हिमाचल: प्रदेश के किसानों के लिए बागवानी फसलों में सूखे के तनाव से निपटने के लिए सलाह

सोलन: सर्दियों की बारिश की कमी के कारण मौजूदा सूखे जैसी स्थिति, खासकर बारिश पर निर्भर इलाकों में, हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में बागवानी फसलों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विशेषज्ञों ने हिमाचल प्रदेश के किसानों के लिए सूखे के तनाव से निपटने हेतु निम्नलिखित त्वरित उपाय सुझाए हैं।

हिमाचल प्रदेश में वर्षा का पैटर्न अनियमित रहा है, जिसमें मध्यम से लेकर असमान वितरण देखा गया है। परंपरागत रूप से अक्टूबर से दिसंबर शुष्क महीने होते हैं और दीर्घकालीन अवलोकनों (1980–2024) से यह स्पष्ट हुआ है कि नवंबर माह में लगभग 68.2 प्रतिशत  सामान्य से कम वर्षा होती है। इस वर्ष अंतिम वर्षा 9 अक्टूबर, 2025 को हुई थी, जिसके बाद पूरे राज्य में लगभग 70 दिनों का लंबा शुष्क काल बना हुआ है। इस लंबे सूखे के कारण फलों के बागों सहित सभी फसलों में जल-अभाव की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

मध्य पहाड़ी क्षेत्रों के उप-आर्द्र क्षेत्रों में 30–50 प्रतिशत तक मृदा नमी वाष्पीकरण के माध्यम से नष्ट हो जाती है, जो वर्तमान परिस्थितियों में और अधिक बढ़ सकती है। इन तीन महीनों के दौरान सूखे की स्थिति राज्य में सामान्य होती जा रही है, जहां लगभग 70 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा पर निर्भर है। ऐसे में जल-अभाव के प्रबंधन हेतु नमी संरक्षण के लिए विभिन्न कृषि पद्धतियों को अपनाना अत्यंत आवश्यक हो गया है। मौजूदा सूखे के दौरान मिट्टी में नमी की कमी फलों के पौधों को भी प्रभावित कर सकती है, जिससे जड़ों का विकास रुक सकता है, आवश्यक पोषक तत्वों का अवशोषण सीमित हो सकता है और पौधे रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।

सेब, आड़ू, प्लम, खुबानी, जापानी फल (पर्सिमन), अखरोट तथा कीवी जैसे फलों के पौधों का नया रोपण यदि अभी तक नहीं किया गया है तो कुछ समय के लिए टालने की सलाह दी गई है। यदि रोपण पूरा हो चुका है तो जीवन रक्षक सिंचाई अवश्य करें, अधिमानतः ड्रिप सिंचाई प्रणाली के साथ मल्चिंग अपनाएं। इसके अंतर्गत पौधों के बेसिन क्षेत्र को सूखी घास या फसल अवशेषों से ढकना शामिल है, जिससे लंबे समय तक नमी बनी रहती है। नमी संरक्षण के लिए घास की मल्च की आदर्श मोटाई सामान्यतः 5 से 10 सेमी के बीच होती है। यह अवांछित पौधों (खरपतवारों) की वृद्धि को भी रोकती है तथा अपघटन के बाद मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ जोड़ती है। मल्चिंग पौधों को तापमान में उतार-चढ़ाव से भी बचाती है।

सूखे की स्थिति में पेड़ों के बेसिन में खुदाई से बचना चाहिए ताकि मिट्टी की नमी का नुकसान न हो। इस अवधि में न्यूनतम छंटाई करनी चाहिए तथा जब तक मिट्टी में पर्याप्त नमी उपलब्ध न हो, तब तक नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे उर्वरकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। हालांकि, गोबर की खाद का उपयोग किया जा सकता है।

प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को सलाह दी गई है कि वे अपने खेतों या आसपास स्थित विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्रों, कृषि विज्ञान केंद्रों या किसी नजदीकी विश्वविद्यालय स्टेशन का भ्रमण कर प्राकृतिक खेती के प्रदर्शनों को देखें। प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों को जीवामृत का उपयोग (15 दिन के अंतराल पर 10–20 प्रतिशत फोलियर स्प्रे तथा सॉलिड ड्रेंचिंग के रूप में), वापसा लाइन को ताजा रखना तथा फसलों की सुरक्षा के लिए मल्च का उपयोग करना चाहिए।

बीमारियों की घटनाओं को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए गए हैं:

  • सेब के गिरे हुए पत्तों को एकत्र कर खाद के गड्ढे में सड़ा देना चाहिए या संक्रमित पत्तों को शीघ्र सड़ाने के लिए बगीचे की जमीन पर 5 प्रतिशत यूरिया का छिड़काव करना चाहिए।

  • सफेद जड़ सड़न के प्रबंधन के लिए संक्रमित पेड़ों की जड़ प्रणाली को धूप में रखना चाहिए, संक्रमित हिस्सों को हटाकर बोर्डो पेंट लगाना चाहिए।

  • कॉलर रॉट के प्रबंधन हेतु कॉलर क्षेत्र के पास की घावों को खुरचकर बोर्डो पेंट या किसी अन्य तांबा-आधारित फफूंदनाशक पेंट का प्रयोग करना चाहिए।

  • कैंकर रोग के प्रबंधन के लिए संक्रमित पौध भागों, सूखे फलों, सूखी टहनियों और छंटे हुए शाखाओं को हटाकर नष्ट करना चाहिए। यांत्रिक चोटों से बचें तथा पत्ती और मिट्टी के विश्लेषण के आधार पर संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें। कैंकर वाले हिस्सों को तेज धार वाले चाकू से स्वस्थ भाग तक खुरचें, घावों को स्पिरिट से साफ करें और बोर्डो पेंट या तांबा-आधारित फफूंदनाशक पेंट लगाएं।

लंबी अवधि के निवारक उपायों में एकीकृत खेती, फल आधारित कृषि वानिकी मॉडल, काम पानी बचाने वाली सब्जियां, फसल विविधीकरण, एंटी-ट्रांसपिरेंट का उपयोग, प्राकृतिक खेती की तकनीकें तथा मेघदूत ऐप के माध्यम से समय पर मौसम आधारित कृषि सलाह सेवाओं के लिए अद्यतन मौसम जानकारी को शामिल करना आवश्यक है, ताकि किसान अपनी कृषि गतिविधियों की बेहतर योजना बना सकें। इन उपायों को अपनाकर किसान वर्तमान सूखे के प्रभाव को कम कर सकते हैं और सूखे की स्थिति के प्रति अपनी सहनशीलता बढ़ा सकते हैं।

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