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मानहानि के खिलाफ जाने अपने अधिकार : अधिवक्ता रोहन सिंह चौहान

किसी के बारे में झूठा बयान, लिखित या बोला गया, जिससे उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को समाज में नुक्सान हो, मानहानि

अधिवक्ता - रोहन सिंह चौहान

अधिवक्ता – रोहन सिंह चौहान

कहलाता है। मानहानि मुख्यतः किसी व्यक्ति के बारे में झूठ बोलकर समाज में बुरी राय बनाने के लिए की जाती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अनुसार, किसी के बारे में बुरी बातें बोलना, लोगों को अपमानजनक पत्र भेजना, किसी की प्रतिष्ठा गिराने वाली अफवाह फैलाना, अपमानजनक टिप्पणी प्रकाशित या प्रसारित करना। पति या पत्नी को छोड़कर किसी भी व्यक्ति से किसी और के बारे में कोई अपमानजनक बात कहना, अफवाह फैलाना या अपमानजनक टिप्पणी प्रकाशित करना मानहानि माना जा सकता है। जी हाँ इसी विषय पर इस बार हमें जानकारी देने जा रहे हैं शिमला के अधिवक्ता रोहन सिंह चौहान।

मानहानि के प्रकार

  • मृत व्यक्ति को कोई ऐसा लांछन लगाना जो उस व्यक्ति के जीवित रहने पर उसकी ख्याति को नुकसान पहुंचाता हो  और उसके परिवार या निकट संबंधियों की भावनाओं को चोट पहुंचाता हो।
  • किसी कंपनी, संगठन या व्यक्तियों के समूह के बारे में भी ऊपर लिखित बात लागू होती है।
  • किसी व्यक्ति पर व्यंग्य के रुप में कही गई बातें।
  • मानहानिकारक बात को छापना या बेचना।

सच्ची टिप्पणी मानहानि नहीं

  • किसी व्यक्ति के बारे में अगर सच्ची टिप्पणी की गई हो और वह सार्वजनिक हित में किसी लोक सेवक के सार्वजनिक आचरण के बारे में हो अथवा उसके या दूसरों के हित में अच्छे इरादे से की गई हो अथवा लोगों की भलाई को ध्यान में रखते हुए उन्हें आगाह करने के लिए हो तो इसे मानहानि नहीं माना जायेगा।
  • मानहानि के लिए कार्यवाही
  • मानहानि के लिए आप आपराधिक मुकदमा चलाकर मानहानि करने वाले व्यक्तियों और उसमें शामिल होने वाले व्यक्तियों को न्यायालय से दंडित करवा सकते हैं।
  • यदि मानहानि से किसी व्यक्ति की या उसके व्यवसाय की या दोनों को कोई वास्तविक हानि हुई है तो उसका हर्जाना प्राप्त करने के लिए दीवानी दावा न्यायालय में प्रतिवेदन प्रस्तुत कर हर्जाना प्राप्त किया जा सकता है।
  • मानहानि करने वाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए दस्तावेजों के साथ सक्षम क्षेत्राधिकारी के न्यायालय में लिखित शिकायत करनी होगी।
  • न्यायालय शिकायत पेश करने वाले का बयान दर्ज करेगा, अगर आवश्यकता हुई तो उसके एक-दो साथियों के भी बयान दर्ज करेगा।
  • इन बयानों के आधार पर यदि न्यायालय समझता है कि मुकदमा दर्ज करने का पर्याप्त आधार उपलब्ध है तो वह मुकदमा दर्ज कर अभियुक्तों को न्यायालय में उपस्थित होने के लिए समन जारी करेगा।
  • आपराधिक मामले में जहां नाम मात्र का न्यायालय शुल्क देना होता है, वहीं हर्जाने के दावे में जितना हर्जाना मांगा गया है , उसके 5 से 7.50 फीसदी के लगभग न्यायालय शुल्क देना पड़ता है। जिसकी दर अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न है।
  • मानहानि के मामले में वादी को केवल यह सिद्ध करना होता है कि टिप्पणी अपमानजनक थी और सार्वजनिक रुप से की गई थी। उसे यह सिद्ध करने की जरुरत नहीं है कि टिप्पणी झूठी थी।
  • बचाव पक्ष को ही यह साबित करना होता है कि वादी के खिलाफ उसने जो टिप्पणी की थी, वह सही थी।

