नवजात शिशु को स्वस्थ व रोगमुक्त रखने के लिए अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता
पहली बार मां बनने पर मन में कई तरह की मन में चिंता रहती है। शिशु की सही देखभाल की। पहली बार मां बनने के समय आपको यह पता नहीं होता है कि बच्चे की देखभाल कैसे करें। कैसे उसे गोद में लें, कैसे उसे दूध पिलाएं, कैसे उसे नहलाएं…। ऐसी कई जिम्मेवारियां है जो माता-पिता को बच्चे के जन्म से लेकर सालभर तक काफी सावधानी और समझदारी से उठानी पड़ती है। इसी विषय में आपको जानकारी देने जा रहे हैं राज्यस्तरीय मातृ एवं शिशु रोग कमला नेहरू अस्पताल (केएनएच) शिमला के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ व वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक रहे डॉ. एलएस चौधरी।
जन्म के बाद नवजात को मां का दूध ही पिलाएं
शुरुआती 6 महीनों तक माँ का दूध पीने वाले बच्चे होते हैं अच्छी तरह विकसित
मां के दूध को नवजात के लिए सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि इसमें पाया जाने वाला कोलेस्ट्रॉम नामक पदार्थ बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है और यह बच्चे को भविष्य में बीमारियों से भी बचाता है। इसलिए जन्म के बाद बच्चे को मां का दूध पिलाना चाहिए। जन्म के आधे घंटे के अंदर बच्चे को मां का दूध मिलना चाहिए। जीवन के पहले 6 महीनों तक बच्चे के लिए मां का दूध ही संपूर्ण आहार है। इस दौरान मां के दूध के अलावा कोई भी चीज न दें। कई लोग बच्चे को पानी, घुट्टी, शहद, नारियल पानी, चाय या गंगा जल पिलाने की गलती करते हैं, ऐसा नहीं करना चाहिए। शुरुआती 6 महीनों तक माँ का दूध पीने वाले बच्चे अच्छी तरह विकसित होते हैं। संक्रमण से उनका बचाव होता है। साथ ही उनमें अपने माता-पिता के प्रति भावनात्मक लगाव लंबे समय तक बना रहता है। 6 महीने की उम्र के बाद बच्चे को माता के दूध के अलावा ऊपरी आहार भी देना चाहिए।
बीमारियों से बचाने के लिए समय पर लगवायें टीके
जन्म के तुरंत बाद शिशु को पोलियो की दवा, बीसीजी और हिपेटाइटिस का टीका जरुर लगाएं
जन्म के तुरंत बाद शिशु को पोलियो की दवा, बीसीजी और हिपेटाइटिस का टीका देना चाहिए। शिशु को ठंड से बचाने के लिए
बीमारियों से बचाने के लिए समय पर लगवायें टीके
उसे पूरे कपड़े पहनाने चाहिए। कपड़ों के साथ ही उसे टोपी, ग्लवज और मोजे पहनाकर रखना चाहिए। बच्चे को मां के समीप रखना चाहिए, क्योंकि मां के शरीर से बच्चे को गर्मी मिलती है। यूँ तो नवजात शिशु की देखभाल के लिए मां को समुचित जानकारी मेडिकल व पेरामेडिकल स्टाफ द्वारा दी जानी अस्पताल में दी जाती है। अगर नहीं दी गई है तो आवश्यक है की माँ इस बारे में डॉक्टर से जरुर सलाह ले।
यदि आपका बच्चा अस्वस्थ है वो आवश्यक है कि आप उसे चिकित्सक निगरानी में रखें। इसके अलावा शिशु का शरीर बहुत ही संवेदनशील होता है, यदि बच्चे के कमरे का तापमान कम और ज्यादा हुआ तो बच्चे के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
बच्चा कितनी बार पेशाब कर रहा है, इसी से जान सकते हैं कि बच्चे को पूरा दूध मिल रहा है या नहीं
आपका शिशु काफी देर तक दूध तो पी रहा है लेकिन क्या जितना दूध उसने पिया है उससे उसकी जरूरत पूरी हो चुकी है? कैसे जानें कि आपका शिशु पर्याप्त दूध पी रहा है या नहीं? दरअसल, बच्चे के पेट के अंदर जाते हुए दूध दिखाई नहीं देता है, इसलिए हम बच्चे के यूरिन आउटपुट यानी बच्चा कितनी बार पेशाब कर रहा है, इसी से जान सकते हैं कि बच्चे को पूरा दूध मिल रहा है या नहीं। इस बात को जानने के लिए देखा जाता है कि बच्चा 24 घंटे में कितनी बार और कितनी मात्रा में पेशाब कर रहा है। अगर बच्चा चौबीस घंटे में से छह से आठ बार पेशाब कर रहा है तो समझ लेना चाहिए कि बच्चे को भरपूर मात्रा में दूध मिल रहा है।
