तापमान में गिरावट सभी पहलुओं से बागीचों के लिए लाभकारी : बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

  • तौलिया बनाने का सही समय मिट्टी का भूरभूरा होना, ताकि जड़ों को न पहुंचे किसी प्रकार की हानि
  • प्रकृति के विरूद्ध किए गए कार्य सामान्य प्रक्रिया में करते हैं बाधा उत्पन्न
  • बागीचों में तौलिए बनाते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक, कि तौलिया अत्यन्त सख्त न हो

इस वर्ष बहुत अन्तराल के पश्चात सही रूप में सर्दियों का आगमन हुआ है और दिसम्बर माह के मध्य से तापमान में भारी गिरावट देखी जा रही है। तापमान में हुई यह गिरावट सभी पहलुओं से सामान्य, लाभकर व स्वागत योगय है। पिछले वर्षों में हुए तापमान के गिरते क्रम पर यदि दृष्टि डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि तापमान में उतार-चढ़ाव का क्रम अधिकतर होता रहा है जो प्राकृतिक क्रिया-कलाप में बाधक है और इससे विपरीत प्रभाव पड़ता है। हालांकि इसमें व्यक्ति या समाज का कोई विशेष नियंत्रण नहीं होता

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

यद्यपि व्यापक स्तर पर किए गए प्रकृति के विरूद्ध कार्यों विशेषकर पेड़ों के कटान व अनावश्यक रूप से खुले में आग लगाना तथा निरन्तर धुंए के फैलने का योगदान अवश्य रहता है। धुंए द्वारा निर्मित कई विषैली गैसिज, धूल कणों व हवा में विद्यमान वाष्प कणों के कारण स्मौग का निर्माण होता है जो मनुष्य, पशुओं अन्य प्राकृतिक जीवों, वन्य प्राणियों तथा पौधों के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं। इस स्मौग की लम्बे समय तक मौजूदगी तापमान में वृद्धि करती है और सामान्य प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करती है जिसके फलस्वरूप वर्षाजल तथा हिमपात में कमी का भी कारण बनती है। किसानों-बागवानों को इस पहलू को भी ध्यान में रखने की अत्यन्त आवश्यकता है कि कहीं अनजाने में या फिर अपने स्वार्थ हेतु किए गए कार्य से पूरे क्षेत्र में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और स्वयं को भी लम्बे समय तक हानि पहुंचती है। इसलिए इन कार्यों विशेषकर घास या जंगल में आग लगाना, बागीचे में कटी-फटी लकड़ी को जलाना, सेब की पत्तियों को एकत्र करके जलाकर नष्ट करना, अनावश्यक रूप से धुआं देते रहना, वर्षा जल संग्रहण की उचित व्यवस्था न करना है। अत: इन कार्यों को जो नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, करने से बचें। तभी हम सभी मिलकर अपने-अपने व आसपास के क्षेत्रों को सामान्य रूप देकर प्रकृति के दिए वरदान से बिना कोई पैसा खर्चे, सम्पूर्ण लाभ उठा सकते हैं। दूरगामी परिणाम के लिए इस दिशा में सामूहिक रूप से कार्य करना आवश्यक और अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होगा।

  • यदि मिट्टी नर्म है और जड़ों को किसी प्रकार की हानि की संभावना न हो, तो ही करें तौलिए बनाने का कार्य

सेब बागीचों तथा अन्य शीतोष्ण फलों के बागीचों में आजकल तौलिए बनाने का कार्य आरम्भ किया गया है जिसमें इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि तौलिया अत्यन्त सख्त न हो क्योंकि सूखे की स्थिति में मिट्टी में नमी की कमी हो जाती है और तापमान में भारी गिरावट के कारण ऊपर की मिट्टी अधिक कठोर बन जाती है, ऐसी स्थिति में तौलिया न बनाएं अपितु इस कार्य को मार्च में भी जब हिमपात पिघल कर मिट्टी में पर्याप्त नमी होने पर किया जा सकता है। हां, यदि मिट्टी नर्म है और जड़ों को किसी प्रकार की हानि की संभावना न हो तो इस कार्य को किया जा सकता है। तौलिया बनाते समय बाहरी घेरे से अन्दर की ओर लगभग 1 मीटर तक चौड़ी पट्टी में ही 20-30 सें.मी. मिट्टी खोदे।

  • तौलिया बनाने से पूर्व नीचे दिए गए मिश्रण का करें प्रयोग

तौलिया बनाने से पूर्व गली-सड़ी गोबर की खाद 50-100किलो, एक किलो चूल्हे की राख, सुपर फास्फेट 1 किलो यदि गत वर्ष प्रयोग नहीं किया गया है और यदि किया गया है तो एक किलो फासफोरस प्रयोग करें। यदि लगातार तीन वर्षों से फासफोरस प्रयोग कर रहे हैं, तो इसे छोड़ भी सकते हैं, मिश्रण को मिलाकर तौलिए के बाहरी भाग से 1 मीटर तक चौड़ी पट्टी के रूप में अन्दर के तने की ओर बिखेर कर डालें। फिर कस्सी, कुदाली से हल्के-हल्के 20-30 सें.मी. खोदकर मिट्टी से ढंक दें। इसी गोबर के मिश्रण में पौधे के आसपास गिरी पत्तियों को भी मिलाकर मिट्टी से ढंक दें। इस प्रक्रिया से न केवल भूमि पर गिरी पत्तियों का सदुपयोग होगा अपितु पौधों को प्राकृतिक रूप से मुख्य तत्व व सूक्ष्म तत्व भी सुगमता से उपलब्ध हो पाऐंगे। इन पत्तियों में जिंक, पोटाश, कैलशियम, फासफोरस, लोहा, मौली विडनम, बोरोन, मैगनेशियम, मैंगनीज, गंधक इत्यादि पोषक तत्व प्राकृतिक रूप में होते हैं जो पौधों को प्राप्त होंगे। इससे आने वाले समय में पौधों के स्वास्थ्य में गुणात्मक सुधार होगा। खर्चे में कमी आएगी और फल की गुणवत्ता में अपार सुधार हो पाएगा। धीरे-धीरे उर्वरकों के प्रयोग में भी कमी होगी तथा फल के स्वाद व भण्डारण क्षमता में भी अभूतपूर्व सुधार होगा।

