- देश का हर व्यक्ति अपने कानून और अपने अधिकारों के प्रति हों सजग
बेहतर देश के लिए और अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना हर नागरिक का कर्तव्य है। जरूरी है कि हर देश का हर व्यक्ति अपने कानून और अपने अधिकारों के प्रति सजग हो। अक्सर देखा जाता है कि देश के आम नागरिक जहां कानून तथा अपने अधिकारों की जानकारी के प्रति ज्यादा रूचि नहीं दिखाते, वहीं वे अपने दायित्वों के प्रति भी कोई भूमिका नहीं निभाते हैं। कानूनी अधिकार तथा दायित्वों की जानकारी के अभाव के चलते सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का उन्हें लाभ नहीं मिल पाता है। जबकि देश के आम लोगों के लाभ के लिए ही केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा योजनाएं बनाई जाती हैं।
- जन्म तथा मृत्यु का पंजीकरण बहुत आवश्यक
जानकारियों के अभाव में जहां आम लोग ढुलमुल रवैया अपनाते हैं वहीं सरकारी तथा गैर सरकारी क्षेत्र में कार्यरत एजेंसियां तथा संस्थाएं भी आम नागरिकों को कानून, अधिकार तथा दायित्वों के प्रति जानकारी देने तथा जागरूकता पैदा करने में उतनी सक्षम साबित नहीं हो पा रहीं, जितना उन्हें होना चाहिए।
भले ही कागजों पर लोगों को जानकारियों से अवगत कराने के लिए भरसक कार्यक्रम और प्रयास किये जा रहे हों लेकिन उसके बावजूद भी जमीनी स्तर पर अभी बहुत काम किया जाना बाकी है। योजनाओं का लाभ कहां जरूरतमंदों को मिल पाएगा जब उन्हें अपने अधिकारों की ही जानकारी न हो। अधिकारों की जानकारी के साथ ही उनके लाभ लेने के लिए अपने पास कागजी दस्तावेज़ का होना भी आवश्यक है लेकिन ये तभी संभव हो सकता है जब आम लोग अपने अधिकारों और कानून के प्रति सजग हों।
- पंजीकरण न करवाना बन सकता है परेशानी का सबब
- देश के मात्र तीन राज्य केरल, तमिलनाडु तथा गोवा में जन्म तथा मृत्यु का प्रतिशत 100 प्रतिशत
जन्म तथा मृत्यु का पंजीकरण नागरिकों के लिए बहुत आवश्यक है परन्तु आम नागरिक इस पंजीकरण के प्रति बहुत ज्यादा उदासीन है। उन्हें यह जानकारी नहीं है कि जन्म तथा मृत्यु का पंजीकरण कराने के क्या लाभ हैं और पंजीकरण न कराने से क्या हानि है। लेकिन जब उन्हें जन्म तथा मृत्यु प्रमाण पत्र की आवश्यकता पड़ती है, तब उन्हें अपनी भूल का अहसास होता है, लेकिन उस समय तक यह पंजीकरण न करना उनके लिए परेशानी का सबब बन चुका होता है।
हमारे देश के कुछ राज्यों को छोडक़र सभी राज्यों के हालात जन्म-मृत्यु पंजीकरण के विषय में बहुत ही ज्यादा खराब हैं। देश के मात्र तीन राज्य केरल, तमिलनाडु तथा गोवा ही ऐसे राज्य हैं जहां जन्म तथा मृत्यु के पंजीकरण के प्रति लोग जागरूक हैं। वहां जन्म तथा मृत्यु का प्रतिशत 100 प्रतिशत है। इस मामले में सबसे ज्यादा स्थिति उत्तर प्रदेश तथा बिहार की खराब है जहां जन्म तथा मृत्यु का पंजीकरण सबसे कम है।
यह कितनी हास्यप्रद स्थिति है कि किसी मां-बाप को अपने बच्चों की जन्मतिथि सही पता न हो तथा वह अनुमान से ही उसकी जन्मतिथि बनाए। किसी को अपने पिता या माता की मृत्यु की तिथि भी याद नहीं रहती, जिस कारण उसे आवश्यकता पडऩे पर भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
- पंजीकरण न हो तो, स्वयं को कैसे साबित करेंगे इस देश का नागरिक?
