मौसम का बदलता मिज़ाज सेब बागीचों में कीट-माईट व रोग बढ़ाने में सहायक : बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

मौसम का बदलता मिज़ाज सेब बागीचों में कीट-माईट व रोग बढ़ाने में सहायक : बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

  • तापमान में कमी फलों के सामान्य विकास पर प्रभाव
मित्र कीट  लेडी बर्ड बीटल, कोकसिनेल्ला प्रजाति

मित्र कीट लेडी बर्ड बीटल, कोकसिनेल्ला प्रजाति

पिछले कुछ दिनों से मई के महीने में पहाड़ी स्थानों पर ठण्ड का प्रकोप गर्मी के महीने में देखने को मिल

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

रहा है। कुछ स्थानों पर ओलावृष्टि व अन्य में वर्षा हो रही है जिससे सामान्य तापमान में 2-4 डिग्री सेल्सियस की कमी दर्ज की गई है। जहां वर्षा प्राप्ति से भूमि में नमी बढऩे को मिल रही है वहीं तापमान में कमी सामान्य होने वाले पौधों के विकास में कमी देखी जा रही है। मौसम का यह मिज़ाज सेब बागीचों में कई कीट-माईट व रोग को बढ़ाने में सहायता करता है।

  • 22-26 डिग्री सेल्सियस के मध्य तापमान सेब बागीचों का सही विकास

तापमान में कमी का सीधा अर्थ है फलों के सामान्य विकास पर प्रभाव यानि विकास सही अर्थों में तभी हो पाएगा जब तापमान 22-26 डिग्री सेल्सियस के मध्य हो। इस अवस्था के लिए कुछ समय लग सकता है क्योंकि मौसम विभाग द्वारा जारी किए गए पूर्वानुमान के अनुसार अभी 21 मई तक तो वर्षा जल की प्राप्ति होने की संभावना जताई गई है।

  • पौधों के तौलिए में घास बिल्कुल न रखें
  • खर-पतवार से मुक्त रखें पौधों के तौलिए

वर्षा जल की उपलब्धता के कारण घास में भी बढ़ोतरी देखने में मिलती है तो यह ध्यान अवश्य रखें कि पौधों के तौलिए में घास बिल्कुल भी न हों, यानि साफ रखे और घास को तौलिए के बाहरी भाग में रख सकते हैं। यदि हो सके तो घास को पूर्ण रूप से उखाड़ दें क्योंकि काटने से घास बार-बार उग आती है और पौधों के तौलिए में प्राप्त नमी को कम करती है तथा पौधों के लिए प्रयोग किए गए उर्वरक व खाद के पोषक तत्वों को भी उपयोग कर पौधों में इन तत्वों की कमी करने में सहायक है। अत: तौलिए को खर-पतवार से मुक्त रखें।

  • प्रदेश के निचले क्षेत्रों में फल सैटिंग संतोषपूर्ण
  • मध्य व उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में फल सैटिंग मध्यम से कम
  • वर्षा व ओलावृष्टि के कारण फूलों को पहुंची हानि तथा फल बनने की प्रक्रिया में भी बाधक बनी वर्षा

प्रदेश के विभिन्न भागों से सेब के पौधों में फल सैटिंग की सूचना के अनुसार प्रदेश के निचले क्षेत्रों में फल सैटिंग संतोषपूर्ण है। मध्य व उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में मध्यम से कम आंकी गई है। जिन बागीचों में पिछले दो वर्षों से फल की प्राप्ति निरन्तर हो रही थी, वहां भी फसल कम है। बागवानों को यह समझना आवश्यक है कि 25-33 प्रतिशत परागण किस्मों, परागण कीट विशेषकर मधुमक्खियों की व्यापक उपलब्धता तथा तापमान 18-25 डिग्री सेल्सियस होने पर ही सफल फल प्राप्ति संभव है। किसी एक घटन की कमी के कारण फल प्राप्ति कम हो जाती है। इस वर्ष कई स्थानों पर जब फल पूरा खिला था तभी व्यापक वर्षा व ओलावृष्टि

