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इस अधिनियम की उपरोक्त दो धाराओं के शामिल कर लिये जाने के बाद यदि शिक्षक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए अपने कार्य व्यवहार में बदलाव लाएंगे तो बहुत सारे पक्षों में आशातीत सफलता हासिल होगी। यही नहीं बच्चे, बाल जीवन और स्कूल से जुड़ी कई समस्याएं धीरे-धीरे हाशिए पर चली जाएंगी। मौटे तौर पर निम्नांकित बिंदु हैं, जो इस अधिनियम का पालन करने पर हमें समाज में-स्कूल में और घर-परिवार में धीरे-धीरे दिखाई देंगे।
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समाज में पसरा जातिगत और सामुदायिक भेदभाव आखिरकार दूर होगा।
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सभी के लिए स्कूल के द्वार खुलेंगे और स्कूल विविधताओं से भरे बच्चों की एक पौधशाला के रूप में दिखाई देंगे।
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स्कूल न पढ़ने-पढ़ाने के औपचारिक केन्द्र रहेंगे बल्कि उचित देखभाल और सुरक्षित संस्थान के रूप में स्थापित होंगे। यही नहीं डर के अभाव में स्वतः ही बच्चों की नियमित उपस्थिति रहेगी।
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स्कूल शिक्षा प्राप्त करने का ऐसा आनन्दालय होगा जहां निष्पक्षता,पारदर्शिता और भेदभाव रहित नियम के साथ बच्चे सहभागिता करते हैं।
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किसी एक भी बच्चे के मन में कभी यह बात घर नहीं करेगी कि स्कूल में समान अवसर नहीं दिये जाते। पर्याप्त अवसर नहीं मिलते। दूसरे शब्दों में अब हर किसी बच्चे को भरपूर अवसर मिलेंगे कि वह अपनी क्षमताओं का उपयोग करे।
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बच्चे स्कूल में मिल रही शिक्षा पर खुद भी टिप्पणी कर सकेंगे। स्कूल से जुड़े कई मसलों पर बच्चे अब खुल कर बेबाक राय दे सकेंगे। यह सब इसलिए हो सकेगा कि अब बच्चों के मन से मारपीट-पिटाई और दण्ड का भय नहीं रहेगा।
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परिवार के बाद स्कूल ही दूसरा ऐसा बड़ा क्षेत्र है जो बच्चों पर सर्वाधिक प्रभाव डालता है। यदि स्कूल भयरहित, दण्डरहित होगा तो निश्चित ही विद्यालय आनंदालय बन सकेंगे।
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यह ऐतिहासिक पहल है कि बच्चे स्कूल में अब ऐसी शिक्षा के हकदार हैं, जो शिक्षक के माध्यम से उनके व्यक्तित्व में पूर्ण निखार लाने में संपूर्ण रूप से ज़िम्मेदारी निभाएगा।
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शारीरिक रूप से दंडित करने और मानसिक पीड़ा पहुंचाने के स्कूली मामले खत्म हो जाएंगे। इससे स्कूल में बच्चे में सीखने की गति बढ़ेगी। बच्चों में स्वतः सीखने की प्रवृति बढ़ेगी। अब उन में शिक्षक की सहायता से समग्रता से सोचने, कारण जानने, सीखने की क्षमता बढ़ाने, दूसरों का सम्मान करने और समानता का भाव मन में संजोने में आशातीत वृद्धि होगी।
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इसमें कोई दो राय नहीं कि निकट भविष्य में शिक्षण संस्थान बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित और संरक्षित केन्द्र माने जाएंगे। जहां बच्चे सुकून से अपनी समझ
प्रवेश लेने के दौरान कोई व्यक्ति या स्कूल किसी प्रकार का शुल्क या किसी बच्चे अथवा उसके माता-पिता या अभिभावक से किसी प्रकार की जांच नहीं ले सकता।
विकसित करेंगे। बाल मैत्रीपूर्ण शिक्षा और खुद करके सीखने के साथ-साथ उनकी अभिव्यक्त करने की क्षमता का भी समग्र विकास होगा।
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वर्तमान समय में कई शिक्षण संस्थाएं छात्र उत्पीड़न-दण्ड-भय के कारण विवादों में आती रही है। अब जब अधिनियम उपरोक्त धाराओं के क्रम में बच्चों के साथ नम्रता से पेश आने की सिफारिश ही नहीं करता बल्कि शिक्षकों पर बाध्यकारी है। इसके भी दूरगामी परिणाम सामने आएंगे। शिक्षण संस्थाएं और शिक्षक अब प्रायः जांच-पड़ताल, समन, न्यायालय आदि के प्रकरणों से मुक्त होकर स्वाध्याय और अध्यापन में अधिक समय दे सकेंगे।