एक सामान्य बच्चे को, एक दिन में छह से आठ बार पेशाब करनी चाहिए
एक सामान्य बच्चे को, एक दिन में छह से आठ बार पेशाब करनी चाहिए। पेशाब का रंग साफ होना चाहिए। पेशाब पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए। ये जानने के लिए कि बच्चे का पेशाब ठीक है या नहीं, इस बात की जांच जरूर करें कि पेशाब क्लियर होनी चाहिए, यानी उसका सफेद कपड़े पर कोई निशान नहीं पड़ना चाहिए। जहां तक संभव हो सके, प्रसव हमेशा अच्छे अस्पताल में ही होना चाहिए, ताकि चिकित्सक और नर्स की सेवाएं मिल सकें। इससे जटिलताओं की आशंका कम हो जाती है। किसी भी प्रकार की जटिलता पेश आने पर हॉस्पिटल में तुरंत उससे निपटने की व्यवस्था की जा सकती है।
बच्चे की त्वचा और शरीर बहुत ही नाजुक होता है, इसलिए उसपर विशेष ध्यान देने की जरूरत
शिशु की साफ-सफाई करते समय विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता
बच्चे की त्वचा और शरीर बहुत ही नाजुक है, इसलिए उसपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। यदि आपको बच्चे के देखभाल के निर्देश की जानकारी नहीं है तो चिकित्सक से सलाह अवश्य लीजिए। शिशु की त्वचा बहुत अधिक संवेदनशील व कोमल होती है। इसलिए शिशु की साफ-सफाई करते समय विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता होती है। कमर के नीचे, पिछले हिस्से, मुँह, गर्दन तथा त्वचा के मोड़ों के सिवाय शिशु के शरीर के अन्य हिस्से आसानी से गन्दे नहीं होते, इसलिए हर रोज शिशु का मुँह, हाथ और पिछला हिस्सा साफ करने से ही काम चल जाता है। शिशु की आंखों को नियमित रूप से साफ करना भी बहुत जरूरी होता है। शिशु की सफाई के लिए साफ रूई या कोमल कपड़े का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा, सफाई जिस पानी से की जानी है वह साफ हो।
स्वच्छता… बच्चे और मां को रोज नहाना चाहिए
मां को स्वच्छता का पूरा ख्याल रखना चाहिए ताकि बच्चा गंदगी व संक्रमण की चपेट में न आ सके। गद्दे और चादर साफ होने चाहिए। मां और बच्चे दोनों के कपड़े साफ धुले हुए होने चाहिए। बच्चे और मां को रोज नहाना चाहिए। मां के नाखूनों में मैल जमा नहीं होना चाहिए।
बच्चे की मालिश हल्के हाथ से करें
बच्चे की मालिश हल्के हाथ से करें
बच्चे की मालिश करना फायदेमंद होता है, यह वैज्ञानिक रूप सही माना जाता है। मालिश हल्के हाथ से करना चाहिए। मालिश दोपहर के समय करना चाहिए, ताकि बच्चे को ठंड न लगे। छोटे बच्चों की मालिश करने से उनकी हड्डियां मजबूत बनती हैं और यह मालिश बेहद आवश्यचक है। नवजात की मालिश के लिए बादाम का तेल प्रयोग कर सकती हैं। जन्म के 10 दिन के बाद बच्चे के शरीर की मालिश कर सकते हैं।
नवजात को क्या पहनाएं…
गर्मी का मौसम हो तो नवजात को कॉटन के ढीले कपड़े पहनाने चाहिए। बच्चे का शरीर पूरी तरह ढंका होना चाहिए, ताकि उसे ठंड न लग पाए और मच्छरों से बचाव हो सके। गर्मी में बच्चे को ऊनी कपड़े पहनाने की आवश्यकता नहीं होती है। मौसम में ठंडक होने पर ही ऊनी कपड़े पहनाएं। ठंड के मौसम में ऊनी कपड़े पहनाएं, लेकिन अंदर पतला, नर्म कॉटन कपड़ा जरूर पहनाएं।
बच्चे को ढकना
नवजात शिशु के शरीर को हमेशा ढककर रखना चाहिए क्यों कि छोटे बच्चों का शरीर बाहरी तापमान के अनुसार स्वयं को ढाल नहीं पाता है। नवजात जहां हो वहां का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस के आसपास होना चाहिए।
बच्चों की आंखों में न लगाएं काजल
बच्चों की आंखों में काजल लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि काजल लगाने से बच्चों की आंखें बड़ी होती हैं। भ्रांतियों से दूर रहे और बच्चों की आंखों में काजल न लगाएं।
