अपने इतिहास, संस्कृति व पर्यटन के लिए विख्यात… “डोडरा-क्वार”

पुरूष, स्त्रियां, बच्चे सभी पारम्परिक वेशभूषा में करते हैं नाटी

क्षेत्र में 70 प्रतिशत होते हैं प्रेम-विवाह

विवाह की तिथि देवता ही करता है निश्चित

पूरी तहसील के सभी गांवों में हर वर्ष 20 श्रावण से 8 भादों तक देवता के मेले मनाए जाते हैं। देवता की पालकी को रंग-बिरंगे नए-नए परिधानों से सुसज्जित किया जाता है। पुरूष, स्त्रियां, बच्चे सभी पारम्परिक वेशभूषा में नाटी में मस्त रहते हैं। पुरूषों की अपेक्षा महिलाएं नाटी में अधिक शरीक होती हैं। लड़कियां पूरे वर्ष रात के भोजन के बाद आधी रात तक नृत्य गीत में मगन रहती हैं।

इस क्षेत्र में 70 प्रतिशत प्रेम-विवाह होते हैं। विधिवत विवाह भी होते हैं। इसमें लडक़े-लडक़ी की इच्छानुसार घर के बड़े बात चलाते हैं। मंगनी करते समय लडक़े वाले लडक़ी को कुछ रूपए खर्चे के रूप में देते हैं। विवाह की तिथि देवता ही निश्चित करता है। एक परम्परा यह भी है कि यदि निश्चित दिन किसी कार्यवश दूल्हा घर से दूर गया हुआ हो तो उस स्थिति में उसकी दुल्हन को नारियल के साथ विवाह करके लाया जाता है। कई बार देवता से पूछकर दूल्हे के छोटे भाई को ही दूल्हा बनाकर दुल्हन लाने भेजा जाता है। बाद में जब दूल्हा घर लौटता है तो वह दुल्हन को पत्नी के रूप में स्वीकार करता है।

पर्यटकों के साथ यहां के लोगों का व्यवहार सौहार्दपूर्ण

पर्यटकों के साथ यहां के लोगों का व्यवहार सौहार्दपूर्ण

पर्यटकों के साथ यहां के लोगों का व्यवहार सौहार्दपूर्ण

डोडरा-क्वार की औरतें आभूषणों की बहुत शौकीन

पर्यटकों के साथ यहां के लोगों का व्यवहार सौहार्दपूर्ण होता है। डोडरा-क्वार की औरतें आभूषणों की बहुत शौकीन होती हैं। चाहे युवती हो, चाहे प्रौढ़ हो या बूढ़ी औरत हो सब चांदी के गहने पहने होती हैं। गले में चांदी की टोरटरी तथा रूपए की माला दोलड़ी, कान में मुगड़ी और कनताली, सिर पर झालर, टोपी के ऊपर तुनकी, कमर में चांदी की गाची, कलाई में दामुले आदि गहने इनके सौंदर्य में चार चांद लगा देते हैं।

डोडरा-क्वार इतिहास

डोडरा-क्वार परगने को जेम्स बेली फ्रेजर और कैप्टन पी.सी. कनेडी ने अपनी अटठारह ठकुराइयों की सूची में शामिल किया है। डोडरा-क्वार यद्यपि कभी भी स्वतंत्र ठकुराई नहीं रही परन्तु इसमें समय-समय पर विद्रोह के स्वर उठते रहे जिन्हें तत्कालीन शासकों ने दबा दिया।

डोडरा-क्वार के राजनीतिक हालात बिगडऩे पर शिमला से राजनैतिक सहायक कमिश्नर के नेतृत्व में पुलिस बल को भेजा गया। उस समय डोडरा-क्वार के एक जेलदार, रणबहादुर सिंह, बुशहर शासक के विरूद्ध अपने क्षेत्र को स्वतंत्र कराने का एक असल प्रयास किया था। रणबहादुर सिंह को बंदी बना दिया गया तथा उस पर मुकद्दमा चलाया गया। कुछ समय के बाद रणबहादुर सिंह को छोड़ दिया गया। उसे शिमला की जेल में दो महीने रखा गया। अपनी गिरफ्तारी के बाद रणबहादुर सिंह बुशहर को कर देने के लिए तैयार हो गया था। रणबहादुर सिंह की मृत्यु के बाद भी डोडरा-क्वार के जमींदार बुशहर शासक के आदेशों को मानने से मना करते रहे। परन्तु लगभग सभी समय डोडरा-क्वार पर बुशहर का ही नियंत्रण रहा।

डोडरा-क्वार में विद्रोह

1906 ई. में बुशहर के गढ़वाल के साथ लगते क्षेत्र डोडरा-क्वार में एक विद्रोह उठ खड़ा हुआ था। इस क्षेत्र का प्रशासन राजा की ओर से किन्नौर के गांव पवारी के वंशानुगत वजीर परिवार के रणबहादुर सिंह के हाथ में था। उसने राजा के विरूद्ध विद्रोह करके डोडरा-क्वार को स्वतंत्र बनाकर अपने अधीन करने का प्रयास किया। उसने वहां की राजकीय आय भी बुशहर के खजाने में जमा करनी बन्द कर दी। वहां के लोगों ने भी उसके समर्थन में बुशहर राज्य के विरूद्ध विद्रोह कर दिया। उसने राजा की अवज्ञा ही नहीं की बल्कि अंग्रेज सरकार के दबाव की भी परवाह नहीं की। रणबहादुर उस समय का एक राष्ट्रवादी था। अन्त में उसे शिमला पहाड़ी रियासतों के अंग्रेज अधिकारी के आदेश पर 1906 ई. में पकडक़र शिमला लाया गया और बन्दी बना लिया गया। उसने हड़प की गई राजकीय आय को वापिस करना स्वीकार किया। वह वहां बीमार हो गया। अंत में उसे कैद से मुक्त कर दिया गया। लेकिन इसके बाद वह हड़प की हुई राशि को वापस न कर सका। उसकी मृत्यु शिमला में ही हो गई। डोडरा क्वार के जो लोग गांव छोडक़र चले गए थे उन्हें बाद में राजा ने वापिस बुला लिया।

साभार : डॉ. सूरत ठाकुर

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