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बच्चों को सजा न देने, उन्हें भयभीत न करने को लेकर शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों में वर्तमान में जो संशय है, वह भी कमोबेश धीरे-धीरे दूर होता चला जाएगा। दुनिया तेजी से बदल रही है। शिक्षक को भी आ रहे इस बदलाव के चलते अपनी शिक्षण पद्वति भी बदलनी होगी। यकीनन इस बदलाव से शिक्षकों की लोकप्रियता ही बढ़ेगी।
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बच्चों को भयमुक्त रखने, उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ रखने की कवायद में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण है। शिक्षक के आचरण में सख्ती की जगह मैत्रीपूर्ण व्यवहार, कड़े अनुशासन की जगह लचीली व्यवस्था, पिटाई की जगह अपनत्व, बच्चों को चिन्ता से उनमुक्त रखने से परिणाम यह होगा कि समाज में शिक्षक की आज की भूमिका भी बदल जाएगी। भविष्य में समुदाय और समाज शिक्षक को बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और निगरानी का महत्वपूर्ण हिस्सा मानने लगेगा। यह हर शिक्षक के लिए गौरव की बात होगी।
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यह कहना गलत होगा कि भय के बिना बच्चे सीखते नहीं है। शोध बताते हैं कि भयमुक्त वातावरण में बच्चा सहजता से और तीव्रता से सीखता है। यही नहीं भय और दबाव के मुक्त कक्षा-कक्ष में शिक्षक की शिक्षण शैली ज्यादा प्रभावशाली और गुणवत्तापरक होती है।
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भय और दण्ड के अभाव में बच्चों में सीखने की एक समान सामर्थ्य को बल मिलेगा। शिक्षाविद् मानते भी है कि बच्चों में सीखने के लिए एक समान सामर्थ्य होती है। लेकिन बेहतर परिणाम से इतर बच्चे पिछड़ रहे हैं तो यह समस्य बच्चों के साथ नहीं है, बल्कि भिन्न परिवेश, अनियमित व्यवहार और शिक्षण का बहुआयामी तरीका न होने से उत्पन्न हुई है। इसके पीछे कहीं न कहीं मनोवैज्ञानिक, मानसिक दबाव और भय भी कारक होते हैं। भयमुक्त वातावरण में बच्चों की सीखने की सामर्थ्य बढ़ेगी।
Oct 01, 2016 - 10:35 PM
आज भी मधेपुरा जिला के अधिकांश निजी स्कूल में मुफ़्त नामांकन बच्चों का नहीं होता है जिसे कराई से लागु करने की जरुरत है ताकि गरीब के बच्चे भी अच्छी शिक्षा पा सके
Jan 09, 2017 - 06:59 PM
Primary school chandpara ‘po balupara ps barsoi distt katihar main ek matr urdu trachers hai jis ka Teachers student ratio ke hisab se transfer ho jane ke karan mera beti ka 4th class main ka urdu shicha bhadhit hone ki sambhawana hai iske liye kiya shicha ka adhikar main koi upai hai kirpa karke disha nirdesh de
Mar 31, 2017 - 08:09 AM
मेरा नाम राकेश सोनानी हे.मे बोर्डा ग्रामपंचायत अधीन वरोरा तहसिल चंद्रपुर जिल्हे की सेंट अॅन्स पब्लिक स्कुल मे मेरी बच्ची 4 वर्ष की स्कुल की पुरी फिस भरता हु यहा आर टी ई के तहत कोई भी नियम का पालन नही होता बच्चो जो एस.स्सी प्रवर्ग से हो या दलित सभी से फिस की सख्ती की जाती है…
Apr 26, 2017 - 03:38 PM
आज भी जयपुर राजसथान में स्कूल में बच्चो को मिलने वाली सुविधा स्कूल वाले गरीब को न दे कर सम्पन लोगो को दे रहे है गरीब का तो नाम है जिन को मिलना चाहिए उन्हें पूरा हक नही मिल पा रहा
Apr 30, 2017 - 08:02 AM
प्राय: सभी प्राइवेट स्कूलों में नामांकन के पूर्व ‘प्रवेश-परीक्षाएँ’ आयोजित कर बच्चों को Qualify/Disqualify करने का मानक अपनाया जा रहा है; कृपया माननीय लोग ध्यान दें।
Jun 30, 2017 - 09:38 AM
वार्ड न. 24 महाराणा प्रताप वार्ड(सोनपुर)छिंदवाड़ा में न्यू ज्ञान दीप पब्लिक स्कूल में RTE नियम का पालन नहीं हो रहा है।यहाँ पर बच्चों से फ़ीस वसूली जा रही है ।और स्कूल में सुविधा भी नहीं है।
Jul 18, 2017 - 08:34 PM
कृपया कोई ये बताये की किसी भी बच्चे को जो 6 से 14 वर्ष की उम्र का हो उसे हम बिना किसी दस्तावेज जैसे टी.सी .या अंक सुचि के भी शासकीय स्कूल में प्रवेष दे सकते है ? यदि हां तो किस धारा के तहत । क्योकि निजी स्कूल संचालक बच्चों को एक बार प्रवेष देकर टीसी नही देते है और मोटी फिस देना पालको की मजबुरी बन गई । कई पालक अपने बच्चोा को शासकीय स्कूल में प्रवेष दिलवाना चाहते है परन्तु निजी स्कूलो की मनमानी के चलते कई बच्चें शिक्षा से वंचित रह रहे है।