कभी "चीनी गांव" के नाम से जाना जाता था किन्नौर जिले का "कल्पा"

….कभी देवी चंडिका का आगमन हुआ था “कल्पा” में

कभी “चीनी गांव” के नाम से जाना जाता था किन्नौर जिले का “कल्पा”

आज का किन्नौर जिले का कल्पा ही कभी चीनी गांव के नाम से प्रसिद्ध था। पर्यटक चीनी गांव आज भी अपनी समृद्ध विरासत और परंपरा के लिए जाना जाता है। यह शिमला से पौने तीन सौ कि.मी. दूर बहुत प्राचीन गांव है। कहा जाता है कि यहां कभी देवी चंडिका का आगमन हुआ। वह यहां ठहरीं थी। उस समय के शासक ने चंडिका देवी का विरोध किया। घमासान युद्ध हुआ। किन्तु जैसे ही देवी उस शासक का सिर काटती, वह पुन: जीवित हो उठता। दैत्य शासक संजीवनी विद्या का जानकार था वरना पुन: जीवित न हो पाता। गुरू शुक्राचार्य से ही उसने यह विद्या पाई थी। महाभारत के सभापर्व में इस विद्या का वर्णन पढऩे को मिलता है। जैसे भी हो, चंडिका देवी ही अन्तत: विजयी हुई और दैत्य का मारने में सफल हुई। इस चीनी गांव का सारा इतिहास जनुश्रुतियों पर आधारित है। उस दैत्य के वध के बाद पता नहीं कितने शासक आए होंगे और उस जनजातीय क्षेत्र में राज्य करते रहे होंगे।

कभी देवी चंडिका का आगमन हुआ "कल्पा" में

कभी देवी चंडिका का आगमन हुआ “कल्पा” में

दसवीं-गयारहवीं सदी में तिब्बती शासक वहां राज करते थे। उन्होंने इसे अपनी राजधानी बनाकर इस चीनी गांव का खूब विकास किया। समय बदला। ठाकुर शाही ने इस पर लम्बे समय तक सत्ता-सुख पाया। शत्रु कठिन मार्गों से वहां नहीं पहुंच सकते, इसलिए वहां के शासक निर्भय व शक्तिशाली माने जाते रहे। एक समय आया जब कामरू ठाकुरों ने चीनी के ठाकुरों को अपने अधीन करने की रणनीति बनाई। किन्नौर तथा बुशहर के राजाओं को परास्त किया। तभी आगे बढ़ सके।

यदि सन् 1959 में अगिनकांड की लपेट में वह किला न आता तो आज खण्डहर हालत में ही सही, अन्दर जाकर देखा जा सकता था

किले का राख होना ही चीनी गांव के इतिहास को समाप्त कर गया

आज की प्राथमिक पाठशाला कल्पा (चीनी गांव) के आस-पास ही तो तत्कालीन किला हुआ करता। कई बार किले बने होंगे। फिर ध्वस्त भी होते रहे होंगे। यदि सन् 1959 में अगिनकांड की लपेट में वह किला न आता तो आज खण्डहर हालत में ही सही, अन्दर जाकर देखा जा सकता था। किले का राख होना ही चीनी गांव के इतिहास को समाप्त कर गया।

नौवीं शताब्दी में रिमछे (रतन चंद्र) ने बनाया था बौद्ध मंदिर

कल्पा नगर (गांव) के ठीक बीचों-बीच भगवान विष्णु तथा भगवान नारायण के प्राचीन मंदिर दर्शनीय

नौवीं शताब्दी में रिमछे (रतन चंद्र) ने यहां बौद्ध मंदिर बनाकर इस स्थान के महत्व को बढ़ाया। यह भी अगिन काण्ड में स्वाहा हुआ। यहीं पर पुन: बौद्ध मंदिर निर्मित हुआ। नगर (गांव) के ठीक बीचों-बीच भगवान विष्णु तथा भगवान नारायण के प्राचीन मंदिर दर्शनीय हैं। कहने को दूरस्थ व जनजातीय क्षेत्र है किन्तु यह अत्यंत रमणीक है। उसकी खूबसूरती का वर्णन करना कठिन है। प्रकृति का अनुपम नज़ारा है यह कल्पा जो कभी चीनी गांव कहलाता था।

साभार : “देवभूमि हिमाचल”

सुदर्शन भाटिया

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