  • तौलिए में ढलानदार न बनाएं और न ही बनाएं कोई नाली

बागीचे में धूप सामान्य रूप से पड़ती है तो तौलिए में ढलानदार न बनाएं और इसमें कोई नाली भी न बनाएं। ऐसा करने पर घुली खाद पानी के बहाव के साथ पौधों के जड़ों की ओर न जाकर दूर निकल जाती है और पौधों को कम लाभ मिल पाता है। तौलिए इस तरह बनाएं कि पौधे के तने से एक मीटर तक की दूरी तक सख्त हो और इन्हें बाद में बिल्कुल भी न छेड़ें। इस भाग से बाहर की ओर ही पौधों के तौलिए बनाएं। केवल इसी भाग पर हर वर्ष खाद व उर्वरक डालें। बाहर से अन्दर की ओर का यह भाग कम से कम एक मीटर चौड़ा हो। पौधों के ग्राफिटंड यूनियन (कलम वाले भाग) को भूमि सतह से 15 सें.मी. ऊंचा रखें ताकि इसमें किसी प्रकार की सडऩ न हो पाए। तौलिए में एक सामान्य प्रचलन यह देखा गया है कि इसे खोदकर एक नालीदार का रूप दिया जाता है जो सही नहीं है। ऐसा करने पर खाद व उर्वरकों द्वारा प्राप्त पोषक तत्व घुलकर पानी के साथ-साथ पौधों की पहुंच से दूर होकर पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाते।

  • जिन बागीचों में धूप सामान्य वहां बनाएं समतल तौलिए
जिन बागीचों में धूप सामान्य वहां बनाएं समतल तौलिए

जिन बागीचों में धूप सामान्य वहां बनाएं समतल तौलिए

जिन बागीचों में धूप सामान्य रहती है वहां तौलिए समतल बनाएं। जिन बागीचों में धूप का सामना अधिक करना पड़ता है, उनमें तौलिए तने से दक्षिण दिशा में यानि धूप की ओर 8-10 सें.मी. ऊंचे उठाकर बनाएं और उत्तर की दिशा में ढलान रखें तथा अर्धचन्द्राकार नाली भी उत्तर दिशा की ओर तौलिए के बाहर बनाएं, जिससे जल कुछ समय तक इस नाली में ठहर कर भूमि में जाकर संग्रहित हो सके। इसके विपरीत जिन बागीचों में सूर्य का प्रकाश कम तथा नमी अधिक रहती है, तौलिए की ढलान दक्षिण दिशा में धूप की ओर रखें और नाली भी दक्षिण दिशा में बनाएं। इससे तौलिए के बाहर ही पानी एकत्र हो पाए।

  • पर्याप्त नमी की उपलब्धता होने पर ही बनाएं तौलिए

तौलिए बनाते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि अत्यन्त सूखे की स्थिति होने पर या फिर वर्षा व हिमपात के तुरन्त बाद भी तौलिया न बनाएं। तौलिया बनाने का सही समय मिट्टी का भूरभूरा होना है जिससे जड़ों को किसी प्रकार की हानि न हो पाए। सर्दियों के समय यदि यह स्थिति न हो तो मार्च में भी पर्याप्त नमी की उपलब्धता होने पर तौलिए बनाए जा सकते हैं। बागवानों के यह प्रयत्न होने चाहिए कि तौलिया व खाद व उर्वरक के प्रयोग का समय यदि संभव है तो एक ही हो अन्यथा यह दो बार भी किया जा सकता है। मार्च में पोटाश व राख का प्रयोग करने पर पोषक तत्वों की उपलब्धता पौधों को समुचित मात्रा में हो पाती है।

  • बागवानों को सलाह, जिन बागीचों में अभी तक तनों में चूना लेपन क्रिया का कार्य पूर्ण नहीं हो पाया है, तुरन्त कर लें

जिन बागीचों में अभी तक तनों में चूना लेपन क्रिया का कार्य पूर्ण नहीं हो पाया है, इसे तुरन्त कर लें। इससे तना छेदक, बूली एफिड व कैंकर रोग की रोकथाम में सहायता मिलती है। चूने लेपन के घोल के लिए एक किला नीला थोथा, नौ किलो चूना, 24 लिटर पानी तथा एक लिटर अलसी का तेल उबाल कर ठंडा कर प्रयोग करें। अलसी का तेल उपलब्ध न होने पर हार्टिकलचरल मिनरल तेल 750 मि.लिटर उस घोल में मिलाकर प्रयोग कर सकते हैं।

किसी संशय की स्थिति में वैज्ञानिक सलाह लेना न भूलें, वैज्ञानिक विधि से ही बागीचों में समस्या के आधार पर अपनाएं जिससे गुणवत्तायुक्त व पौष्टिक फल प्राप्त हो सके।

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