हिमाचल: रियासत काल से “सतधार कहलूर” के नाम से विख्यात बिलासपुर जिले की पहाड़ियां

सात पहाड़ियों में नैना देवी, कोट, झझियार, तिऊन, बांदला, बहादुरपुर और रतनपुर शामिल

बिलासपुर जिले की पहाड़ियां रियासतीकाल से “सतधार कहलूर” के नाम से विख्यात  रही है। इसका तात्पर्य बिलासपुर की सात धारों अर्थात पहाड़ियों से लिया गया है इन सात पहाड़ियों यों में नैना देवी, कोट, झझियार, तिऊन, बांदला, बहादुरपुर और रतनपुर शामिल है।

यह जिला हिमाचल प्रदेश के पश्चिम-दक्षिण में भूमध्य रेखा से 31°12′30″ से 31° 35′ 45′ उत्तरी अक्षांश तथा 76° 23 45 से 76° 55′ 40″ पूर्वी रेखांश के मध्य स्थित है। बिलासपुर के पूर्व में सोलन और मण्डी, पश्चिम में पंजाब राज्य और ऊना, उत्तर में मण्डी और हमीरपुर तथा दक्षिण में सोलन जिले की सीमाएं लगती है। जिला बिलासपुर का जलवायु ऊष्ण है। गोविन्दसागर झील सर्दियों में बिलासपुर शहर का तापमान सर्व कर देती है जिससे यहां काफी ठण्डा वातावरण हो जाता है। जिला मुख्यालय बिलासपुर समुद्रतल से 610 मीटर की ऊंचाई पर है।

नैना देवी की पहाड़ी- यह पहाड़ी तीस किलोमीटर में भाखड़ा तक फैली है। इस पहाड़ी पर भगवती नैना देवी का मन्दिर समुद्रतल से 1219 मीटर की ऊंचाई पर है। इस पर्वत श्रृंखला पर कोट-कहलूर में बांस के घने जंगल, कोट-कहलूर दुर्ग, सतगढ़ दुर्ग और फतेहपुर दुर्ग भी पड़ते है।

कोट की पहाड़ी- इस पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी ककरेड समुद्रतल से 1430 मीटर की ऊंचाई पर है। यह पहाड़ी नघियार गांव से बागफल जंगल में सतलुज के तट तक तीस किलोमीटर में फैली है। इस पहाड़ी में थीड़ और बांस के घने जंगल पाए जाते हैं। इस पहाड़ी पर बच्छरेटू, बशेश, नौण, शिवाला और डगोगा मल्होट रियासतीकाल में बने दुर्ग भी हैं।

झंझियार की पहाड़ी- इस पहाड़ी को सेर बहूड, झंझियार और बड़ोल दो खण्डों में बांटती है। इस पहाड़ी के दक्षिणी भाग बदोल में बदोली देवी का मन्दिर तथा गेहड़वी में गुग्गा की माड़ी पड़ती है। इस पहाड़ी पर चीड़ और बांस के जंगल पाए जाते हैं। इस पहाड़ी के उत्तर की ओर झंझियार में कांगड़ा के राजा संसार चन्द द्वारा बनाए गए दुर्गों के अवशेष पाए जाते हैं।

रतनपुर की पहाड़ी- इस पहाड़ी पर रतनपुर दुर्ग पड़ता है। यह समुद्रतल से 1230 मीटर की ऊंचाई पर है। इसी दुर्ग पर ब्रिटिश सेनापति जनरल ऑक्टरलोनी ने गोरखा कमाण्डर काजी अमर सिंह थापा को पराजय दिलाई थी।

तिऊन की पहाड़ी- इस पहाड़ी का पूर्वी भाग सरीऊन तथा पश्चिमी भाग तिऊन कहलाता है। इसके पूर्व में सरीऊन और नौरागढ़ दुर्ग, पीर भयानु का मन्दिर और हिडिम्बा देवी का मन्दिर है। इसके पश्चिमी भाग में तिऊन दुर्ग और सिद्ध गुरूनाथ का मठ है। इस पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी सरीऊन समुद्रतल से 1,350 मीटर की ऊंचाई पर है।

बांदला की पहाड़ी- इस पहाड़ी को दियोली और घागस के समीप अली खड्ड दो भागों में बांटती है। इस पहाड़ी की पश्चिमी ढलान पर बिलासपुर का जिला मुख्यालय स्थित है। इसकी सबसे ऊंची चोटी समुद्रतल से 1375 मीटर की ऊंचाई पर है।

बहादुरपुर की पहाड़ी- यह समुद्रतल से 1980 मीटर की ऊंचाई पर है। यह चोटी बिलासपुर जिले में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित है। इस चोटी पर बान के छोटे-छोटे वृक्ष पाए जाते हैं। यहां जनवरी, 2012 को थोड़ी-थोड़ी बर्फबारी भी हुई। इस पहाड़ी को अली खड्ड दो भागों में बांटती है। इसका उत्तरी भाग टटोह तथा दक्षिणी भाग बहादुरपुर कहलाता है। बहादुरपुर दुर्ग के समीप बिलासपुर रियासत के राजा विजय चन्द ने ग्रीष्मकालीन महल बनवाया था।

नदियां- बिलासपुर से प्रवाहित होने वाली इकलौती सतलुज नदी है। यह बिलासपुर जिला (बिलासपुर सदर) के कसोल नामक गांव में प्रवेश करती है। यह बिलासपुर को दो भागों में बांटती हुई जिला में लगभग 90 किलोमीटर का सफर तय करती है। यह नदी कोट कहलूर के दक्षिण-पश्चिमी भाग में नैला गांव के समीप बिलासपुर को छोड़कर पंजाब में चली जाती है। बिलासपुर में सतलुज की सहायक खड्डे अली, गम्भरोल, गम्भर, मौनी, सैर आदि हैं। इसी सतलुज नदी पर भाखड़ा बांध भी बना है। बिलासपुर जिले में अभ्रक, पाइराइट, कोयला, लोहा, भूरा कोयला, स्फटिक, चूने का पत्थर आदि खनिज पदार्थ पाए जाते हैं।

आभार- विशाल हिमाचल

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