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यादें
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अल्हड़-रोमांटिक अभिनेता शम्मी कपूर।
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शम्मी कपूर रंगमंच के जाने-माने अदाकार और फ़िल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के थे दूसरे बेटे।
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‘तुम सा नहीं देखा’ ने शम्मी को पहचान।
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मनचाही सफलता मिली ‘जंगली’ से।
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शम्मी ने अल्हड़-रोमांटिक अभिनेता की जो छवि निर्मित की, वह आज भी लोगों के जेहन में है ताजा।
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उमंग और उत्साह के भाव को रुपहले पर्दे पर बेहद रोमांटिक अंदाज में पेश किया।
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शम्मी कपूर अपनी विशिष्ट शैली ‘याहू’ के लिए बेहद रहे लोकप्रिय।
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1961 में फ़िल्म ‘जंगली’ की सफलता के साथ ही पूरा दशक उनकी फ़िल्मों के नाम रहा।
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1968 में फ़िल्म ‘ब्रह्मचारी’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।
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1982 में ‘विधाता’ फ़िल्म के लिए श्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला
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1995 में फ़िल्म फेयर लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला।
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1999 में ज़ी सिने लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किये गये।
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2001 में स्टार स्क्रीन लाइफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजे गये।
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वर्ष 2004 में दादा साहब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया।
बॉलीवुड के ‘बिंदास ब्यॉय’ शम्मी कपूर रुपहले पर्दे का एक ऐसा सितारा थे, जिन्होंने अपनी अद्भुत अभिनय क्षमता से दर्शकों का बेपनाह प्यार पाया। महान फिल्म अभिनेता और थिएटर कलाकार पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी ‘रमा’ मेहरा के दूसरे बेटे शम्मी सच्चे अर्थो में एक रॉकस्टार थे। उनका वास्तविक नाम शमशेर राज कपूर था। पृथ्वीराज कपूर के दो और बेटे शशि कपूर और राज कपूर हैं।
मुंबई में 21 अक्टूबर, 1931 को जन्मे शम्मी कपूर को घर में बचपन से ही फिल्मी माहौल मिला था। युवा होते ही शम्मी भी अभिनेता बनने का ख्वाब देखने लगे। उन्होंने वर्ष 1953 में प्रदर्शित फिल्म ‘जीवन ज्योति’ से बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। इससे पहले शम्मी अपने पिता के साथ थिएटर में काम किया करते थे। ‘जीवन-ज्योति’ बॉक्स आ ऑफिस पर बुरी तरह पिट गई। इसके बाद उन्होंने इसी साल ‘रेल का डिब्बा’, ‘ठोकर’, ‘लैला मजनूं’, व ‘खोज’ आदि फिल्में कीं।
