कांगड़ा में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ “श्री ब्रजेश्वरी देवी मंदिर”

कांगड़ा का सशक्त शक्ति मंदिर “श्री ब्रजेश्वरी देवी”

गयारहवीं शताब्दी में महमूद ने लूटा था मन्दिर का अपार वैभव

इस मन्दिर के मूल स्थापत्य पर कोई भी प्रमाणिक अभिलेख उपलब्ध नहीं है। इसी मंदिर से प्राप्त संस्कृत के एक अभिलेख में दिया गया है कि इस शक्तिपीठ का निर्माण शाही मुहम्मद के शासनकाल में कटोचवंशीय राजा संसार चंद द्वारा 15वीं शताब्दी मं करवाया गया था। यह तथ्य प्रासांगिक प्रतीत नहीं होता है क्योंकि गयारहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में गजनी के शासक महमूद ने इस मन्दिर के अपार वैभव को लूटा था। इस मन्दिर के आविर्भाव को पौराणिक कथाओं के साथ भी जोड़ा जाता है। इस प्रकार राजा संसार चंद ने मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा तोड़े गए मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया होगा।

सन् 1337 ई. को मोहम्मद तुगलक ने इस मंदिर को लूटा

मंदिर के प्रांगण में तारादेवी के छोटे से मंदिर को भूकम्प से कोई नुकसान नहीं हुआ

मंदिर के प्रांगण में तारादेवी के छोटे से मंदिर को भूकम्प से कोई नुकसान नहीं हुआ

यह मंदिर सन् 1043 ई. से 1337 ई. तक त्रिगर्त के मूल शासक कटोचवंश के अधिपत्य में रहा। सन् 1337 ई. को मोहम्मद तुगलक ने इस मंदिर को लूटा। सन् 1365 ई. को फिरोजशाह तुगलक ने नगरकोट पर आक्रमण कर मंदिर की सम्पत्ति को तहस-नहस किया और नगरकोटी देवी की मूर्ति को तोड़-फोड़ कर मक्का ले गया। इसी मुस्लिम शासक ने मंदिर में रखी संस्कृत की ज्योतिष, दर्शन आदि की 1300 पुस्तकों का फारसी में अनुवाद करवाया। सन् 1383 ई. से 1386 ई. के मध्य कश्मीर के शासक शाहबुद्दीन ने भी मंदिर पर आक्रमण कर इसकी सम्पदा को हथिया लिया। सन् 1540 ई. को शेरशाह सूरी के सेनानायक ख्वास खान ने नगरकोट को अपने अधिकार में लेकर मंदिर में लूट मचाई। उसने देवी की प्रस्तर प्रतिमा को तोडक़र उसके ताम्र छत्र सहित उसे दिल्ली पहुंचाया। उसने मूर्ति के टुकड़े बनवाकर कसाईयों को बाट बनाने के आदेश दिए तथा प्रतिमा के छत्र से शाही महल में पानी पीने के बर्तन बनवाए। इसके पश्चात यह मंदिर विदेशी आक्रमणकारियों की लूट से सुरक्षित रहा।

सतरहवीं शताब्दी में इस मंदिर को देखने अनेक यूरोपीय यात्री आए जिन्होंने इसकी समृद्धता का वर्णन अपनी-अपनी यात्रावलियों में किया। सन् 1809 ई. को महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा किला पर कब्जा जमाकर देसा सिंह मजीठिया को इसका नाजिम बनाया। सरदार देसा सिंह मजीठिया ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाकर उसके ऊपर सिक्ख वास्तुशिला में एक बल्वाकार गुम्बद का निर्माण करवाया। जिसे महाराजा शेर सिंह की रानी चांद कौर ने सोने का पानी चढ़वाकर सजाया था। इस मंदिर में महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छतर चढ़ाया तथा एक स्वर्ण मूर्ति मंदिर में भेंट की थी।

4 अप्रैल, 1905 ई. को भीषण भूकम्प से मंदिर क्षतिग्रस्त होकर गिर गया

सम्पन्नता और समुद्धता का पर्याय यह मंदिर 4 अप्रैल, 1905 ई. को भीषण भूकम्प की चपेट में आ गया। इससे मंदिर का ढांचा क्षतिग्रस्त होकर गिर गया। इसके जीर्णोद्धार के लिए सन् 1908 ई. को कांगड़ा टैम्पल रेस्टोरेशन एंड एडमिनिस्ट्रेशन कमेटी का गठन किया गया। इस मंदिर कमेटी ने मंदिर का निर्माण कार्य अबाध गति से चलाकर पूर्ण किया। भूकम्प आने से पहले यह मंदिर चतुर्वर्गाकृति की भव्य कोट शैली में बना था जो बैलकनिज छज्जों और कुरक छतरी शिल्प से अलंकृत था। इस मंदिर के प्रांगण में तारादेवी के छोटे से मंदिर को भूकम्प से कोई नुकसान नहीं हुआ। श्री तारादेवी का यह स्थान तन्त्र विद्या का प्रमुख केन्द्र रहा है। इसकी ख्याति जालंधर पीठ के तन्त्रोक्त शक्ति केन्द्र के नाम से भी रही है।

जहां-जहां सती के अंग गिरे वही स्थल शक्तिपीठ कहलाए

जहां-जहां सती के अंग गिरे वही स्थल शक्तिपीठ कहलाए

यह मंदिर 16 नवम्बर 1984 ई. को सरकार ने अधिकृत कर मंदिर व्यवस्था का कार्य मंदिर न्यास को सौंपा है। यह मंदिर धर्मशाला से 18 किलोमीटर तथा शिमला से 260 किलोमीटर की दूरी पर है। प्राचीन त्रिगर्तगण का प्रमुख शाक्त केन्द्र श्री ब्रजेश्वरी देवी मंदिर समुद्रतल से 2495 फुट की ऊंचाई पर कांगड़ा शहर के समीप मालकड़ा पहाड़ी की ढलान पर उत्तर की ओर स्थित है।

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