गोविन्द सागर जलाश्य में मत्स्य विक्रय के लिए ई-टेंडर प्रक्रिया अपनाई जाएगीः वीरेन्द्र कंवर

पौंग जलाशय से मिला 2800 मछुआरों को रोजगार, वर्ष 2019-20 में 266 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से हुई मछली की बिक्री

  • वर्ष 1975 में था 98 टन मछली उत्पादन, जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर हुआ 287.513 टन

ठाकुर रीना राणा/शिमला: प्रदेश सरकार कांगड़ा जिला की शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बने पौंग बांध जलाशय के माध्यम से लगभग 2800 मछुआरों को रोजगार उपलब्ध करवा रही है। वर्ष 2019-20 में इस जलाशय से 266 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से मछली की बिक्री हुई जो देश के सभी बड़े जलाशयों की तुलना में अधिक है। यह बांध शिवालिक पहाड़ी के आर्द्रक्षेत्र में ब्यास नदी पर सन 1975 में बनाया गया था जिसका 12,561 वर्ग किलोमीटर का जलग्रहण क्षेत्र है और इसमें 15,662 हैक्टेयर में पानी फैला हुआ है। यह हिमाचल प्रदेश के हिमालयी तलहटी में मछली उत्पादन के लिए प्रमुख जलाशय के रूप में उभरा है।

वर्ष 1975 में मत्स्य पालन विभाग द्वारा पहली बार मछली परीक्षण किया गया था। पहले वर्ष में मछली उत्पादन 98 टन था जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर 287.513 टन हो गया। प्रदेश सरकार ने 1975 से सहकारी समितियों के माध्यम से विस्थापित परिवारों के युवाओं को आजीविका सुनिश्चित करने के लिए मछली पकड़ने का अधिकार दिया।

  • मछुआरों की 15 सहकारी समितियां कार्यरत, 2800 लाईसेंस धारक मछुआरे कर रहे कार्य

वर्तमान में मछुआरों की 15 सहकारी समितियां कार्यरत हैं जिन्होंने लगभग 3,902 मछुआरों को सदस्यता प्रदान की है और 2800 लाईसेंस धारक मछुआरे जलाशयों में कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में मत्स्य पालन के व्यवसाय से जुड़े 2800 सक्रिय मछुआरे विस्थापित परिवारों से सम्बन्ध रखते हैं। इसके अतिरिक्त 2800 मछुआरों को प्रत्यक्ष  रोजगार के अलावा मछली पकड़ने की गतिविधियां, उनकी सहायता करने, ढुलाई, परिवहन, मछली की पैकिंग, बुनाई और उनके विपणन आदि के लिए एक हजार से अधिक परिवारों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान किया गया है।

ग्रामीण विकास, पंचायती राज और मत्स्य विभाग के मंत्री वीरेंद्र कंवर ने बताया कि लगभग 24,483 हैक्टेयर में फैले पानी के साथ पौंग बांध जलाशय को मछली उत्पादन करने तथा उनकी उच्चतम दर प्राप्त करने के लिए देश के बड़े जलाशयों में सर्वश्रेष्ठ प्रबन्धित जलाशय के रूप में आंका गया है। पौंग जलाशय में वर्ष 1975-75 के दौरान संग्रहण कार्यक्रम आरम्भ किया गया था और तब से यह कार्यक्रम नियमित रूप से चल रहा है। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से मीरकाप और भारत की प्रमुख एल.रोहिता, सी.कातला तथा सी.मीरगला नामक मछलियों के बीज भी तैयार किए जा रहे हैं।

प्रारम्भिक वर्षां के दौरान सैलमोनिडैक, साईप्रिनिडैक, कॉबीटिडैक तथा सिसोरिडेई आदि परिवार से सम्बन्धित रिहोफिलिक प्रजाति की मछली की प्रभुता थी। यद्यपि भारतीय मीरकाप के साथ मछली पालन विभाग द्वारा कई वर्षों से जलाशय और प्रणालीगत बीज भण्डार की कैच संरचना से नई बायोजैनिक क्षमता की 50 से 60 प्रतिशत कार्पस मछलियां तैयार की जा रही थीं लेकिन बाद में 1990 के दौरान कैटफिश का उत्पादन शुरू किया गया। वर्ष 2004-05 के दौरान प्रति जलाशय 27.4 किलो प्रति हैक्टेयर उत्पादन हो गया जिसमें कैटफिश और कॉर्प का उत्पादन 83 प्रतिशत और 17 प्रतिशत हुआ। वर्तमान में जलाशयों में 34.48 प्रतिशत कॉर्प कॉर्प और 65.52 प्रतिशत कैटफिश पकड़ी जा रही है।

वीरेंद्र कंवर ने कहा कि कोलबांध, गोबिन्दसागर, चमेरा, रणजीत सागर तथा पौंगबांध परियोजनाओं के पूरा होने से मछली पकड़ने की गतिविधियां के लिए मुख्यतः 6 हजार से अधिक मछुआरों के परिवारों को पूर्णकालिक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान किया जा रहा है। गरीब मछुआरों के हितों की रक्षा के लिए मत्स्य पालन विभाग मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रहा है।

  • प्रत्येक वर्ष गर्मियों के दौरान खुली नीलामी के माध्यम से दरें तय
  • विभाग की मछली की कुल बिक्री आय में 15 प्रतिशत रायल्टी

प्रत्येक वर्ष की शुरूआत में ही गर्मियों के दौरान खुली नीलामी के माध्यम से दरें तय की जाती हैं जो पहली अप्रैल से 30 सितम्बर और सर्दियों में पहली अक्तूबर से 31 मार्च तक मान्य होती हैं। विभाग मछली की कुल बिक्री आय में 15 प्रतिशत रायल्टी लेता है जबकि सहकारी समितियां 5 से 7 प्रतिशत कटौती के बाद नियमित रूप से 10 मछुआरों को प्रति सप्ताह भुगतान करती है। इसी प्रकार मछुआरों को उनके मछली पकड़ने की लागत का 78 से 80 प्रतिशत दिया जाता है।

  • मछुआरों के लिए गहरे पानी में गीयर्स के संचालन के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरू

मत्स्य पालन विभाग ने अन्य मछुआरों के लिए गहरे पानी में गीयर्स के संचालन के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरू किया है जिसमें विभिन्न समुदायों के मछुआरों को मछली पकड़ने के व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। पौंग जलाशय में ज्यादातर मछुआरे पूर्णकालिक मछुआरे हैं और औसतन हर मछुआरे के पास लगभग 60 हजार रूपये मूल्य की एक नाव है। मछुआरे आम तौर पर जाल का उपयोग करते हैं। आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियों के लिए न्यूनतम स्वीकार्य आकार विभाग द्वारा ही तय किया जाता है।

 

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