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हिमाचल के मन्दिरों की प्राचीन शैली आज भी जीवित

हिन्दू-बौद्ध शैलियों का संगम सराहन का "भीमाकाली मन्दिर"

हिन्दू-बौद्ध शैलियों का संगम सराहन का “भीमाकाली मन्दिर”

हिमाचल प्रदेश की प्राचीन कलाएं, मंदिरों के वास्तुशिल्प, लकड़ी पर खुदाई, पत्थरों और धातुओं की मूर्तियों तथा चम्बा रूमाल आदि के रूप में आज भी सुरक्षित है। इन कलाओं को तीन मुख्य वर्गों में बांटा जा सकता है- 1. देसी और यदि अधिक स्पष्ट कहें तो खश कलाएं। 2. भारतीय आर्यकलाएं और 3. भारतीय तिब्बती कलाएं। हिमाचल की सबसे प्राचीन कलाकृतियां खश शैली में हैं और इनमें अधिकतर लकड़ी का प्रयोग हुआ है। इस शैली के प्राचीनतम उदाहरण औदुम्बरों के तांबे और चांदी से बने सिक्कों में मिलता है जो मंदिरों पर एक ध्वज, त्रिशूल और युद्ध में प्रयोग होने वाली कुल्हाड़ी है। इस आकृति के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ये शैव मन्दिर हैं।

  • मंदिर शैली

  • संपूर्ण हिमाचल में वास्तुकला की दृष्टि से चार प्रकार के मंदिर

संपूर्ण हिमाचल में वास्तुकला की दृष्टि से चार प्रकार के मंदिर मिलते हैं जो विभिन्न युगों में विभिन्न धार्मिक विश्वासों के सूचक हैं तथा इस अनुमान को आधार प्रदान करते हैं कि पुराने निवासियों के बीच नई जातियों का समावेश होता रहा है। इन शैलियों को अलगाने के लिए यदि छतों को आधार बनाया जाए तो चार प्रकार हैं: 1. पूरी तरह से बन्द छत जिसके चारों ओर बरामदा रहता है। 2. पिरामिड जैसी छत 3. पैगोड़ा शैली वाले मंदिर जिन पर लकड़ी की गोल छत एक-दूसरे पर बनाई जाती है 4. ढलानदार और पैगोड़ा आकार की छतें। अंतिम शैली वाले मंदिर सतलुज घाटी की शैली वाले माने जाते हैं।

  • बन्द छत वाले मंदिर सबसे पुराने

बन्द छत वाले मंदिर सबसे पुराने हैं। भरमौर के शासक मेरूवर्मन द्वारा 7वीं शताब्दी में निर्मित भरमौर का लक्षणा देवी मंदिर तथा चितराड़ी का शक्ति देवी मंदिर इसके प्रसिद्ध उदाहरण हैं। इसी प्रकार का एक अन्य उदाहरण कालिदेवी अथवा मृकुला देवी के नाम से विख्यात मंदिर भी है जिसे कि कश्मीर के राजा आनंद देव की पत्नी सूर्यमति ने बनवाया था जो कि त्रिगर्त की राजकुमारी थी।

  • पिरामिड के आकार की छतों वाले मंदिर जुब्बल घाटी

पिरामिड के आकार की छतों वाले मंदिर जुब्बल घाटी में मिलते हैं। इसके सुन्दर उदाहरण हैं-हाटकोटी में हाटेश्वरी देवी और शिवजी का मंदिर तथा महासू और शिव का मंदिर जो कि जुब्बल के देयोरा में है।

  • पैगोड़ा शैली सर्वाधिक रोचक

पैगोड़ा शैली सर्वाधिक रोचक है। यह शैली नेपाल से हिमाचल में आई जहां काठमांडू के अधिकांश मंदिर इसी शैली में बने हैं। कुछ इतिहासकारों का मत है कि इस शैली को मैदानों से आने वाले लोगों ने ईसा सन् के प्रारम्भ में प्रचलित किया था जैसा कि औदुम्बरों के सिक्कों से पता चलता है।

  • पर्वतीय क्षेत्रों में पैगोड़ा शैली के असंख्य मंदिर

हिमाचल प्रदेश के मण्डी, कुल्लू, किन्नौर, शिमला के पर्वतीय क्षेत्रों में पैगोड़ा शैली के असंख्य मंदिर हैं। राजा बाणसेन द्वारा 1346 में निर्मित मण्डी का पराशर मंदिर, मनाली का हिडिम्बा मंदिर जिसे कि कुल्लू के राजा बहादुर सिंह ने 1553 में बनवाया था, नगर का त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर, दयार में स्थित त्रियुगी नारायण मंदिर, खोखान में आदि ब्रह्मा मंदिर, कुल्लू घाटी में सनहार में स्थित मनु का मंदिर, सुंगरा में स्थित माहेश्वर मंदिर तथा किन्नौर में स्थित चगाओं मंदिर सभी पैगोड़ा छत शैली में निर्मित हैं।

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