कांगड़ा प्रकृति और संस्कृति की अद्भुत विविधता
हिमाचल प्रदेश के सुंदर-सुंदर जिले और उनकी खूबसूरती। प्रकृति के अदभूत नज़ारे, ऐतिहासिक धरोहरें, धर्म, आस्था, लोक संस्कृति, रीति-रिवाज़ तथा इन सबको संजोये और हमसे जोड़े हमारी परम्पराएं एक खूबसूरत सपने से कम नहीं। पर्यटन नगरी हिमाचल की खूबसूरती की जितनी बात की जाए शायद बहुत कम ही होगी। हिमाचल का ऐसा ही ऐतिहासिक नगर व जिला है कांगड़ा। इसका अधिकतर भाग पहाड़ी है। इसके उत्तर और पूर्व में क्रमानुसार लघु हिमालय तथा बृहत हिमालय की हिमाच्छादित श्रेणियां स्थित हैं। पश्चिम में सिवालिक (शिवालिक) तथा दक्षिण में व्यास और सतलुज के मध्य की पहाडिय़ां हैं। बीच में कांगड़ा तथा कुल्लू की सुंदर उपजाऊ घाटियां। जहां कांगड़ा जिला चाय और चावल के लिए मशहूर है वहीं कुल्लू जिला फलों के लिए प्रसिद्ध है। व्यास (विपासा) नदी उत्तर-पूर्व में रोहतांग से निकलकर पश्चिम में मीर्थल नामक स्थान पर मैदानी भाग में उतरती है। कांगड़ा जिले में कड़ाके की सर्दी पड़ती है लेकिन गर्मी में मौसम सुहावना होता है। इस मौसम में बहुत से पर्यटक न केवल देशों से बल्कि विदेशों से भी यहां की हसीन वादियों को निहारने के लिए पहुंचते हैं। वैसे तो हिमाचल को देवभूमि के नाम से जाना ही जाता है क्योंकि यहां जगह-जगह देवस्थल हैं। लेकिन कांगड़ा को देवभूमि के नाम से अभिहित किया गया है। यहां बहुत से प्राचीन पूजनीय स्थल हैं। जहां लोग दूर-दूर से अपनी इच्छा प्राप्ति के लिए आते हैं।
कांगड़ा निचले हिमालयी इलाकों की सबसे सुन्दर घाटियों में से एक है। सामने नीले आसमान में चमकती धौलाधार पर्वतीय श्रृंखलाओं की बर्फीली चोटियां, साथ में पीले सरसों के खेत और उनके बीच से छोटी लाईन की ट्रेन का छुक-छुक करते जाना-इससे कांगड़ा घाटी और यहां के सैर सपाटे की छवि बेहद रोमांचकारी हो जाती है। कांगड़ा में प्रकृति और संस्कृति दोनों की विविधता अद्भुत है। कांगड़ा शहर से तीन किलोमीटर दूर स्थित कांगड़ा फोर्ट अपने अंदर इतिहास की कई दास्तानें समेटे हुए है। इसे नगरकोट भी कहा जाता है। कांगड़ा फोर्ट एक समय पंजाब के पहाड़ी इलाकों पर शासन करने वाले कटोच राजाओं की राजधानी हुआ करता था। आज यह पर्यटकों के लिए गर्मियों में एक सैरगाह बन गया है। यहां पहुंचकर यहां की हसीन वादियों को देखकर मन को जो अपार सुकून का अनुभव होता है वह शब्दों में बयां करना मुश्किल है। यहां आकर लोग जहां अपने सारे दुखों को भूल जाते हैं वहीं खुद को प्रकृति के बहुत करीब अनुभव करते हैं। साथ ही देवी-देवताओं का पूजनीय स्थल होने की वजह से यहां के देवी-देवताओं के पूजनीय स्थलों में जाकर शीश नवाज़ने से अपार शांति मिलती है।
बर्फ से ढका धौलाधार पर्वत तथा कांगड़ा की हरी-भरी घाटी का रमणीक दृश्य यहां दृष्टिगोचर होता है। यह नगर बाणगंगा तथा मांझी नदियों के बीच बसा हुआ है। दक्षिण में पुराना किला तथा उत्तर में ब्रजेश्वरी देवी के मंदिर का सुनहरा कलश इस नगर के प्रधान चिह्न हैं। एक ओर पुराना कांगड़ा तथा दूसरी ओर भवन (नया कांगड़ा) की नई बस्तियां हैं। कांगड़ा घाटी रेलवे तथा पठानकोट-कुल्लू और धर्मशाला-होशियारपुर सडक़ों द्वारा यातायात की सुविधा प्राप्त है। कांगड़ा पहले नगरकोट के नाम से प्रसिद्ध था और ऐसा कहा जाता है कि इसे राजा सुशर्माचंद ने महाभारत के युद्ध के बाद बसाया था। छठी शताब्दी में नगरकोट जालंधर अथवा त्रिगर्त राज्य की राजधानी था। राजा संसारचंद (18वीं शताब्दी के चतुर्थ भाग में) के राज्यकाल में यहां पर कला कौशल का बोलबाला था। कांगड़ा कलम विश्वविख्यात है और चित्रशैली में अनुपम स्थान रखती है। कांगड़ा किले, मंदिर, बासमती चावल तथा कटी नाक की पुन: व्यवस्था और नेत्र चिकित्सा के लिए दूर-दूर तक विख्यात था। 19०5 के भूकंप में नगर बिल्कुल उजड़ गया था। तत्पश्चात नई आबादी बसाई गई। यहां पर देवीमंदिर के दर्शन के लिए हजारों यात्री प्रति वर्ष आते हैं। यहां हमेशा बड़ी चहल-पहल रहती है। लेकिन नवरात्रों के दिनों में यहां की खुबसूरती और बढ़ जाती है क्योंकि यहां उन दिनों खूब रौनक बनी रहती है। दूर-दराज से दुकानदार यहां आकर अपनी दुकानें सजाते हैं जिससे मंदिर की शोभा देखते ही बनती है।
ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में त्रिगर्त नाम से विख्यात कांगड़ा हिमाचल की सबसे खूबसूरत घाटियों में से एक है। धौलाधार पर्वत श्रंखला से आच्छादित यह घाटी इतिहास और संस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखती है। एक जमाने में यह शहर चंद्र वंश की राजधानी थी। कांगड़ा का उल्लेख 3500 साल पहले वैदिक युग में मिलता है। पुराण, महाभारत और राजतरंगिणी में इस स्थान का जिक्र किया गया है। हाल ही में लाहुल तथा स्पीति प्रदेश का अलग सीमांत जिला बना दिया गया है और अब कांगड़ा का क्षेत्रफल 4,28० वर्ग मील रह गया है। कांगड़ा नगर लगभग 2,350 फुट की ऊंचाई पर, पठानकोट से 52 मील पूर्व स्थित है।
यहां के मुख्य आकर्षण केंद्र ब्रजेश्वरी देवी मंदिर, चामुण्डा देवी मंदिर, ज्वालाजी माता का मंदिर, कांगड़ा किला, महराणा प्रताप सागर झील, कांगड़ा आर्ट गैलरी, मशरूर मंदिर, करौरी झील, सुजानपुर किला और चिन्मय तपोवन।