…तो नहीं होगी भूलने की बीमारी, जानें याददाश्त बढ़ाने के उपाय…

याददाश्त बढ़ाने के उपाय

यादाश्तभूलने के साथ-साथ दिमाग को एकाग्र करने में भी दिक्कतें आती हैं। अधिक या कम थॉरोक्सिन याद करने की क्षमता को कम कर देता है। क्या हैं बीमारी के लक्षण अम्नेसिया के लक्षण अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्न होते हैं। कुछ लोगों में अम्नेसिया की शुरुआत तिथि और नाम भूलने के साथ होती है, तो कुछ लोग शुरू किए गए काम का उद्देश्य ही भूल जाते हैं। एक ही स्थान पर बार-बार जाने के बाद भी उसका पता भूल जाते हैं। कुछ लोग एक ही काम को कई बार करते हैं। अम्नेसिया की शुरुआत कुछ यूं होती है। भ्रम या कम सतर्कता भूलने की बीमारी का पहला लक्षण हो सकता है। हालांकि सभी का व्यवहार एक समान नहीं होता। कुछ में सीधे भूलने की समस्या होती है तो कुछ को शब्द याद करने में मुश्किल होती है। कुछ को समझने में समस्या आती है। उन्हें छोटे-छोटे निर्णय लेने में भी तकलीफ होती है। उम्र बढऩे के साथ आम तौर पर लोगों में भूलने की बीमारी घर करती जाती है। एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि यदि आप मानसिक चुनौती वाले काम को पसंद करेंगे, तो बुढ़ापे में भी भूलने की बीमारी नहीं होगी। कोलोराडो स्टेट विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के सहायक प्रोफेसर ग्वेनिथ फिशर ने कहा कि कुछ ऐसे चुनौतीपूर्ण काम हैं, जो इसे करने वालों में बुढ़ापे में भी मानसिक क्षमता को सुरक्षित करता है या बढ़ा सकता है। प्रोफेसर ने यह निष्कर्ष 18 साल तक 4,182 लोगों पर अध्ययन कर निकाला। उन्होंने अध्ययन में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों से 1992 और 2010 के बीच आठ बार पूछताछ की। इस प्रक्रिया की शुरुआत में प्रतिभागियों की उम्र 51 से 61 के बीच थी। ये प्रतिभागी अलग-अलग कार्यों से जुड़े थे और सेवानिवृत्त होने से पहले वे करीब 25 साल से अधिक वही कार्य करते रहे थे। अध्ययन में पाया गया कि जो लोग कठिन मानसिक क्रिया वाले कार्यों से जुड़े थे, उनकी याद्दाश्त क्षमता सेवानिवृत्त होने के बाद भी बेहतर थी। साथ ही जो लोग सरल कार्यों से जुड़े थे उनकी यादाश्त क्षमता अच्छी नहीं थी। मिशिगन विश्वविद्यालय के सामाजिक शोध संस्थान की सहायक शोध वैज्ञानिक जेसिका फाउल ने कहा कि इस परिणाम से पता चलता है कि अलग-अलग प्रकार की मानसिक क्रियाओं वाले काम कर्मचारी के लिए फायदेमंद हैं। यह शोध पत्र शोध पत्रिका जर्नल ऑफ अक्यूपेशनल हेल्थ साईकोलॉजी में प्रकाशित हुआ। फाउल ने कहा कि यदि कोई अपने रोजमर्रा के काम से हटकर भी कुछ करता है, तो वह भी उसक यादाश्त क्षमता को प्रभावित करता है। डिमेंशिया दिमागी क्षमता में धीरे-धीरे कमी की एक स्थिति है। इसके सबसे आम प्रकार हैं अल्जाइमर्स डिजीज और वस्क्युलर डिमेंशिया। ये बीमारियां दिमागी कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती हैं और इनके सामान्य क्रियाकलाप को बाधित करती हैं। इससे याददाश्त, संचार और सोचने की क्षमता कम होती है। कई बार अल्जाइमर्स से पीडि़त लोगों के लिए अपने पैसे संभालना अथवा कपड़े पहनना तक मुश्किल हो जाता है।