दुर्भावनापूर्ण अभियोजन से बचाव

अगर किसी निर्दोष व्यक्ति को अभियुक्त बना दिया जाए और वह सिद्ध कर सके कि उसे बदनाम या ब्लैकमेल करने जैसे बुरे इरादे से उसके खिलाफ अभियोग लगाया गया था तो वह अदालत में मामला दर्ज कर अभियोग लगाने वाले से मुआवजा मांग सकता है। यह दावा मानसिक तथा शारीरिक दोनों प्रकार की चोट की भरपाई के लिए हो सकता है। अगर किसी व्यक्ति को बुरे इरादे से सिविल मुकदमे में फंसाया जाए तो वह मामला दर्ज कर मुआवजे की मांग कर सकता है।

मानहानि

भारतीय दंड संहिता की धारा 499- जो कोई भी शब्दों द्वारा, लिखे गए या बोले गए, या संकेत द्वारा या अब्यावेदन द्वारा ऐसे आरोप लगाता है जिससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुक्सान पहुंचेगा, इसे मानहानि कहते हैं।

भारतीय दंड संहिता की धारा 500- मानहानि के लिए 2 साल तक का साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

मानहानि सिद्ध करने के लिए व्यक्ति को निम्नलिखित तथ्य स्थापित करने होंगे

बयान- चाहे बोला गया, लिखा गया,चित्र या इशारे के रूप में।

प्रकाशन-बयान के प्रकाशन होने के लिए किसी तीसरे व्यक्ति का मानहानिकारक बयां को पढ़ना आवश्यक है। अगर बयान का प्रकाशन नहीं है तो प्रतिष्ठा को कोई चोट नहीं है, इसलिए कोई करवाई नहीं की जाएगी।

हानि-बयान मानहानिकारक तभी माना जायेगा जब उस बयान से व्यक्ति की प्रतिष्ठा को समाज में किसी भी प्रकार की चोट पहुंचे।

झूठा-बयान मानहानिकारक बयान गलत होना चाहिए। अगर बयान गलत नहीं है तो ये मानहानिकारक बयान के रूप में नहीं माना जायेगा।

मानहानि से प्रतिरक्षा

सत्य /सही बयान: अगर प्रतिवादी ये साबित कर देता है कि मानहानिकारक बयान सच है तो उस पर कोई कारवाही नहीं की जायेगी। अगर बयान व्यक्ति की प्रतिष्ठा को चोट पहुँचाने के लिए भी लिखा गया हो, लेकिन सच है तो उसे मानहानिकारक बयान नहीं माना जायेगा।

ईमानदारी और वास्तविकता से किया गया बयान: सार्वजनिक हित के लिए निष्पक्ष और वास्तविक टिपणी रखना मानहानि से बचाव के रूप में साबित हो सकती है।

निष्पक्ष बयान के निम्न बिंदु हैं:

बयान केवल आलोचनात्मक हो, तथ्य न हो।

बयान सार्वजनिक हित के लिए हो।

बयान निश्पक्ष और ईमानदार हो।

परिसीमा अधिनियम 1963: इस अधिनियम के अनुसार व्यक्ति को एक साल के भीतर मानहानि के लिए कानूनी कारवाही करनी होगी।

साइबर मानहानि

भारत में व्यक्ति मानहानि के लिए सिविल, अपराधिक और दोनों कानूनों के तहत ज़िम्मेदार हो सकता है। भारतीय दंड संहिता 499 को जब विस्तार से देखा जाए तो इसमें साइबर मानहानि के मामले को भी शामिल किया गया है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 66-ए के तहत

  • कोई भी व्यक्ति जो कंप्यूटर या संचार उपकरण के माध्यम से कोई ऐसे जानकारी भेजता है जो अपमानजनक हो या जिससे व्यक्ति को किसी प्रकार का भी नुक्सान पहुंचे।
  • जो जानकारी गलत हो पर उसे भेजने वाला असुविधा, अपमान, रुकावट, घृणा, धमकाने इत्यादि के उदेश्य्य से किसी कंप्यूटर या संचार उपकरण के द्वारा ऐसे जानकारी लगातार भेजता रहे।
  • इलेक्ट्रॉनिक मेल के द्वारा व्यक्ति को गुमराह करना और मेल की उत्पत्ति के बारे में कोई भी जानकारी न देना।
  • उपयुक्त परिस्थितियों में व्यक्ति को 3 साल तक का कारावास और जुर्माना भी हो सकता है।