शिशु का रोना
नवजात का रोना हमेशा चिंता की बात नहीं होती। ज्यादातर बच्चे भूख लगने पर या बिस्तर गीला करने पर रोते हैं। बच्चे के रोने पर इन बातों का ध्यान दें। अगर बच्चा लगातार रोता रहता है, तो उसे चिकित्सक को दिखायें।
बच्चे के लिए फोटोथेरेपी
बच्चे को कुछ देर धूप में ले जाने की प्रकिया को फोटोथेरेपी कहते हैं। नवजात को कुछ समय के लिए कपड़े में ढककर धूप भी दिखाएं। इससे बच्चे की हड्डियां मजबूत होंगी।
कपड़ों पर ध्यान
बच्चे को मुलायम कपड़े पहनाने चाहिए, इसके अलावा बच्चे के कपड़े हमेशा अलग से साफ करें और अलग से सुखायें। नहीं तो उनकी त्वचा में संक्रमण हो सकता है।
नवजात बच्चे के लिए सबसे अच्छा खाना, मां का दूध
0-3 महीने के शिशु के लिए आहार
नवजात बच्चे के लिए सबसे अच्छा खाना, मां का दूध होता है। मां का दूध, शुद्ध, मिलावट रहित और सभी पोषक तत्वों
नवजात बच्चे के लिए सबसे अच्छा खाना, मां का दूध
से भरपूर होता है। इसके सही मात्रा में सेवन करवाने से बच्चा हष्ट – पुष्ट रहता है। इसके पीने से मां और बच्चे के बीच एक भावनात्मक रिश्ता बन जाता है। ब्रेस्ट मिल्क में इम्युनोग्लोबुलिन ( सुरक्षात्मक प्रोटीन ) मिला होता है जो बच्चे को बाहरी संक्रमण से बचाकर रखता है।
कुछ मां, बच्चे के इस नाजुक दौर में उबला पानी, फ्रुट जूस और ग्लूकोज पानी भी देती है जो आवश्यक नहीं होता है। मां का दूध, बच्चे के शरीर से बीमारियों और एलर्जी को दूर भगा देता है। जो बच्चा, मां का दूध नियमित रूप से पीता है उसे अस्थमा जैसे रोग होने का चांस बहुत कम होता है। 34 सप्ताह से छोटा नवजात, मां का दूध पीने में थोडा कम सजग होता है, ऐसे में मां को बच्चे को एक्सप्रेस्ड ब्रेस्ट मिल्क देना आवश्यक होता है।
शुरूआत के 3 महीने में, मां का भोजन भी बच्चे के स्वास्थ्य पर प्रभाव ड़ालता है। इसलिए, डिलीवरी के बाद महिला को अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए और अपनी डाइट को बैलेंस रखना चाहिए। अगर मां को स्तनों में दूध सही तरीके से नहीं बनता है या कोई समस्या है तो तुरंत डाक्टर से सही परामर्श लें।
3-6 महीने के शिशु का आहार, लेकिन बच्चे को ऐसे आहार बिलकुल न दें जिससे पचने में हो दिक्कत
बच्चे को 6 महीने तक केवल मां का दूध देना चाहिए। 6 महीने के बाद बच्चे को ठोस आहार भी दे सकते हैं, लेकिन बच्चे को ऐसे आहार बिलकुल न दीजिए जो पचने में दिक्कत हो। बच्चे की इस उम्र से उसके शरीर को पोषक तत्वों की भरपूर आवश्यकता पड़ती है। इस दौर में शिशु का आहार, मां के दूध पर ही निर्भर न रहकर बल्कि कुछ ठोस आहार में भी परिवर्तित हो जाता है जैसे – पका हुआ भोजन। इसकी शुरूआत बच्चे को सेरेलेक देकर करनी चाहिए, जिसे अच्छी तरह से मैश करके बच्चे को थोडे – थोडे अंतराल पर देना चाहिए, इससे बच्चे को शरीर के विकास के लिए पर्याप्त पोषक तत्व मिलेगें। मां के दूध के साथ बच्चे को सेरेलेक दे सकते हैं ।
6-8 महीने के बच्चे के लिए फूड
6 महीने के बाद बच्चे, ठोस आहार लेना पसंद करते है। बच्चों को इस समय तक फल, सब्जियां देना शुरू कर देना चाहिए। छ: महीने के बाद बच्चे के दांत निकलने शुरू होते है। इस समय उनके दांतों में इरीटेशन होती है और वो उस इरीटेशन को शांत करने के लिए किसी भी चीज को मुंह में डाल लेते है और उसे मुंह में ही बनाएं रखते है। इससे उन्हे दस्त होने की संभावना होती है। इस आदत को कम करने के लिए बच्चे को एक बिस्कुट या टोस्ट दे दें जिसे वह चूसता रहे और चबा न पाएं।
बच्चे को भोजन बोतल से न दें, खाने को चम्मच से खिलाने की आदत डालें..जारी…
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