बचने के उपाय: नियमित तौर पर व्यायाम करने से बुजुर्गों की याददाश्त बढ़ सकती है। यही नहीं, वे अधिक दिनों तक भूलने की बीमारी (डिमेंशिया) का शिकार होने से भी बच सकते हैं। हल्दी के औषधीय गुणों में डिमेन्शिया बीमारी से निजात दिलाने की ताकत होती है। अंगूर अल्जाइमर बीमारी की स्थिति में होने वाली याददाश्त को सही करने में लाभकारी है। इससे बचने के लिए खानपान पर विशेष ध्यान दें। ग्रीन टी, मछली, टमाटर, इत्यादि को अपने खानपान में शामिल करें। सुबह नाश्ता अवश्य करें। अंकुरित अनाज, ड्राई फ्रूट अवश्य लें। प्रतिदिन थोड़ी मात्र में अखरोट का सेवन करें। शहद को हर रोज किसी न किसी रूप में लेने से याददाश्त अच्छी रहती है। पका कद्दू हफ्ते में एक बार अवश्य खाएं।

याददाश्त बढ़ाने के उपाय:

खाना खाने से कुछ देर पहले एक सेब खाएं। चुकंदर का रस दिन में दो बार लेने से याद्दाश्त बढ़ती है। सकारात्मक सोच रखें। हाथों की बीच की अंगुलियों पर मालिश करें। भूल चुकी पुरानी बातों को याद करने की कोशिश करें। पहेलियों के हल खोजने का अभ्यास करें घरेलू हिसाब-किताब को जुबानी जोडऩे-घटाने की कोशिश करें।

सावधानियां: रोगी को घर से अकेले निकलने न दें। बात-बात पर रोगी से बहस न करें। रोगी को अकेलापन या बीमार महसूस न हो, इसका ध्यान रखें। घर का दरवाजा बन्द रखा करें। रोगी के पास घर का पता, रोगी का नाम और फोन नंबर इत्यादि हमेशा रखें। रोगी से बातचीत करते रहें और उसे दिनभर व्यस्त रखें। माइंड वाले खेल खेलने को प्रेरित करें और उसके साथ समय दें। सप्ताह में कभी एक बार तो कभी दो बार हम भी अपनी साधारण चीजें भूलते रहते हैं। डॉक्टरी भाषा में भूलने की इस बीमारी को अम्नेसिया कहते हैं। इसमें याद रखने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है। बीती घटनाओं को याद कर पाना मुश्किल होता है। एम्स के मनोचिकित्सक डॉ. एच. एस. मलिक कहते हैं कि भूलना तो समस्या है, लेकिन हर बात भूल जाना बीमारी हो सकती है। परेशानी यह है कि लोग इन दोनों के बीच आसानी से फर्क नहीं समझ पाते हैं। आपको भूलने की बीमारी हो चुकी है, इसकी जांच आप खुद कर सकते हैं। दिनभर कई काम के बावजूद यदि आप सोने से पहले सुबह से शाम तक की हर छोटी बात को आसानी से याद रख पाने में सक्षम हैं तो इसका मतलब है कि आपकी याददाश्त बेहतर हैं, लेकिन ओपीडी में आने वाले 40 प्रतिशत युवा चार घंटे पहले की बात भी याद नहीं रख पाते हैं। ऐसे में सबसे अधिक असर नियमित दिनचर्या पर पड़ता है। डॉ. मलिक कहते हैं कि कई निजी क्लीनिक में मरीजों को दवाई व जांच की तारीख याद दिलाने के लिए एसएमएस की सेवा शुरू की गई जो लोगों की कम होती याददाश्त का ही एक उदाहरण है।

क्यों होती है समस्या : याददाश्त कम होना या फिर याददाश्त खो जाना दो अलग बाते हैं, बुजुर्गो में यह समस्या 6० के बाद होती है, जिसे डिमेंशिया कहा जाता है। युवाओं में याददाश्त कम होने की वजहें अलग हैं, जैसे- अधिक तनाव, सिगरेट, एल्कोहल या फिर अनियमित नींद। मार्ग दुर्घटना या फिर मस्तिष्क में टय़ूमर की वजह से भी याददाश्त खो जाती है, लेकिन इन दो वजहों से याददाश्त खोने के कई सजिर्कल उपाय हैं। यदि अनियमित दिनचर्या से याद रखने की क्षमता कम होती है तो उसे मेडिटेशन, योग या फिर बेहतर डायट से ठीक किया जा सकता है। हालांकि याददाश्त बढ़ाने के लिए चिकित्सक दवाओं के इस्तेमाल को सही नहीं मानते हैं।