बॉलीवुड के ‘एल्विस प्रेस्ली’ कहलाने वाले शम्मी कपूर अपनी विशिष्ट शैली ‘याहू’ के लिए बेहद लोकप्रिय रहे। उन्होंने उमंग और उत्साह के भाव को रुपहले पर्दे पर बेहद रोमांटिक अंदाज में पेश किया। वह जिस दौर में फिल्मों में आए, तब तक उनके बड़े भाई राज कपूर की मासूमियत और सधा हुआ अभिनय दर्शकों के दिल-दिमाग पर छा चुका था। लेकिन शम्मी ने अल्हड़-रोमांटिक अभिनेता की जो छवि निर्मित की, वह आज भी लोगों के जेहन में ताजा है।वर्ष 1957 में आई फिल्म ‘तुम सा नहीं देखा’ ने शम्मी को पहचान तो दी, लेकिन उन्हें मनचाही सफलता ‘जंगली’ से मिली. उनके डांस करने का एक अलग ही अंदाज था, वह डांस से चाहने वालों का मन मोह लेते थे। उनके करियर की सबसे सुपरहिट फिल्मों में ‘एन इवनिंग इन पेरिस’, ‘चाइना टाउन’, ‘कश्मीर की कली’, ‘जानवर’, ‘जंगली’, ‘तुमसा नहीं देखा’, ‘प्रोफेसर’, ‘दिल तेरा दीवाना’, ‘बह्मचारी’, ‘तीसरी मंजिल’ का नाम शामिल है।
गोरे-चिट्टे और लंबी-चौड़ी कदकाठी के शम्मी को सफल कलाकार बनाने में विख्यात गायक मोहम्मद रफी का बहुत बड़ा योगदान है। रफी साहब ने उनके लिए एक से बढ़कर एक गाने गाए, जिनमें ‘तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे’, ‘जन्म जन्म का साथ है’, ‘एहसान तेरा होगा मुझ पर’, ‘इस रंग बदलती दुनिया में’ और ‘निकला ना करो तुम सजधज कर’ शामिल हैं।
वह अपनी फिल्मों में कभी लंबी टोपी पहनकर शैतानी करते, तो कभी कंबल लपेट कर फुदकते, कभी पहाड़ियों से लुढ़कते हुए ‘याहू’ चिल्लाते, तो कभी विचित्र शक्लों से हीरोइनों को चिढ़ाते. उनकी हर अदा अनूठी और हर बात निराली थी।
शम्मी कपूर और सायरा बानो अभिनीत फिल्म ‘जंगली’ (1961) ने बॉक्स आफिस को हिलाकर रख दिया था और शम्मी रातोंरात ‘स्टार’ बन गए। शम्मी ने अपने जमाने की हर सितारा अभिनेत्री सुरैया, मधुबाला, नूतन, आशा पारेख, मुमताज, साधना, शर्मिला टैगोर, हेमा मालिनी व कल्पना के साथ हिट फिल्में दीं।
फिल्मी पर्दे पर रोमांटिक किरदारों में नजर आने वाले शम्मी असल जिंदगी में भी रोमांटिक और इश्किया मिजाज की वजह से खासे चर्चा में
रहते थे। उन्होंने कभी काहिरा की नादिया गमाल से इश्क फरमाया, तो कभी फिल्म अदाकारा गीता बाली से। उन्होंने गीता बाली को अपनी जीवन संगिनी बना लिया, लेकिन स्मॉलपॉक्स के कारण 1965 में गीता बाली का निधन हो गया। गीता बाली ने उनके साथ 14 फिल्मों में काम किया था। गीता बाली के निधन के बाद उन्होंने 1969 में नीला देवी से शादी की।
अभिनेता रणबीर कपूर के साथ आई ‘रॉकस्टार’ फिल्म उनके करियर की आखिरी फिल्म थी। शम्मी कपूर को फिल्मों में शानदार अभिनय के लिए फिल्मफेयर अवार्ड और बेस्ट एक्टर अवार्ड भी मिले। उन्हें वर्ष 1995 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड और वर्ष 2004 में दादा साहब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया। इस जिंदादिल अभिनेता ने 14 अगस्त, 2011 को मुंबई में अंतिम साँस ली।
शम्मी कपूर का जन्म 21 अक्टूबर, 1931 को हुआ। वह हिंदी सिनेमा के 1950-60 के दशक में सदाबहार अभिनेता थे। शम्मी का वास्तविक नाम शमशेर राज कपूर था। अपनी विशिष्ट याहू शैली के कारण बेहद लोकप्रिय रहे हिंदी फ़िल्मों के पहले सिंगिंग-डांसिग स्टार शम्मी कपूर रंगमंच के जाने-माने अदाकार और फ़िल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के दूसरे बेटे थे।
शम्मी कपूर एक महान फ़िल्म अभिनेता और थिएटर कलाकार पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी ‘रमा’ मेहरा के दूसरे पुत्र थे। पृथ्वीराज कपूर के दो और बेटे शशि कपूर और राजकपूर थे। शम्मी कपूर के परिवार में पत्नी नीला देवी, बेटा आदित्य राज और बेटी कंचन देसाई हैं।
