हिन्दू विवाह कानून 1995 के बन जाने के बाद एक पति/पत्नी के रहते दूसरा विवाह करना हिंदुओं के लिए अपराध करार दे दिया गया है, जिसके लिए सात साल की सजा दी जा सकती है। हिन्दुओं में विवाह को पवित्र बंधन माना जाता है, जिसे तोड़ा नहीं जा सकता। इससे हिन्दु विधवाओं को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था, लेकिन हिन्दू विवाह अधिनियम ने विधवाओं को दूसरा विवाह करने की अनुमति दी है। पति-पत्नी के बीच तलाक की भी इस अधिनियम में व्यवस्था है।
- कोई भारतीय लडक़ा, जिसने इक्कीस वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो तथा कोई भी लडक़ी, जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी कर ली हो, विवाह कर सकते हैं। विवाह करते समय दोनों पक्षकारों को निम्मलिखित शर्तें पूरी करना आवश्यक है:-
- विवाह के समय लडक़े की कोई जीवित पत्नी नहीं होनी चाहिए।
- विवाह के समय लडक़ी का कोई जीवित पति नहीं होना चाहिए।
- दोनों मानसिक रूप से स्वस्थ होने चाहिए।
- दोनों पक्षकार भारतीय नागरिक होने चाहिए।
दोनें में ऐसी रिश्तेदारी न हो, जो विवाह के लिए वर्जित हो। इन रिश्तों का अधिनियम में विस्तार वर्णन किया गया है। अगर लडक़े-लडक़ी के सम्प्रदाय में कोई खास परम्परा हो, तो इस प्रतिबंधित रिश्ते के नियम का उल्लंघन किया जा सकता है, हां दोनों पक्षों का हिंदू होना जरूरी है।
विशेष विवाह अधिनियम की धारा 5 के अनुसार, विवाह के तीस दिन पहले जिला कलक्टर के कार्यालय में इस आशय का एक आवेदन करना होगा। आवेदन करते समय दोनों पक्षों लडक़ा एवं लडक़ी को विवाह अधिकारी के कार्यालय में उपस्थित होना होगा। इस आवेदन के नब्बे दिन तक कभी भी 7 रूपये का विवाह शु:ल्क जमा करवाकर विवाह किया जा सकता है। आवेदन पांच प्रतियां में प्रस्तुत करना चाहिए। आवेदन के साथ 10-10 रूपए के दो स्टांप पेपर पर शपथ-पत्र प्रस्तुत करना होगा। शपथ-पत्र एवं शैक्षिक योगयता भी प्रस्तुत करनी होगी। इस विवाह आवेदन-पत्र में दोनों पक्षों को अपना नाम, पिता का नाम, स्थायी पता, व्यवसाय, मूल निवास प्रमाण पत्र और विवाह करने की रूचि का वर्णन करना होगा।
विवाह का आवेदन होने पर विवाह अधिकारी सर्वसाधारण को सूचना देने के लिए विवाह से संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक स्थानों पर लगा देता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यदि किसी व्यक्ति को विवाह के गैर-कानूनी तथ्यों की जानकारी हो तो वह विवाह अधिकारी के कार्यालय में सूचना दे सकता है। इसके साथ ही विवाह अधिकारी युवक-युवती के माता-पिता को भी एक नोटिस द्वारा इस शादी के बारे में जानकारी देता है। यदि पक्षकारों के माता-पिता को विवाह पर कोई आपत्ति हो तो वे अपनी आपत्ति विवाह अधिकारी के कार्यालय में दर्ज करवा सकते हैं। कोर्ट मैरिज का प्रमाण-पत्र जारी करने से पहले विवाह अधिकारी दो वयस्क गवाहों के हस्ताक्षर भी करवाता है। अत: विवाह प्रमाण-पत्र लेते समय विवाह अधिकारी के कार्यालय में दो गवाह भी लेकर जाना चाहिए। विवाह प्रमाण-पत्र के जारी होते ही दोनों पक्षकार कानूनी और सामाजिक रूप से पति-पत्नी बन जाते हैं। कोई भी लडक़ा या लडक़ी इस प्रकार के आपसी रिश्ते से विवाह नहीं कर सकते हैं, जो कानून के द्वारा निषिद्ध हो।