लोकसभा चुनाव: हिमाचल प्रदेश में अभी तक 15 प्रत्याशियों ने भरे अपने नामांकन

“चुनावी जंग हुई तेज, ढोंगी प्रत्याशियों से मतदाता करें परहेज

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शिमला नगर निगम चुनावों को लेकर पार्टियां पूरी तरह जुट चुकी हैं। पार्टियों के दिग्गज नेता भी अपनी पार्टी हेतु वोट की अपील के लिए डोर-टू-डोर जा रहे हैं। शिमला में इन दिनों नगर निगम चुनावों के चलते माहौल कुछ मेले सा हो गया है। जिधर देखो पार्टी के प्रत्याशी, कार्यकर्ता, अब तो दिग्गज नेता भी प्रचार की कमान संभाले मिल रहे हैं। भाजपा, कांग्रेस और माकपा जी-तोड़ कोशिश में लगे हैं और लोगों से बार-बार अपने प्रत्याशियों के लिए हाथ जोड़े वोट की अपील कर रहे हैं। मेरे विचार मेरे अपने हैं मुझे कल ही पार्टी के कुछ लोग मिले और कहा इस बार हमारे वार्ड में बदलाव होना चाहिए। हमारे प्रत्याशी को भी अवसर मिलना चाहिए कार्य करने का। हालांकि उनके प्रत्याशी को नाम से मैंने आज तक नहीं जाना। शक्ल से देखा तो पता चला कि ये शख्स हैं जिनके लिए जनाब वोट की अपील कर रहे हैं।

सवाल जो मेरे भीतर चल रहा है वो यह है कि पार्टी कोई भी हो काम करने वाले को मौका जरूर मिलना चाहिए। लेकिन क्या काम करने वाला व्यक्ति चुनाव जीतकर ही लोगों के लिए काम कर सकता है? उसके सुख-दुख में उसकी परेशानियों में या फिर सामाजिक दायित्वों को निभाने में खड़ा हो सकता है। सडक़ों की समस्या, पानी की किल्लत, ट्रेफिक, बिजली व पार्किंग जैसी समस्याओं को क्या उम्मीदवार चुनाव जीतकर खत्म कर सकते हैं? अगर हां, तो इतने सालों से ये समस्या बहुत पहले ही खत्म हो जानी चाहिए थी।

नए चेहरे उभर रहे हैं मौका मिलना चाहिए, लेकिन आज से पहले उन्होंने किया क्या है? यह जानना भी तो जरूरी है ना। पार्टी का नाम लेकर वोट मांगने चल दिए और सालों से जनाब का पता नहीं था। हैरानी की बात तो है। अगर आपको काम करने का मौका चाहिए तो आज से पहले कहां थे। कुछ तो कभी किया होता, हम तो आपसे मिल भी पहली बार रहे हैं। खैर! अब यह हुआ राजनीति का पहला रंग। अब दूसरे की बात। आजकल हालांकि ऐसा शायद पहले भी काफी होता रहा है लेकिन अब सोशल मीडिया हम लोगों पर ज्यादा हावी है। इसी का ही कमाल कहिए कि आजकल लोग राजनीति में आने के चक्कर में दिग्गज नेताओं के साथ अपनी फोटो टैग करते नजर आ रहे हैं। जिस पार्टी में जाना चाहते हैं वहां के नेताओं के साथ अपनी फोटो खिंचवाकर मौके पर चौके जैसा काम। लेकिन जनाब हैरानी की बात तो यह है कि ये लोग लोगों को बेवकूफ बनाने में कामयाब भी हो रहे हैं। लोग उनके लिए फेसबुक में तारीफों के पुल बांध रहे हैं।

लेकिन वास्तविकता क्या है? यह उनसे बेहतर कोई नहीं जान सकता। हालांकि जो दिखता है वो बिकता है। यहां भी राजनीति का पूरा रंगमंच तैयार है। कहते हैं सच को कहने और सच पर चलने के लिए हिम्मत चाहिए। सच है भाई बहुत हिम्मत चाहिए।

मेरे विचार मेरे निजी हैं किसी को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं। हालांकि मुझे जो आजकल महसूस हो रहा है वो आपसे कहने की, आपको बताने की इच्छा हुई, जो शायद गलत नहीं। क्योंकि सबको अपनी बात कहने का अधिकार है। परन्तु मैं वापस फिर उसी बात पर आ रही हूं कि चुनावी माहौल गर्माया हुआ है। हर कोई अपनी जीत के लिए जी-जान से मतदाताओं को रिझाने में जुटा है। काम करने वाले को मौका जरूर मिलना चाहिए। लेकिन पार्टी के नाम पर और सोशल मीडिया के सहारे खुद को चमका कर नहीं। वास्तविकता के दम पर खुद को खड़ा करें। मतदाताओं की उम्मीदों की कसौटी पर जो खरा उतरे, वो ही मतदाताओं के मत का अधिकारी है व जीत का दावेदार है।

हम मतदाता हैं हमारा एक-एक वोट बहुत कीमती है। हमें बहकावे और उकसाने वाले चापलूस नेतागिरी करने वाले नेताओं से दूर रहना होगा और काम करने वाली पार्टी को जीताना होगा, क्योंकि झूठी उम्मीदें बांधने वाले दगाबाज़ लोग सिर्फ अपना ही फायदा सोच सकते हैं।

प्रत्येक मतदाता का यह कर्तव्य है कि वह मतदान करें और अपने मतदान का सही इस्तेमाल करें। ताकि कुशल उम्मीदवार द्वारा हम अपना देश, अपना प्रदेश, अपना जिला, अपने गांव-शहर को बेहतर, सुदृढ़ व विकासशील बना सकें। जिस तरह से अपने प्रत्याशियों को जीत दिलाने के लिए बड़े नेता कमर कस कर मैदान में उतर चुके हैं, बेहतर होता इतनी ही जी-तोड़ कोशिश लोगों की समस्याओं को सुलझाने में की होती तो शायद अपने आप को साबित करने की इस तरह आवश्यकता न पड़ती। हालांकि हर बार नेताओं द्वारा बड़े-बड़े वायदे करके लोगों को झूठी उम्मीदें बंधाई जाती है। लेकिन चुनाव होने के बाद सारी की सारी उम्मीदें धराशायी होती कई बार देखी गई हैं। ठीक चुनावों के नजदीक बहुत सी घोषणाएं की जाती है। मेनिफेस्टो में बड़े-बड़े वायदे किए जाते हैं लेकिन नेताओं की आपसी राजनीति प्रदेश के विकासात्मक कार्यों में हमेशा आड़े आती रही है। माफिया आए दिन अपने पैर पसार रहा है तो वहीं पानी, ट्रैफिक, वरिष्ठ और कामकाजी महिलाओं के लिए टैक्सी जैसी समस्याएं वहीं के वहीं थमीं हैं। युवाओं, छात्रों के लिए शिक्षा के नाम पर स्कूल, कॉलेज यूनिवर्सिटियां तो खोली जा रही हैं लेकिन उनके भावी भविष्य को लेकर कोई मजबूत दिशा तैयार नहीं की जाती। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि चुनावी मेलों की रौनक में खोने की अपेक्षा हम अपना कीमती वोट पार्टी के नाम पर मांगने वाले और खुद को नेताओं के करीब दर्शाने वाले ढोंगियों को न देकर काम करने वाले व्यक्ति को दें और बेहतर समाज की नींव रखें।

“चुनावों का दौर है हर कोई स्वदेशी है, आजकल जिसे देखो जनता का हितैषी है”।

 

 

्      जय हिंद, जय भारत।

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