हिमाचल: प्रदेश के डॉक्टर बाईकिंग भानू को राष्ट्रपति ने किया सम्मानित

धर्मशाला: लाहुल-स्पीति जिला के राशील गांव के लैप्रोस्कोपी डॉक्टर बाईकिंग भानू को जनजातीय क्षेत्रों में उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया है। राष्ट्पति द्रौपदी मुर्मू द्वारा देश भर से जनजातीय क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वाले जिन जनजातीय गणमान्यों को राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया गया है, उनमें हिमाचल से डॉक्टर बाईकिंग भानू एकमात्र प्रख्यात विद्वान हैं। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा जनजातीय क्षेत्रों की नीतियों और कार्यक्रमों के निर्धारण और कार्यन्वन के लिए अपने सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया गया। उनका जन्म 28 अगस्त, 1976 को लाहुल-स्पीति जिला के राशील गांव में हुआ तथा उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा राजकीय विद्यालय कुल्लू से की।

उन्होंने 1994 में इन्दिरा गांधी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया तथा नेवी में कमीशन प्राप्त किया। नेवी में नौकरी करते हुए उन्होंने आम्र्ड फ़ोर्स मेडिकल कॉलेज पुणे से जनरल सर्जरी में एमएस किया तथा दिसंबर, 2011 में जनरल सर्जरी में डीएनबी किया। उन्होंने 18 मई, 2004 को विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवेरेस्ट पर विजय प्राप्त की तथा माउंट एवेरेस्ट पर विजय पाने वाले वह विश्व के पहले डॉक्टर बने। उन्हें माउंट एवेरेस्ट पर विजय पाने के लिए राष्ट्रपति ने उन्हें नौ सेना शौर्य पुरस्कार से सम्मानित किया। सर्जन कमांडर के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने 12 दिसंबर, 2015 को स्वैच्छिक सेवानिवृति ग्रहण कर ली, ताकि वह अपनी मातृ भूमि की सेवा कर सकें। उनका लक्ष्य राज्य के ग्रामीण, दुर्गम और जनजातीय क्षेत्रों में सस्ती चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करना है, ताकि लोगों को घर द्वार पर सेवाएं उपलब्ध करबाई जा सकें। वह दुर्गम क्षेत्रों में कार्य करने वाले सर्जन को लप्रोस्कोपिक विधि से ऑपरेशन करने की नवीनतम तकनीक के बारे में प्रशिक्षण प्रदान करते हैं और इसके लिए उन्होंने लप्रोस्कोपी लैंसर्स नाम का एक ग्रुप गठित किया है। वह भानू अस्पताल कुल्लू और मंडी के संस्थापक निदेशक हैं और इसके अतिरिकत वह जनजातीय क्षेत्रों में मेडिकल कैंप आयोजित करते हैं। उनके पिता एसडी भानू सेना से लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से रिटायर हुए हैं, जबकि माता पमोली भानू एक कुशल गृहिणी हैं।

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