सोलन: मृदा स्वास्थ्य पर जागरूकता शिविर से सतत प्रथाओं को दिया बढ़ावा

कार्यक्रम में 60 छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों ने लिया हिस्सा

सोलन: डॉ. यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय ने मृदा विज्ञान और जल प्रबंधन विभाग के सहयोग से मृदा स्वास्थ्य और जैविक पदार्थ के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर केंद्रित एक दिवसीय कार्यक्रम की मेजबानी की। यह कार्यक्रम, ‘मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और कम्पोस्टिंग’ पर राष्ट्रीय अभियान का हिस्सा था जिसे मिशन लाइफ के तहत आयोजित किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन सत्र के साथ हुई, जिसमें छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों ने ऑनलाइन माध्यम से भाग लिया। इस सत्र के दौरान देश भर के प्रतिष्ठित मृदा वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक खेती, मृदा स्वास्थ्य और वर्मीकम्पोस्टिंग पर अंतर्दृष्टि साझा की। दोपहर के कार्यक्रम को निदेशालय द्वारा एक क्षेत्रीय प्रदर्शन और इंटरैक्टिव सत्र के रूप में आयोजित किया गया। विभागाध्यक्ष डॉ. एम॰एल॰ वर्मा ने ‘भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने’ विषय के संदर्भ में मिट्टी के स्वास्थ्य के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि कैसे स्वस्थ मिट्टी एक गतिशील जीवन प्रणाली के रूप में कार्य करती है, जो पानी की गुणवत्ता, पौधों की उत्पादकता, पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, अपघटन और ग्रीन हाउस गैस विनियमन के लिए महत्वपूर्ण विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती है।

प्रोफेसर उदय शर्मा ने खाद्य और कृषि संगठन द्वारा आयोजित मृदा प्रबंधन कार्यक्रमों में भाग लेने के अपने अनुभवों और मृदा स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। संयुक्त निदेशक (संचार) डॉ. अनिल सूद ने दैनिक जीवन में मिट्टी की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए प्राकृतिक और जैविक कृषि पद्धतियों के बारे में बताया। कृषि गतिविधियों में मृदा स्वास्थ्य की भूमिका पर प्रतिभागियों को बताया गया। डॉ. उपेन्द्र सिंह ने मिट्टी के सैंपल लेने के तरीकों पर एक व्यावहारिक प्रदर्शन दिया, जबकि संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) और मृदा जैव विविधता और जैव उर्वरक पर अखिल भारतीय नेटवर्क परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. राजेश कौशल ने किसानों और बागवानों के लिए वर्मीकम्पोस्टिंग के लाभों के बारे में बताया। उन्होंने मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने और पुनर्स्थापन में लाभकारी मृदा सूक्ष्मजीवों की भूमिका पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम में 60 छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों ने भाग लिया। इसके अलावा, सोलन, चंबा, किन्नौर, लाहौल और स्पीति-II और शिमला जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों ने भी मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर कार्यक्रम आयोजित किए। इन आयोजनों में मृदा नमूनाकरण विधियों और खाद तैयार करने पर व्यावहारिक प्रदर्शन शामिल रहे । साथ साथ मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर लाइव वीडियो प्रस्तुतियाँ भी दी गई। सभी प्रतिभागियों ने टिकाऊ कृषि पद्धतियों के मिशन को आगे बढ़ाते हुए, मृदा स्वास्थ्य की सुरक्षा को प्राथमिकता देने का संकल्प लिया।

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