बिलासपुर: हिमाचल प्रदेश में मत्स्य आखेट के वर्जित काल के दौरान मत्स्य विभाग ने अवैध शिकार पर कड़ी निगरानी रखते हुए इस वर्ष 610 मामलों को पकड़कर नया मानदंड स्थापित किया है। इन मामलों से विभाग ने 5.593 लाख रूपए मुआवजे के रूप में वसूले, जो पिछले वर्ष की तुलना में 168 मामले और 2.66 लाख रूपए अधिक हैं।
यह जानकारी निदेशक मत्स्य विभाग विवेक चंदेल ने दी।
प्रदेश के जलाशयों और सामान्य जल स्रोतों से 12,000 से अधिक मछुआरे अपनी आजीविका अर्जित करते हैं। वर्तमान में गोविंदसागर, पौंग, चमेरा, कोलडैम और रणजीत सागर जलाशयों (कुल क्षेत्रफल लगभग 43,785 हैक्टेयर) में 5,900 से अधिक मछुआरे कार्यरत हैं, जबकि 2,400 किमी लंबाई वाले सामान्य जल स्रोतों में 6,000 से अधिक मछुआरे सक्रिय हैं। इन संसाधनों की सतत उपलब्धता और लोगों को प्रोटीन युक्त आहार के रूप में मछली उपलब्ध कराना, मत्स्य पालन विभाग की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
प्रत्येक वर्ष 16 जून से 15 अगस्त तक सामान्य जलों में मत्स्य आखेट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाता है, क्योंकि यह अधिकांश प्रजातियों के प्राकृतिक प्रजनन का समय होता है। इस अवधि में विभाग ने मत्स्य धन की सुरक्षा हेतु विशेष व्यवस्था की— गोविंदसागर में 19 और कोलडैम में 3 कैम्प सहित एक उड़न दस्ता, पौंग डैम में 17 कैम्प और एक उड़न दस्ता तथा चंबा में 3 कैम्प और एक उड़न दस्ता तैनात किए गए। जल व सड़क मार्गों से नियमित गश्त के साथ-साथ पैदल निगरानी भी की गई।
पिछले वर्ष 2024 में जहां 442 मामले दर्ज कर 2.93 लाख रूपए का मुआवजा वसूला गया था, वहीं इस वर्ष सहायक निदेशक, वरिष्ठ मत्स्य अधिकारी, मत्स्य अधिकारी, उप-निरीक्षक एवं क्षेत्रीय सहायकों के समर्पित प्रयासों से कार्रवाई में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।