बेटियों को बोझ समझा जाता था, लेकिन अब बेटियों को इसलिए माता-पिता संसार में नहीं लाना चाहते क्योंकि उन्हें डर सताने लगा है कि हमारी गुड़िया पता नहीं घर, पड़ोस, गांव, शहर और देश में सुरक्षित है भी या नहीं। आज हर मां-पिता जिनके घर बेटियां हैं वो कहीं न कहीं डर के साये में जरूर जी रहा है कि हमारी मासूम बच्चियों को कभी कोई आंच न पहुंचे।

  • आओ आज कसम ये खाएं.. सख्त से सख्त कानून बने, एक स्वर में ये आवाज उठाएं

बेटियों पर बढ़ती आपराधिक घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। रूह को कंपा देने वाली घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं। किस-किस घटना का क्या-क्या जिक्र। बस अब इन घटनाओं को अंजाम देने वालों को सजा-ए-मौत या फिर इतनी खौफनाक सजा कि हर अपराधी अपराध करने की सोच रखते हुए भी घबराए। सिर्फ सड़कों पर कैंडल मार्च कर या फिर फेसबुक और वाट्सएप पर अपना गुस्सा जाहिर करने का वक्त नहीं है अब। सख्त से सख्त सजा का कानून बनाने के लिए सरकार को मजबूर करने का वक्त है। जो भी अपराधी हो उसे उसी वक्त सख्त से सख्त सजा दी जाये ताकि मासूम बच्चियों और बेटियों पर हो रहे अत्याचारों की हैवानियत खत्म हो सके। बाहर पढ़ने वाली, घर में रहने वाली और नौकरी करने वाली हर मासूम बच्ची, हर बहु और बेटी सुरक्षित हो। गुनाह करने वाला बख्शा न जाए। किसी मासूम अबला की आबरू से खेला न जाए। आओ आज कसम ये खाएं। सख्त से सख्त कानून बने, एक स्वर में ये आवाज उठाएं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2011 से 2015 के बीच महिलाओं के विरुद्ध अपराध 41.7 प्रतिशत से बढ़कर 53.9 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं। नवजात बच्चियों से लेकर 80 साल की वृद्ध महिला तक यौन हिंसा की शिकार हो रही हैं।

राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2015 के दौरान देश में बलात्कार के 34,651 दर्ज किए गए। लेकिन महिला सुरक्षा को लेकर काम कर रहे लोग इसे सही नहीं मानते। उनके अनुसार बलात्कार के असल मामले इस आंकड़े से भी अधिक होंगे, लेकिन सुरक्षा की कमी और सामाजिक ताने-बाने के चलते कई बार महिलाएं सामने नहीं आती।

  • बेटियों को सुरिक्षत भविष्य दें महिलाओं का सम्मान करें

मतलब आंकड़ों पर नजर दौडाएं तो महिलाओं के विरुद्ध आपराधिक घटनाएं बढ़ी ही हैं जो कि बेहद चिंता का विषय है। बेटी माँ की कोख में भी सुरक्षित नहीं उसके बाद परिवार, आस-पड़ोस, गाँव फिर शहर कहीं भी सुरक्षित नहीं। इससे शर्मनाक क्या हो सकता है कि घरों में पूजा दुर्गा, काली और नवरात्रों में छोटी-छोटी कन्याओं की और बलि, हरण और रेप भी इन्हीं का। धर्म, संस्कार, पूजा-पाठ एक दिन करने से पाप नहीं खत्म हो जाते। इनके लिए मन में सदैव अच्छे संस्कारों और अच्छे कर्मों का होना और किया जाना आवश्यक है। बहुत ही दुखद और पीड़ाजनक दौर से हम और हमारा देश गुजर रहा है। अगर समय रहते हम सचेत नहीं हुए और इन आपराधिक घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कानून नहीं बनाया गया तो भले ही हम विकास की बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल कर गौरवान्वित हो लें, लेकिन जिस दिन भी दुखी किसी एक भी बेटी की आह लग गई न तो विकास से विनाश होते भी देर नहीं लगेगी।

सरकार को अब तो जाग जाना चाहिए बेटियों की सुरक्षा को लेकर गम्भीरता से सोचने और जल्द से जल्द सख्त कानून बनाने के लिए निर्णय लेने की जरूरत है। ताकि कोई भी बेटी अपने घर अपने गांव, अपने शहर अपने देश में खुद को असहज न महसूस करे। बहुत आवश्यक है “सख्त कानून” और “जल्द ऐसे संवेदनशील मामलों का निपटारा”।

  • बेटियों को सुरिक्षत भविष्य दें महिलाओं का सम्मान करें।
  • जय हिन्द जय भारत।

 

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