चूर्ण फफूँद (पाउडरी मिल्डीयू ) रोग ग्रसित पत्तियाँ

चूर्ण फफूँद (पाउडरी मिल्डीयू ) रोग ग्रसित पत्तियाँ

के कारण भी फूलों को हानि पहुंची तथा फल बनने की प्रक्रिया में वर्षा बाधक बनी।

रेड माइट ग्रसित  पत्ती के लक्षण

रेड माइट ग्रसित पत्ती के लक्षण

परागण किस्मों में जहां एक बीमे पर एक-दो फल से अधिक लगा है उसे कम कर दें और एक बीमा खाली भी होना चाहिए, ताकि उसमें अगले वर्ष फूल आने की संभावना बन सके। यह कार्य फल बनने की प्रक्रिया से चैरी के आकार तक अवश्य करें, यदि देरी से फल विरलन करेंगे तो फल के आकार में आंशिक लाभ ही होगा, अत: यह कार्य को शीघ्रातिशीघ्र करें।

  • अवांछित टहनियां या नई शाखाएं निकलने पर उन्हें तुरन्त हटा दें

जिस स्थान पर अवांछित टहनियां या नई शाखाएं निकल रही हों, उन्हें तुरन्त हटा दें इससे पौधों के भीतरी भाग में अधिक प्रकाश आ पाएगा, फल के रंग में सुधार होगा, रैड माईट व पूर्व पत्ती झडऩ रोग के प्रकोप में भी कमी होगी। तने के समीप पैदा होने वाले जड़वों को भी तुरन्त हटाएं, इससे वूली एफिड की जीवसंख्या भी कम बढ़ेगी, तथा फलों में पर्याप्त विकास होगा। बागवानों में यह संशय बना रहता है कि इस समय पौधों के किसी भाग को काटा नहीं जा सकता, जो एक भ्रम है। पौधों की कोमल शाखाओं को जिनका विकास इसी वर्ष हुआ हो और जो सही दिशा में न जाकर अवरोध उत्पन्न करती हों या अधिक संख्या में होकर पौधों के भीतरी भाग में सामान्य प्रकाश व हवा के आवागमन में बाधक बनती हों, उन्हें तुरन्त हटा देने में भलाई है, अन्यथा यही शाखाएं सर्द ऋतु में जब यह पूरी विकसित होकर पौधों के पोषक तत्वों को उपयोग कर बड़ी हो जाएंगी, तब भी हटानी ही पड़ेगी। परन्तु इससे पौधों के विकास व गुणवतायुक्त फल की प्राप्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

  • आजकल पौधों की नई पत्तियों व शाखाओं पर चूर्ण फफूंद रोग का प्रकोप

आजकल हवा में कम नमी होने पर चूर्ण फफूंद रोग जिसे पाउडरी मिल्डियु कहते हैं, का प्रकोप पौधों की नई पत्तियों व शाखाओं पर देखने में मिलता है और इसके प्रबन्धन के लिए कन्टाज, स्कोर इत्यादि फफूंदनाशकों का प्रयोग किया जाता है। चूर्ण फफूंद रोग के कारण टहनियों का विकास अवरूद्ध हो जाता है और पत्तियां कम होने के कारण फल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

  • रैड माईट का प्रकोप फल के आकार, रंग और स्वाद को करता है प्रभावित

    मित्र कीट लेडी बर्ड बीटल कोकसिनेल्ला की अन्य प्रजाति

    मित्र कीट लेडी बर्ड बीटल कोकसिनेल्ला की अन्य प्रजाति

इस रोग के अतिरिक्त रैड माईट का प्रकोप भी सेब बागीचों में सामान्यत: देखने में मिलता है

वयस्क मादा रेड माइट

वयस्क मादा रेड माइट

जिसके कारण पत्तियों का रंग गहरे हरे से हल्का हरा तथा आक्रमण अधिक होने पर खाकी रंग में परिवर्तित हो जाता है जिसके कारण पत्तियों का विकास रूक जाता है और यह भोजन बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित करके, फल के आकार को बढऩे नहीं देता और रंग भी बहुत हल्का और फल स्वाद रहित बनता है।

