हिमाचल के पहाड़ी गांधी कांशी बाबा का गांव "डाडासीबा"

हिमाचल के पहाड़ी गांधी कांशी बाबा का गांव “डाडासीबा”

  • पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम की जन्मस्थली डाडासीबा
  • डाडासीबा का ऐतिहासिक गीत -डाडे दी बेडिये सौकणी तू मेरिए आज भी हर व्यक्ति की जुबान पर

राजाओं के समय डाडासीबा, एक नगरी पूरी बुलंदियों पर थी। कांगड़ा जिला के इस ऐतिहासिक नगर को कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम की जन्मस्थली है। 1400 वर्ष पुरानी यह ऐतिहासिक नगरी है।

रामसिंह इस रियासत के धार्मिक विचारधारा वाले कुशल राजा हुए हैं। उनके राज में डाडासीबा में कुंए बने। बाग लगे। सडक़ें निकलीं। सडक़ों के दोनों ओर छायादार पेड़ लगे। उनके द्वारा किया विकास अब तो ध्वस्त होता जा रहा है।

डाडासीबा कभी रियासत थी। राज्य था। यहां पर बाकायदा राजदरबार लगता था। यहां के महल उत्कृष्ट चित्रकारी के नमूने थे। ये आज खण्डहर बनकर रह गए हैं। सम्वत् 1835 में यहां पर राधाकृष्ण मंदिर का निर्माण किया गया। इसके साथ एक सराय भी बनी। सराय की हालत इस समय काफी खराब है। जबकि मार्च 2006 के आसपास मंदिर की काफी मुरम्मत की गई। मंदिर के नजदीक बाजार है। यहां ऐतिहासिक तालाब भी है, जो मुरम्मत तथा रख-रखाव मांगता है। इसे जीर्ण-शीर्ण होने से बचाना जरूरी है।

डाडासीबा में प्रसिद्ध मंडी लगा करती थी। इन मंडियों में आम, गुड़, बासमती चावल, अदरक, सब्जियां तथा फल लाए व बेचे जाते। चौपालें अब भी हैं जो मंडियों के होने का आभास कराती हैं।

  • डाडासीबा का ऐतिहासिक गीत -डाडे दी बेडिये सौकणी तू मेरिए आज भी हर व्यक्ति की जुबान पर

ऐतिहासिक गीत-डाडासीबा का एक ऐतिहासिक गीत जो आज भी हर व्यक्ति की जुबान पर रहता है। इस गीत का मुखड़ा है-डाडे दी बेडिये सौकणी तू मेरिए। किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि जो सडक़ इस बीत से सम्बन्धित है तथा डाडा पतन को जाती है उसकी दूर्दशा हो चुकी है। उस पर चलना, घूमना भी सम्भव नहीं।

  • सदा भूमि पर सोते रहे पहाड़ी गांधी

इस ऐतिहासिक नगरी में जन्मे पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम-बहुत समय तक अंग्रेजों की जेलों में रहे। वहां उन्हें बहुत यातनाएं झेलनी पड़ीं। उन्हें जब बोरियों में बंदकर दण्डित किया गया, तो भी वह भारत माता की जय के नारे लगाते ही रहे। इस महान स्वतन्त्रता सेनानी को भगत सिंह को मिली फांसी ने बहुत विचलित कर दिया था। उन्होंने इस शहीद की मृत्यु का दूख मनाने के लिए काले कपड़े पहने, जो जीवन भर पहने ही रखे। तत्पश्चात काले वस्त्रों के अतिरिक्त कोई अन्य रंग का वस्त्र जीवन भर धारण नहीं किया। यह कोई छोटा कदम नहीं था और भी, भगत सिंह की फांसी के बाद से पहाड़ी गांधी सदा भूमि पर सोते रहे। जब उन्हें धर्मशाला जेल में रखा गया तो उन्होंने तिरंगा प्राप्त करने व फहराने की बहुत कोशिशें की। जब उन्हें तिरंगा नहीं मिला तो उन्होंने अपने कुर्ते की तीन पट्टियां काटीं। उन्होंने पत्तों से हरा रंग तथा ईंटों से लाल रंग बनाकर इन पट्टियों को रंगा तथा इसे फहराया भी। इससे उन्हें आत्मिक शांति मिली।

लोगों की मांग रही है कि पहाड़ी गांधी की मूर्ति उस चौपाल में लगे जिसमें खड़े होकर वह क्रांतिकारी भाषण दिया करते थे। किन्तु ऐसा नहीं हो पाया। पहाड़ी गांधी जिस प्राइमरी स्कूल डाडासीबा के छात्र थे आज यह दस जमा दो है। मांग रही है कि उनके नाम पर एक कॉलेज भी खोला जाए। पौंग झील के किनारे बसा डाडासीबा अपना ऐतिहासिक महत्व सदैव लिए रहेगा। इस नगरी को पर्यटक स्थल बनाने की भी मांग उठती रही है।

 पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम की जयंती के अवसर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पिछले वर्ष 2018 में कहा था कि यदि उनके परिजन जिला कांगड़ा के डाडासीबा में पैतृक गांव गुरनवाड़ में स्थित उनके जर्जर पड़े पुराने घर को राज्य सरकार को सौंपने के लिए सहमत हों तो इसका जीर्णोद्धार कर इसे स्मारक के रूप में विकसित किया जाएगा। यह बाबा कांशी राम के लिए श्रद्धांजलि होगी।

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