याददाश्त कम होने की वजहें

अवसाद :  अवसाद अम्नेसिया की की वजह हो सकती है। जिंदगी में अधिक हासिल करने की इच्छा जब पूरी नहीं होती तो व्यक्ति का ध्यान सामान्य बातों पर नहीं रहता, वह हरदम कुछ बढ़ा करने की योजना बनाता रहता है। समाज से कटे या अकेले रहने वाले लोगों में यह लक्षण अकसर देखने को मिलता है। विटामिन बी-12 की कमी अम्नेसिया का यह एक महत्वपूर्ण कारक है। इसकी कमी मस्तिष्क के स्थायी नुकसान का कारण बन सकती है। विटामिन बी-12 हमारे न्यूरोंस और सेंसर मोटर को सुरक्षित रखता है।

दवाओं का दुष्प्रभाव :   नींद की गोलियां, एंटीथिस्टेमाइंस, ब्लड प्रेशर की दवाएं, गठिया में ली जाने दवा, एंटीडिप्रेसेन्ट, गुस्से को नियंत्रित करने के लिए ली जाने वाली गोलियां और दर्द निवारक दवाओं के ज्यादा सेवन से भी अम्नेसिया हो सकता है। लगातार नींद की गोलियां खाने वाले लोग भी सामान्य बातें जल्दी भूलने लगते हैं।

शराब की लत :  शराब का अधिक इस्तेमाल, मस्तिष्क की कोशिकाओं की क्रियाशीलता को कम करता है।

थायरॉयड :  थायरॉयड ग्रंथि मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करती है।

जरूरी है नींद : याद्दाशत मजबूत करने के लिए के लिए नींद बहुत जरूरी है। कम नींद या खराब नींद हिप्पोकैम्पस में नए न्यूरॉन्स का विकास प्रभावित करती है और स्मृति, एकाग्रता व निर्णय लेने की क्षमता कम होती जाती है।

डायट का रखें ध्यान

चॉकलेट :   एक सर्वे में कहा गया कि चॉकलेट मस्तिष्क की शक्ति को बढ़ाती है। रोज 1० ग्राम चॉकलेट दिमाग को चॉकलेटी बना देती है।
हरी सब्जियां: इनमें विटामिन और फोलिक एसिड की भरमार होती है, जो हमें पागलपन से बचाते हैं। ध्यान रहे हरी सब्जियों को ज्यादा देर तक पकाने पर इसके न्यूट्रिएंट्स जल सकते हैं।

काला जामुन : काला जामुन में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो न्यूरॉन्स के बीच संचार बढ़ाते हैं और आसानी से समझने में मदद करते हैं। रोज काला जामुन खाएं तो दिन, महीना और तिथि याद रखना आसान होगा।

मछली : इसमें ओमेगा-3, विटामिन-डी और अन्य ऐसे पोषक तत्व होते हैं, जो आपके मस्तिष्क को किसी प्रकार के मनोविकार यानी मेंटल डिसऑर्डर से सुरक्षित रखते हैं।

चुकंदर: चुकंदर याद रखने की क्षमता बढ़ाता है। इसमें नाइट्रेट होता है, जो रक्त नलिकाओं को खोलता है और दिमाग तक खून का संचार बढ़ाता है।

होल ग्रेन : जब भी ब्रेड खरीदें, दुकानदार से होलग्रेन ब्रेड ही मांगें। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर भरपूर होता है। विटामिन बी और ई से भरा होल ग्रेन शरीर में ब्लड शुगर के स्तर को सामान्य रखने में मदद करता है।

कॉफी : कॉफी में पाई जाने वाली कैफीन से कार्यक्षमता बढ़ती है। यह अल्जाइमर से लडऩे में भी मददगार है।

सेब :  सेब में क्वरसेटिन की मात्र पाई जाती है, जो हमारे ब्रेन सेल की रक्षा करता है।

सोने से पहले एक बार दिनभर में किए कामों को दोहराने से याददाश्त कभी कमजोर नहीं होती। आप सारी दिनचर्या को याद नहीं कर पा रहे तो यह याददाश्त कम होने की शुरुआत है। दिमाग में चीजों का चित्रण कर हम किसी चीज या बात पर अपनी एकाग्रता बढ़ा सकते हैं। कामों की लिस्ट बनाएं और उसे किसी चीज के साथ समायोजित करें। इससे उस चीज को याद करने से उससे संबंधित काम भी याद आ जाएगा।

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