साइबर मानहानि मुख्तय: दो भागों में बांटी जा सकती है

1. पहली श्रेणी में वो व्यक्ति ज़िम्मेदार होगा जिसने मानहानिकारक जानकारी प्रकशित की है।

2. दूसरी श्रेणी में इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर को ज़िम्मेदार माना जायेगा जिससे मानाहिकारक जानकारी का प्रकाशन हुआ है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 499 में मानहानि को इस तरह परिभाषित किया गया है

जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य निरूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाएगी। यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी अपवादों को छोड़ कर यह कहा जाएगा कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है।

यहां मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आता है, यदि वह लांछन उस व्यक्ति के जीवित रहने पर उस की ख्याति की अपहानि होती और उस के परिवार या अन्य निकट संबंधियों की भावनाओं को चोट पहुँचाने चाने के लिए आशयित हो। किसी कंपनी,  संगठन या व्यक्तियों के समूह के बारे में भी यही बात लागू होगी। व्यंगोक्ति के रूप में की गई अभिव्यक्ति भी इस श्रेणी में आएगी। इसी तरह मानहानिकारक अभिव्यक्ति को मुद्रित करना, या विक्रय करना भी अपराध है। लेकिन किसी सत्य बात का लांछन लगाना, लोक सेवकों के आचरण या शील के विषय में सद्भावनापूर्वक राय अभिव्यक्ति करना तथा किसी लोक प्रश्न के विषय में किसी व्यक्ति के आचरण या शील के विषय में सद्भावना पूर्वक राय अभिव्यक्त करना तथा न्यायालय की कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग भी इस अपराध के अंतर्गत नहीं आएंगी। इसी तरह किसी लोककृति के गुणावगुण पर अभिव्यक्त की गई राय जिसे लोक निर्णय के लिए ऱखा गया हो अपराध नहीं मानी जाएगी।

मानहानि के इन अपराधों के लिए धारा 500, 501 व 502 में दो वर्ष तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। लोक शांति को भंग कराने को उकसाने के आशय से किसी को साशय अपमानित करने के लिए इतनी ही सजा का प्रावधान धारा 504 में किया गया है।

धारा 505 में किसी भी ऐसे कथन, जनश्रुतिया रिपोर्ट को इस आशय से प्रकाशित करना जिस से तीनों सेनाओं का कोई अफसर या सैनिक विद्रोह करे या अपने कर्तव्य की अवहेलना करे, या जनता या उस के किसी भाग को भय या संत्रास हो और जिस से कोई व्यक्ति राज्य या लोक शांति के विरुद्ध अपराध करने को उत्प्रेरित हो या जिस से व्यक्तियों का कोई वर्ग या समुदाय किसी दूसरे वर्ग या समुदाय के विरुद्ध अपराध करने को उत्प्रेरित हो अपराध घोषित कर तीन वर्ष तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। विभिन्न वर्गों में शत्रुता, घृणा या वैमनस्य पैदा करने की भावनाएं धर्म, मूलवंश, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर पैदा करने और फैलाने वाली अभिव्यक्तिय के प्रकाशन और वितरण करने को भी अपराध घोषित कर इतनी ही सजा का प्रावधान किया गया है। लेकिन किसी बात के सत्य होने का युक्तियुक्त आधार होने पर उसे सद्भावनापूर्वक प्रकाशित करने या वितरित करना अपराध नहीं है। उक्त सभी अभिव्यक्तियों को अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है जो कि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर निर्बंधन हैं।

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3 Responses

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  1. Girish Chandra Swarnkar
    Mar 01, 2016 - 12:00 PM

    Very useful information provided by you. Many many thanks. I like this.
    Thanks with best regards.
    Girish Chandra Swarnkar
    Gangapur city 322201
    Rajasthan.

    Reply
  2. Akash madne
    Dec 30, 2016 - 11:11 PM

    Useful information sir THANK YOU

    Reply
  3. N k jain
    Dec 31, 2016 - 12:54 AM

    Aap se kuch advice chaiyeh hai aap se baat kar sakta hu kya,????

    Reply

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