कृषि विज्ञान केंद्र ताबो में प्राकृतिक खेती से उत्पादित सेब बगीचे की हुई अलग नीलामी 

सोलन: एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए, पूरी तरह से प्राकृतिक खेती पद्धति से उगाए गए सेब की नीलामी देश में पहली बार अलग से की गई। डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय (यूएचएफ), नौणी के अंतर्गत आने वाले कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), लाहौल एवं स्पीति–II, ताबो की इस पहल का नतीजा यह रहा कि इस 1100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाले इस सेब बगीचे की नीलामी ₹9 लाख में हुई।

 इस बगीचे में 120 सेब के विभिन्न किस्मों के पौधे हैं, जिन्हें रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों के बिना उगाया जाता है। रासायनिक आदानों के स्थान पर गोबर और गोमूत्र आधारित जैविक घोलों तथा स्थानीय पौधों से तैयार किए गए मिश्रणों का प्रयोग पोषण, मृदा उर्वरता एवं कीट एवं रोग नियंत्रण हेतु किया जा रहा है।

 स्पीति घाटी में प्राकृतिक खेती के अंतर्गत उगाए गए सेबों ने उत्कृष्ट गुणवत्ता के मानक प्रदर्शित किए हैं। रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के बिना उगाए गए इन फलों में परंपरागत खेती की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक फर्मनेस पाई गई, जिससे उनका बनावट और शेल्फ लाइफ बेहतर है। साथ ही, फलों में कुल घुलनशील ठोस पदार्थ (TSS) का स्तर भी 11 प्रतिशत अधिक पाया गया, जो प्राकृतिक मिठास और उपभोक्ता की पसंद का एक प्रमुख संकेतक है। प्राकृतिक खेती वाले इस बगीचे की मिट्टी में 2.79% ऑर्गेनिक कार्बन था, जो पारंपरिक विधि से प्रबंधित सेब के बगीचों (2.00%) की तुलना में अधिक था, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार का संकेत मिलता है। प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों ने बताया कि उनके सेबों की स्वाद, शेल्फ लाइफ और बाजार में कीमत पारंपरिक सेबों की तुलना में बेहतर रही है।

 डॉ. आर. एस. स्फेहिया, केवीके ताबो के प्रमुख ने बताया कि यह केंद्र आईसीएआर-एग्रीकल्चरल टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट (अटारी), जोन-I, लुधियाना द्वारा वित्तपोषित है तथा विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशालय द्वारा प्रशासित किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस बगीचे को वर्ष 2020 में प्राकृतिक खेती पद्धति में परिवर्तित किया गया था और इस प्रक्रिया में विश्वविद्यालय प्रशासन से निरंतर मार्गदर्शन एवं सहयोग मिला है।

विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. इंदर देव ने बताया कि केवीके ताबो का प्राकृतिक खेती ब्लॉक वर्तमान में राज्य सरकार की सीतारा (CETARA) प्रमाणन प्रणाली के अंतर्गत 2-स्टार रेटिंग प्राप्त कर चुका है तथा 3-स्टार रेटिंग प्राप्त करने के प्रयास जारी हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह उपलब्धि किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करेगी और भारत सरकार के राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन को गति प्रदान करेगी।

कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने केवीके की टीम और विश्वविद्यालय के विस्तार विंग को बधाई देते हुए कहा कि नौणी विश्वविद्यालय अपनी सभी अनुसंधान केंद्रों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में अग्रणी कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस तरह की पहल स्पीति क्षेत्र के किसानों में टिकाऊ खेती को अपनाने की दिशा में और मजबूती देंगी।

प्रो. चंदेल ने बताया कि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग की एनएबीएल-मान्यता प्राप्त अवशेष विश्लेषण प्रयोगशाला में इन सेब का प्रतिवर्ष रासायनिक अवशेष परीक्षण किया जाता है और परिणाम निरंतर यह प्रमाणित करते हैं कि फल पूरी तरह रसायन मुक्त हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि स्पीति घाटी में प्राकृतिक खेती की अपार संभावनाएं हैं क्योंकि यहां के किसान पहले से ही न्यूनतम रासायनिक उर्वरक प्रयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि इस ठंडे मरुस्थलीय क्षेत्र की नाजुक मृदा और पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखने के लिए प्राकृतिक खेती को अपनाना अत्यंत आवश्यक है। प्रो. चंदेल ने बताया कि स्पीति  घाटी की ग्यू पंचायत पहले ही फसलों के उत्पादन में प्राकृतिक खेती अपना चुकी है। केवीके ताबो इस पंचायत के किसानों के साथ मिलकर इसे पूरी तरह प्राकृतिक खेती पंचायत बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है। इस संबंध में एक प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है। इसके अनुमोदन के बाद यह पहल किसानों को अपने उत्पादों के लिए प्रीमियम मूल्य दिलाने के साथ-साथ उच्च हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण अनुकूल खेती को भी बढ़ावा देगी।

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