- नोबल पुरस्कार से पुरस्कृत इस पुस्तक के कुछ पन्ने इसी हिल स्टेशन पर किए लेखनीबद्ध
भारत प्राचीन था। उस समय प्रतिभा दिखाने के अवसर नहीं मिलते थे। ऐसे में एक भारतीय शिक्षक का नोबल पुरस्कार जीतना बहुत बड़ी बात थी। इस में भी हिमाचल के डलहौजी की कुछ तो भूमिका थी ही। पूरी गीताजंलि को लिखने में तो समय लगा होगा तथा टैगोर इस सारे काल में कई स्थानों पर रहे होंगे। अथवा नहीं भी, किंतु यह निश्चित है कि वह इन्हीं दिनों कुछ समय डलहौजी में रूके तथा नोबल पुरस्कार से पुरस्कृत इस पुस्तक के कुछ पन्ने इसी हिल स्टेशन पर रहकर लेखनीबद्ध किए थे। इस बात का आज भी हिमाचलियों को गर्व है।
- करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व गोरों ने डलहौजी को स्वास्थ्य लाभ देने वाला स्टेशन बनाया
बकरोटा, टीहरा, पतरेन, कथलग तथा पंजपुला-इन पांच छोटी-छोटी पहाडिय़ों को मिलाकर कोई डेढ़ सौ वर्ष पूर्व गोरों की सरकार ने डलहौजी को स्वास्थ्य लाभ देने वाला स्टेशन बनाया। इसी के साथ इसे मिला पर्यटन स्थल का दर्जा। डलहौजी शहर से आज पूरा विश्व परिचित है।
स्वास्थ्य लाभ पाने के लिए आये थे नेताजी सुभाष चन्द्रबोस और स्वस्थ होकर लौटे थे यहां से, तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा, का बाद में नारा भी तो उन्होंने ही दिया था। आजाद हिन्द फौज को विदेशी धरती पर कायम करने का अदम्य साहस दिखाया था इस देश भक्त वीर ने। हम तो नेताजी को अमर ही कहेंगे। क्योंकि अनेक आयोग भी इस निर्णय पर नहीं पहुंच सके कि उनकी मृत्यु ऐयर-क्रैश में हुई भी थी या नहीं। डलहौजी में ही सैक्रेड हाईस्कूल की स्थापना 1901 सन् में हुई। 1970 में यहां डी.पी.एस. स्कूल खुला जो आज दूर-दूर तक ख्याति पा चुका है।
गुरूदेव ठाकुर रविंद्र नाथ टैगोर-शांति निकेतन जैसे शिक्षा संस्थान के निर्माता-कविता, कहानी, उपन्यासों के सफल लेखक तथा चोटी के शिक्षक का इस नगरी में आना और उन्हें अमर कर देने वाली गीताजंलि की रचना करना डलहौजी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण घटना रही है। उनकी इस सराहनीय उपलब्धि को डलहौजी से सदैव जोड़ा जाता रहेगा।
- आभार: हिमाचल दर्पण
- -हरविंदर सिंह चोपड़ा