- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पहल के तहत बेची गई तकनीक
शिमला: जल्द ही देशभर के लोग स्वादिष्ट पास्ता का आनंद ले सकेगें जो उन्हें स्वस्थ रखने में भी मदद करेगा। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पहल के तहत डॉ वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित दो प्रकार के पोषक तत्व युक्त पास्ता को शिमला के एक स्टार्टअप ने खरीद लिया है।
यह दो प्रकार के पास्ता- सादा पास्ता और पालक पास्ता में सामान्य पास्ता की तुलना में अधिक पोषक तत्व हैं। यह पास्ता सुजी से निर्मित हैं और बाज़ार में मिलने वाले मैदा आधारित पास्ता की तुलना में पचाने में आसान होते हैं। विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित पालक पास्ता में आयरन और जिंक की अधिक मात्रा है और पौष्टिक रूप से समृद्ध होने के कारण कई बीमारियों से लड़ने में शरीर की क्षमता बढ़ाते हैं। विश्वविद्यालय के खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी पर ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट (एआईसीआरपी) के तहत इस पोषक तत्व युक्त पास्ता के दो प्रकार विकसित किए हैं। शुरू में, विश्वविद्यालय ने एक सर्वेक्षण किया जहां पाया गया कि युवा इंस्टेंट खाद्य पदार्थों के प्रति अधिक आकर्षित होते हैं, जो कभी-कभी पाचन से संबंधित बीमारियों का कारण भी बनते हैं। छह वर्षों से गहन अनुसंधान के दौरान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विभिन्न शोध परीक्षण किए, जिससे इन पास्ता का विकास हुआ। विभाग ने उत्पादों के पायलट परीक्षण भी किया।
शिमला की एक कंपनी जिसने कोल्ड स्टोरेज के संबंध में विश्वविद्यालय के इनक्यूबेटर सेंटर से संपर्क किया था, ने इन दोनों पास्ता प्रकारों में गहरी दिलचस्पी दिखाई। विश्वविद्यालय के कुलपति डा॰ एचसी शर्मा ने बताया कि कहा विश्वविद्यालय ने पास्ता का निर्माण करने के लिए एक कंपनी के साथ करार किया है। इसके लिए कंपनी ने पहले ही विश्वविद्यालय को दोनों पास्ता के लिए एक लाख रुपये का भुगतान कर दिया है। अगले एक साल के लिए, विश्वविद्यालय 20 क्विंटल पास्ता की आपूर्ति दस रुपये प्रति किलो की दर से कंपनी को करेगा। इसमें कच्चे माल की लागत कंपनी द्वारा वहन की जाएगी। इसके अलावा, विश्वविद्यालय को प्रति माह 2000 रुपये रखरखाव एवं विमूल्यन शुल्क (depreciation charge) के रूप में भुगतान किया जाएगा। बाद में पास्ता का उत्पादन कंपनी द्वारा ही किया जायेगा। कंपनी उत्पादों की पोषण प्रोफाइलिंग के साथ पैकेजिंग और लेबलिंग का कार्य भी करेगी। विश्वविद्यालय का नाम भी उत्पाद विवरण में होगा।
डॉ॰ शर्मा ने बताया कि यह समझौता विश्वविद्यालय की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पहल का एक हिस्सा है जिससे विवि द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों को लोगों और उद्योगों को हस्तांतरित किया जाता है और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जाता है। उन्होंने कहा कि भविष्य में विश्वविद्यालय द्वारा विकसित ऐसी अन्य प्रौद्योगिकियों को भी स्थानांतरित करने के प्रयास किए जाएंगे।