  • माईट की बढ़ती जीवसंख्या को इस समय नियंत्रण करना आवश्यक

माईट की बढ़ती जीवसंख्या को इसी समय नियंत्रण करने की आवश्यकता होती है अन्यथा यह रैड माईट जून-जुलाई में अत्यधिक संख्या में बढक़र फल उत्पादन को प्रभावित करती है। इसके आक्रमण के कारण अगले वर्ष की फल उत्पादन क्षमता भी प्रभावित होती है।

  • चूर्ण फफूंद, रैड माईट के नियन्त्रण के लिए हार्टीकल्चरल मिनरल तेल एचएमओ 2 लिटर 198 लिटर पानी में मिलाकर छिडकें

अत: चूर्ण फफूंद (पाउडरी मिल्डियु), रैड माईट के सफल नियन्त्रण के लिए हार्टीकल्चरल मिनरल तेल एचएमओ 2 लिटर 198 लिटर पानी में मिलाकर छिडक़ने से दोनों समस्याओं का हल होता है। इसके अतिरिक्त पौधों में दिए गए शत्रु कीट के अण्डे, छोटे सुडिंया जो फलों की चमड़ी को खाती हैं का भी पूरा नियन्त्रण मिलता है। एचएमओ में स्वीकृत ब्रांड मैक आल सीजन एचएमओ, आरबोफाईन, सर्वो एचएमओ या एचपीएचएमओ से किसी एक का प्रयोग कर सकते हैं। एचएमओ का छिडक़ाव यदि शाम के समय 3 बजे के बाद किया जाए तो अधिक लाभकारी सिद्ध होता है। एचएमओ के छिडक़ाव से पत्तियों का रंग भी गहरा

वयस्क मादा रेड माइट

वयस्क मादा रेड माइट

हरा होकर भोजन बनाने की प्रक्रिया में सहायक होता है, पत्तियों का गहरा रंग ही अधिक भोजन

बनाने में सक्षम होता है। इसी छिडक़ाव को 15 दिनों के अन्तराल के पश्चात एक बार फिर से

रेड माइट ग्रसित पत्ती के लक्षण

रेड माइट ग्रसित पत्ती के लक्षण

दोहराया जा सकता है। प्रत्येक बार केवल 2 लिटर एचएमओ 198 लिटर पानी में घोलकर प्रयोग करें।

पोषक तत्व विशेषकर सूक्ष्म पोषकों का प्रयोग इस समय करना लाभप्रद है। इसके लिए एग्रोमिन या मल्टीप्लैक्स 500 ग्राम 200 लिटर पानी में मिलाकर छिडक़ें। कैल्शियम की कमी भी पिछले कुछ वर्षों से देखी गई है इसकी पूर्ति के लिए चिलेटिड कैलशियम 33 ग्राम फ्री 200 लिटर पानी में मिलाकर छिडक़ें, यह कैल्शियम एग्रोमिन में भी संयुक्त घोल बनाकर प्रयोग की जा सकती है। इसी मात्रा में दो बार कैल्शियम 15 दिनों के अन्तराल पर प्रयोग करें।

  • फफूंदनाशक की आवश्यकता जून 20-30 के मध्य आवश्यक
  • वैज्ञानिक सलाह से कार्य कर गुणवत्तायुक्त फल उत्पादन से ही अच्छी आय प्राप्ति संभव

अभी किसी फफूंदनाशक के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है यदि बागवानों ने उपरोक्त छिडक़ाव किए हों। फफूंदनाशक की आवश्यकता जून 20-30 के मध्य आवश्यक है यानि मानसून वर्षा के आगमन से 10-15 दिन पूर्व, यह छिडक़ाव पूर्व पत्ती झडऩ रोग की रोकथाम के लिए अतिआवश्यक है। अधिक फफूंदनाशक, कीटनाशक पोषक तत्व या उर्वरक प्रयोग न करें, पत्तियों को स्वस्थ रखें और वैज्ञानिक सलाह से कार्य कर गुणवत्तायुक्त फल उत्पादन से ही अच्छी आय प्राप्ति संभव है।

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