शम्मी कपूर ने वर्ष 1953 में फ़िल्म ‘ज्योति जीवन’ से अपनी अभिनय पारी की शुरुआत की। वर्ष 1957 में नासिर हुसैन की फ़िल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ में जहां अभिनेत्री अमिता के साथ काम किया वहीं वर्ष 1959 में आई फ़िल्म ‘दिल दे के देखो’ में आशा पारेख के साथ नजर आए। बॉलीवुड के लिहाज़ से हालांकि वह बहुत सुंदर अभिनेता तो नहीं थे बावजूद इसके शम्मी कपूर अपने अभिनय क्षमता के बल पर सबके चहेते बने। वर्ष 1961 में आई फ़िल्म ‘जंगली’ ने शम्मी कपूर को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। इस फ़िल्म के बाद ही वह सभी प्रकार की फ़िल्मों में एक नृत्य कलाकार के रूप में अपनी छवि बनाने में कामयाब रहे। ‘जंगली’ फ़िल्म का गीत ‘याहू’ दर्शकों को खूब पसंद आया। उन्होंने चार फ़िल्मों में आशा पारेख के साथ काम किया जिसमें सबसे सफल फ़िल्म वर्ष 1966 में बनी ‘तीसरी आंख’ रही। वर्ष 1960 के दशक के मध्य तक शम्मी कपूर ‘प्रोफेसर’, ‘चार दिल चार राहें’, ‘रात के राही’, ‘चाइना टाउन’, ‘दिल तेरा दीवाना’, ‘कश्मीर की कली’ और ‘ब्लफमास्टर’ जैसी सफल फ़िल्मों में दिखाई दिए। फ़िल्म ‘ब्रह्मचारी’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी मिला था।
‘भारत के एल्विस प्रेसली’ कहे जाने वाले शम्मी कपूर रुपहले पर्दे पर तब अपने अभिनय की शुरुआत की, जब उनके बड़े भाई राज कपूर के साथ ही देव आनंद और दिलीप कुमार छाए हुए थे। पारिवारिक पृष्ठभूमि होने के बावजूद शम्मी का फ़िल्म जगत में प्रवेश ‘रेल का डिब्बा’ में मधुबाला, ‘शमा परवाना’ में सुरैया और ‘हम सब चोर हैं’ में नलिनी जयवंत के साथ अभिनय करने के बावजूद शुरुआत में सफल नहीं रहा। उनकी शुरुआती फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रहीं। उन्होंने पचास के दशक में ‘डक-टेल’ शैली में अपने बाल कटवाकर ‘तुमसा नहीं देखा’ के साथ खुद को नए लुक में पेश किया। उसके बाद उन्हें सफलता मिलती गई। 1961 में फ़िल्म ‘जंगली’ की सफलता के साथ ही पूरा दशक उनकी फ़िल्मों के नाम रहा। दर्शकों के बीच उनकी अपील ‘सुकू सुकू’, ‘ओ हसीना जुल्फों वाली’, ‘आज कल तेरे-मेरे प्यार के चर्चे’ और ‘आ जा आ जा मैं हूं प्यार तेरा’ जैसे गानों के चलते थी, जिनमें उन्होंने बड़ी ही मस्तमौला शैली में थिरकते हुए अदायगी दी। हालांकि, ‘कश्मीर की कली’, ‘राजकुमार’, ‘जानवर’ और ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ जैसी कुछ फ़िल्मों में उनकी अभिनय क्षमता पर सवाल उठे लेकिन ‘जंगली’, ‘बदतमीज’, ‘ब्लफ मास्टर’, ‘पगला कहीं का’, ‘तीसरी मंजिल’ और ‘ब्रह्मचारी’ की बेहतरीन सफलता के जरिए शम्मी ने अपने आलोचकों के मुंह बंद कर दिए।
शम्मी कपूर ने अपनी फ़िल्मों में बग़ावती तेवर और रॉकस्टार वाली छवि से उस दौर के नायकों को कई बंधनों से आज़ाद कर दिया था। हिंदी सिनेमा को ये उनकी बड़ी देन थी, ये बात और है कि उनके जैसे किरदार दूसरा कोई नहीं निभा पाया। शम्मी कपूर बड़े शौकीन मिज़ाज थे। इंटरनेट की दुनिया में आगे रहते थे, तरह-तरह की गाड़ियाँ चलाने का शौक़ वे रखते थे, शाम को गोल्फ़ खेलना, समय के साथ चलना वे बख़ूबी जानते थे। फ़िल्मों में शम्मी कपूर जितने ज़िंदादिल किरदार निभाया करते थे, उतनी ही ज़िंदादिली उनके निजी जीवन में दिखती थी। उनके जीवन में कई मुश्किल दौर भी आए ख़ासकर तब जब 60 के दशक में उनकी पत्नी गीता बाली का निधन हो गया। तब वे अपने करियर के बेहद हसीन मकाम पर थे। शम्मी कपूर के क़दम तब कुछ ठिठके ज़रूर थे पर फ़िल्मी पर्दे के रंगरेज़ शम्मी अपने उसी अंदाज़ में अभिनय से लोगों को मदमस्त करते रहे।
