सोलन: जलवायु परिवर्तन पुरे विश्व में हो रहा है तथा हिमाचल प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। इस मौसम बदलाव का सबसे अधिक प्रभाव परिस्थितिकीय संतुलन व कृषि पर पड़ रहा है। इन परिस्थितियों से निपटने के लिए ग्रामीण युवाओं को ‘ईको रिस्क मैनेजर के रूप में उनका क्षमता निर्माण नितांत आवश्यक है क्योंकि यही वह समूह है जिन्होंने पर्यावरण व खेती की बारिकियों को सीखकर जलवायु परिवर्तन के अनुरूप कार्य करना है तथा अपनी खेती को एक अच्छे व्यवसाय के रूप में उभारना है।
डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के पर्यावरण विज्ञान विभाग ने राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद द्वारा प्रायोजित ईको रिस्क मैनेजर तैयार करने हेतु सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें हिमाचल प्रदेश के सोलन, शिमला, सिरमौर, बिलासपुर, मण्डी, उना, कांगड़ा, हमीरपुर, कुल्लू, चम्बा व किन्नौर के 42 प्रगतिशील किसनों ने भाग लिया। इस प्रशिक्षण शिविर में प्रतिभागियों को पर्यावरण व कृषि के विभिन्न पहलुओं तथा प्रकृति से मिलने वाले प्राकृतिक संशाधनों के बारे में अवगत करवाया गया।
मौसम पूर्वानुमान के अनुसार खेती करना, मृदा स्वास्थ्य व प्रबंधन, मृदा नमी संरक्षण प्रबंधन, जल प्रबंधन, फसल विविधीकरण, बगीचों का रेखांकन, पौध रोपण, कांट छांट व प्रबंधन, क़िस्मों का चुनाव, संघन खेती, मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, बीमारियों का प्रबंधन, सौर ऊर्जा का उपयोग व सोलर ड्रायर , औषधीय व सुगन्धित पौधों की काश्तकार, पशुधन प्रबंधन, घासनी प्रबंधन, एकीकृत कृषि मॉडल, ईको टूरिज़्म, इकोलॉजिकल फुट प्रिंट, प्रदूषण व पर्यावरण संरक्षण आदि विषयों के बारे में विस्तार से बताया गया।
इस प्रशिक्षण शिविर में लगभग 25 वैज्ञानिकों जैसे डॉ. राजेश्वर चंदेल, डॉ सोमदेव शर्मा , डॉ. जे. सी शर्मा, डॉ. सतीश शर्मा, डॉ. संजीव ठाकुर, डॉ. हरीश शर्मा, डॉ. दिनेश सिंह, डॉ. सतीश भारद्वाज, डॉ. विशाल राणा, डॉ. मनीष शर्मा, डॉ. सीता राम धीमान, डॉ. एन एस ठाकुर, डॉ रमेश भारद्वाज, डॉ. यशपाल शर्मा, डॉ. भूपेंदर दत्त, डॉ. ऍम के ब्रह्मी, डॉ. ऍम एस जांगड़ा, डॉ. आर के अग्रवाल, डॉ. रोहित वशिष्ठ, डॉ. गोपाल इत्यादि ने प्रतिभागियों को प्रशिक्षण दिया। इस प्रशिक्षण के सह समन्वयक डॉ. ऍम के ब्रह्मी ने सभी प्रतिभागियों का प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने के लिए धन्यवाद किया।
इस शिविर का उद्देश्य ईको रिस्क मैनेजरों को प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल,जंगल और जमीन का उचित प्रबंधन व दोहन की तकनीकों, संसाधनों की उपलब्धता व उपयोग का आकलन कर उनका संरक्षण द्वारा क्षमता निर्माण जो की जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में कारगर सिद्ध होंगा| प्रशिक्षण के समन्वयक डॉ सतीश भारद्वाज ने सभी प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वह अपने- अपने क्षेत्र में ईको रिस्क मैनेजर के रूप में कार्य करें तथा जलवायु परिवर्तन के परिवेश में कृषि व्यवसाय को लाभप्रद बनाये। उन्होनें बताया की विभाग इस संदर्भ में वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करता रहेगा तथा ईको रिस्क मैनेजरों को तकनीकों से अवगत करवाता रहेगा।