नई दिल्ली: विभिन्न मौजूदा अनुसंधानों और अध्ययनों के माध्यम से ये दावे किए जा रहे हैं कि गंगा जल में औषधीय गुण हैं जो विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया और जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं। इन दावों के बारे में आगे अनुसंधान करने और गंगाजल का समग्र मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोग करने हेतु केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जे. पी. नड्डा ने ऐसे अनुसंधान के लिए वित्तीय सहायता सहित सभी प्रकार की मदद उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। गंगाजल में ‘सड़न न होने के गुणों’ पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यशाला में उन्होंने यह जानकारी दी। केन्द्रीय जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती और वरिष्ठ पर्यावरणविद् कृष्ण गोपाल भी इस अवसर मौजूद थे।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि आज विश्व में अनेक प्रकार के नए और अधिक शक्तिशाली दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया और जीवाणुओं के विरूद्ध लड़ाई बढ़ती ही जा रही है। ऐसा अध्ययन किए जाने की जरूरत है जिसके माध्यम से गंगाजल के ऐसे विशिष्ट गुणों का पता लगाने और उनकी पड़ताल करने में मदद मिले कि किस प्रकार गंगाजल न केवल अपने में मौजूद कीटाणुओं और रोगाणुओं को नष्ट करके स्वयं को स्वच्छ कर लेता है बल्कि दूसरे जल को भी साफ कर देता है। उन्होंने कहा कि गंगा एक पवित्र नदी है और इसमें सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से परस्पर संबद्ध और बहुस्तरीय गुण मौजूद हैं । उन्होंने कहा कि गंगा नदी की लंबाई लगभग 2600 किलोमीटर है और यह अनेक राज्यों से होकर बहती है तथा उन राज्यों को खुशहाल बनाती हुई अनेक लोगों को जीविका उपलब्ध कराती है। गंगा मैदानी इलाकों को सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराती है। सरकार का लक्ष्य न केवल गंगा नदी को साफ करना बल्कि इसका उद्धार करना भी है। उन्होंने कहा इस अनुसंधान के परिणाम स्वरूप सामने आने वाले बहुमूल्य वैज्ञानिक साक्ष्यों और गहरे अध्ययन से गंगाजल के औषधीय गुणों को समझने में मदद मिलेगी। नड्डा ने कहा कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली के अलावा आई आई टी कानपुर और रूड़की तथा बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय, राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान तथा राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक भी इस विस्तृत अध्ययन में भाग लेंगे। अनुसंधान के निष्कर्षों पर विचार-विमर्श करने के लिए दूसरी कार्यशाला छः महीने के बाद आयोजित की जाएगी।