जीवन में हमें “डर” से डरना नहीं है;….बल्कि “डर” को हराकर अपनी जीत तय करनी है

मुश्किल, परेशानियाँ, मायूसी आनी जानी चीजें हैं ख़ुशी नहीं रही तो दुःख भी नहीं रहेगा.. तो डरना क्यों

अपने “डर” से करें मुकाबला; क्योंकि “डर” से आगे है जीत…

“डर” जी हाँ “डर” से डर से मनुष्य अपने मन के अनगिनत विचारों में गुम हो जाता है। जिससे बाहर निकलना उसे असंभव सा प्रतीत होता है। लेकिन वास्तविकता तो ये है कि डर से आगे ही जीत होती है लेकिन डर हम पर इतना हावी हो जाता है कि हम डर से डर जाते हैं। लेकिन जीवन में हमें डर से डरना नहीं है बल्कि डर को हराकर अपनी जीत तय करनी है आगे बढ़ना है। मुश्किल, परेशानियाँ, मायूसी आनी जानी चीजें हैं ख़ुशी नहीं रही तो दुःख भी नहीं रहेगा। तो डरना क्यों?  डर को हराकर ही मनुष्य अपने जीवन और संसार का आनंद ले सकता है डर को हराने के लिए क्या करना चाहिए यह एक प्रश्न है जो अधिकांश डरपोक कभी पूछते नहीं और जिंदगी को नर्क बना लेते हैं। डर को हराने का एक ही मूल मंत्र है डर पर जोरदार प्रहार या डर से मुकाबला। डर से दूर भाग कर तो आप और ज्यादा डरते जाएंगे तथा और ज्यादा डरपोक बनते जाएंगे।

हम ज्यादा डरपोक इसलिए होते जा रहे हैं क्योंकि हम डर को बढ़ाने वाली बातें दिन-रात देख, सुन और सोच रहे हैं…

डर कर भाग जाने से डर हावी होता चला जाता है डरपोक लोगों से दूर रहें, नकारात्मक सोच वाले लोगों से दूर रहें, टीवी में डरावने प्रोग्राम, शक बढ़ाते शो, नकारात्मक खबरों और वीडियो को देखने से जितना हो सकें बचें। हम ज्यादा डरपोक इसलिए होते जा रहे हैं क्योंकि हम डर को बढ़ाने वाली बातें दिन-रात देख, सुन और सोच ज्यादा रहे हैं। टीवी, मोबाइल, इंटरनेट और न्यूज़ पेपरों के माध्यम से नकरात्मक सूचनाएं देकर आप वास्तविक डर नहीं होने पर भी डर महसूस करके डर के मरीज बन जाते हैं। यह नकारात्मक ऊर्जा हमारे अंदर ही रह जाती है और हमारे शरीर और मन को खराब करने लगती है। क्राइम प्रोग्राम हमारे मस्तिष्क में डर भरने वाले नंबर वन क्रिमिनल हैं उनके शुरू होने से पहले सत्य घटना पर आधारित पढ़ लेने से हमारा मस्तिष्क उसे सच मानकर हमारे लिए सुरक्षा के डाटा इकट्ठा करता है और फिर शुरू होता है डर का सिलसिला, नौकर से डर, टैक्सी वाले से डर, पत्नी से डर, पति से डर, सभी पर शक और सभी से डर, हर आहट डराने लगती है और हर दस्तक धड़कनें बढ़ाने लगती है।

हमें नकरात्मक लोगों और सूचनाओं से जितना हो सके दूर रहना चाहिए

हम मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसीलिए हम जानवरों की तरह केवल मृत्यु से ही नहीं डरते अपितु सामाजिक प्रतिष्ठा चली जाने या प्रियजनों की मृत्यु या किसी भावी नुकसान से भी खौफ खाते हैं, इन से संबंधित खबरें भी हमें जरूर आती हैं और हम डर से इतना डर जाते हैं कि हमारे मन की सकरात्मकता ही खत्म हो जाती है। हमें नकरात्मक लोगों और सूचनाओं से जितना हो सके दूर रहना चाहिए। प्रसन्नचित लोगों से मेलजोल रखना चाहिए आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। आस्था से जुड़े रहना चाहिए। भगवान के प्रति विश्वास मन में हमेशा बनाए रखें। हमेशा इस विश्वास पर चलें कि भगवान हमारे साथ हैं तो हमें कोई डरा नहीं सकता क्योंकि भगवान से बड़ी दुनिया में कोई शक्ति नहीं हैं जब हमारे साथ भगवान हैं तो उनकी शक्ति भी हमारे साथ है तो डर कैसा? वक्त एक सा नहीं रहता तो बुरा दौर भी ज्यादा समय नहीं रहेगा। इस लिए डरना क्यूँ? जो होना है वो होगा ही हमारे डर से हम खुद को चोट दे रहे हैं। डर खत्म करना है तो हमें ही करना होगा, क्योंकि डर हमारे अंदर है हमें अपने आपको मन से मजबूत बनाना होगा और डर को हराना होगाजरूरत मंद लोगों की मदद कीजिए, खौफ से बाहर निकलिए दुनिया बहुत खूबसूरत है। उतार चढ़ाव जिन्दगी के दो पहलू हैं हर कसौटी में हमें खरा उतरने की कोशिश करनी है। हमें डर से डर कर नहीं  डर को डराकर आगे बढ़ना है।

 

 

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