उस समय कपूर खानदान में एक अघोषित-सा नियम था कि फिल्म एक्ट्रेस से कोई शादी नहीं करेगा। इसलिए शम्मी और गीता बाली थोड़ा डरे हुए थे। उम्र में भी गीता, शम्मी से बड़ी थी और उस जमाने में इसे बेमेल जोड़ी माना जाता था। प्यार किया तो डरना क्या तर्ज पर शम्मी-गीता ने पहली मुलाकात के लगभग चार महीने बाद मुंबई के एक मंदिर में शादी कर ली और उसके बाद ही अपने परिवार को बताया। थोड़े दिन शम्मी और उनके घरवालों के बीच अबोला रहा, लेकिन बाद में सब कुछ सामान्य हो गया। शम्मी अपनी पत्नी को बेहद चाहते थे। शादी के बाद बेटा आदित्य राज कपूर और बेटी कंचन का जन्म हुआ। आदित्य राज कपूर ने भी फिल्म इंडस्ट्री में आने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। बेटी कंचन की शादी मनमोहन देसाई के बेटे केतन देसाई से हुई।
1965 में चेचक की वजह से गीता बाली की मृत्यु हो गई जिसका शम्मी को गहरा झटका लगा। उन्होंने अपने आप पर ध्यान देना छोड़ दिया। वजन बहुत बढ़ गया और इससे बतौर हीरो उनका करियर भी प्रभावित हुआ। शम्मी के बच्चे छोटे थे, इसलिए घर वालों ने दूसरी शादी का दबाव बनाया। शम्मी बमुश्किल राजी हुए। गीता की मृत्यु के चार वर्ष बाद 1969 में उन्होंने भावनगर की रॉयल फैमिली की नीला देवी से शादी की। शम्मी कपूर की जिंदगी में दो पत्नियां आईं। गीता बाली और नीला देवी। गीता बाली और शम्मी के नैन टकराए थे ‘रंगीला रतन’ फिल्म निर्माण के दौरान। बात 1955 की है। शम्मी और गीता एक-दूसरे को पसंद करने लगे। शम्मी ने गीता के सामने शर्त रखी कि वे मां नहीं बनेंगी। उन्हें गीता के बच्चों को ही पालना होगा। नीला देवी मान गई। वे ताउम्र अपने बच्चों की मां नहीं बनी और गीता के बच्चों को ही अपना माना। शम्मी और नीला का यह त्याग उल्लेखनीय है।
बढ़ते मोटापे के कारण शम्मी कपूर को बाद में फ़िल्मों में मुख्य भूमिकाओं से हटना पड़ा, लेकिन वे चरित्र अभिनेता के रूप में फ़िल्मों में काम
करते रहे। उन्होंने ‘मनोरंजन’ और ‘बंडलबाज’ नामक दो फ़िल्मों का निर्देशन भी किया, लेकिन ये फ़िल्में नहीं चली। चरित्र अभिनेता के रूप में शम्मी कपूर को 1982 में ‘विधाता’ फ़िल्म के लिए श्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला। शम्मी कपूर एक लोकप्रिय अभिनेता ही नहीं हरदिल अजीज इंसान भी थे।सन 1968 में फ़िल्म ‘ब्रह्मचारी’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी मिला था। चरित्र अभिनेता के रूप में शम्मी कपूर को 1982 में ‘विधाता’ फ़िल्म के लिए श्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला।अपनी ख़ास ‘याहू’ शैली के कारण बेहद लोकप्रिय रहे शम्मी कपूर ने 14 अगस्त, 2011 को मुंबई के ब्रीज कैंडी अस्पताल में सुबह 5:41 बजे अंतिम सांस ली। बॉलीवुड फ़िल्मों में अपने विशिष्ट नृत्य और रोमांटिक अदाओं से अभिनेत्रियों का दिल जीतने वाले दिग्गज कलाकार शम्मी कपूर अपने पीछे ऐसी शैली छोड़ गये हैं, जिसे उनके प्रशंसक हमेशा याद रखेंगे।