आम आदमी यह भी नहीं जानता कि जन्म-मृत्यु का पंजीकरण मात्र जन्म तथा मृत्यु का ही पंजीकरण नहीं है, बल्कि वह नागरिक पंजीकरण है। कहीं अगर नागरिकता का प्रश्र उठ खड़ा हो तथा किसी के जन्म का ही पंजीकरण न हो तो यह कोई भी सोच सकता है कि उस समय उसे कैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा, वह स्वयं को इस देश का नागरिक कैसे साबित करेगा?
आम नागरिक जन्म तथा मृत्यु के पंजीकरण को तो बिना बात का सिरदर्द मानता है। आम आदमी की इस सोच में कुछ बदलाव उस समय आया, जब बच्चे के स्कूल में प्रवेश के लिए जन्म प्रमाण पत्र को अनिवार्य बना दिया गया। इसके साथ किसी आदमी की मृत्यु होने पर सम्पत्ति पर नाम दर्ज कराने, किसी वसीयत की वैधता साबित करने, बीमा राशि की वसूली या किसी बैंक या पोस्ट आफिस से जमा रकम प्राप्त करने को लेकर सामने आने वाली पेचीदगियों से बचने के लिए लोगों ने मृत्यु का पंजीकरण कराना भी प्रारम्भ कर दिया। परन्तु वर्तमान में भी जन्म तथा मृत्यु के पंजीकरण की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। अगर उत्तरी भारत पर ही जन्म-मृत्यु के पंजीकरण की स्थिति पर दृष्टिपात किया जाए तो केवल उत्तर प्रदेश, बिहार तथा असाम में ही अस्सी प्रतिशत जन्म तथा मृत्यु के कोई सरकारी आंकड़े प्राप्त नहीं होते।
भारत के विदेशी रजिस्ट्रेशन कानून 1946 के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल प्रमाण पत्र, मतदाता सूची में नाम या मतदाता पहचान पत्र और मूल निवासी प्रमाण पत्र के आधार पर स्वयं को भारत का नागरिक प्रमाणित कर सकता है। यहां जन्म प्रमाण पत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, लेकिन साधारण परिस्थितियों में नागरिकता का सवाल न उठने से कोई भी व्यक्ति इस तरह के पंजीकरण को आवश्यक नहीं मानता। जन्म और मृत्यु कानून 1969 कहता है कि जन्म या मृत्यु होने की स्थिति में 21 दिन के भीतर इसका पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। मगर आज इतने साल गुजर जाने के बाद भी नागरिक पंजीकरण के नियमों और प्रक्रियाओं में एकरूपता लाने के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं।
- जन्म और मृत्यु का पंजीकरण न केवल जनगणना की, बल्कि किसी भी विकास कार्यक्रम की बुनियादी जरूरत
जन्म और मृत्यु का पंजीकरण न केवल जनगणना की, बल्कि किसी भी विकास कार्यक्रम की बुनियादी जरूरत है। इससे समाज की स्पष्ट आर्थिक और राजनीतिक तस्वीर सामने आती है, जो भविष्य में योजनाबद्ध विकास का आधार बनती है।
नागरिक पंजीकरण न कराना या इस पंजीकरण में आम आदमी का रूचि न लेना यह भी साफ प्रदर्शित करता है कि आम आदमी स्थानीय नौकरशाही तथा अधिकारिक कार्यवाही से हमेशा आशंकित रहता है। इस नागरिक पंजीकरण न कराने के पीछे एक महत्वपूर्ण वजह और भी सामने आती है और वह वजह है कि बहुत से ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में जन्म-मृत्यु के पंजीकरण की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
भारत का आम आदमी अभी तक भी नागरिक पंजीकरण का महत्व तथा उसकी लाभ-हानि का गणित नहीं समझ पाया है, न ही इस देश में आम आदमी के सामने अभी तक नागरिकता का प्रश्र ही खड़ा होता है, वरना अगर नागरिकता का प्रश्र उठ रहा होता तो आम आदमी की परेशानियां कितनी बढ़ जातीं, इसका उन्हें अहसास ही नहीं है। इसलिए हर भारतीय नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वह जन्म-मृत्यु का पंजीकरण अवश्य कराये।
इसके लिए हर आम आदमी अपने दायित्व को बखूबी निभाएं और सरकारी तंत्र में बैठे संबंधित अधिकारी आम लोगों का सहयोग करें तभी हम बेहतर भारत का सपना साकार कर सकते हैं। आइये हम भारतीय नागरिक की यह जिम्मेदारी बखूबी निभाएं और जन्म-मृत्यु का पंजीकरण अवश्य करायें।
जय हिन्द, जय भारत ।।