मण्डी मध्यस्थता योजना के अन्तर्गत सरकार द्वारा आम के प्रापण को स्वीकृति

बदलते मौसम में आम की फसल का बागवान रखें ध्यान

उद्यान विभाग के उपनिदेशक राजेश्वर परमार ने बागवानों से की अपील

हमीरपुर:  उद्यान विभाग के उपनिदेशक राजेश्वर परमार ने जिला के बागवानों से अपील की है कि वे बदलते मौसम में आम के पेड़ों के बौर का विशेष ध्यान रखें। उन्होंने बताया कि बौर आने के समय अधिक नमी हो जाने से कीट एवं बीमारियों का खतरा अधिक बढ़ जाता है, जिससे फसल प्रभावित हो सकती है।

इस अवस्था में आम का पर्ण फुदका कीट (हॉपर) और सफेद चूर्ण रोग (पाउडरी मिल्ड्यू) फसल को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। उपनिदेशक ने बताया कि सामान्यतः 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान और वातावरण में आर्द्रता अधिक होने के कारण कीटों का प्रजनन बहुत अधिक बढ़ने लगता है।

राजेश्वर परमार ने बताया कि सफेद चूर्ण फंफूद रोग के लक्षण बौरों, पुष्पक्रमों की डंडियों, पत्तियों व नए फलों पर देखे जा सकते हैं। इससे नई पत्तियों पर अनियमित भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं तथा फूलों, फलों और पत्तियों पर सफ़ेद चूर्ण जैसी फंफूद उत्पन्न होती है। इस रोग से संक्रमित फूल सूखकर गिर जाते हैं तथा रोग ग्रसित फल छोटे एवं विकृत रहते हैं। ऐसी स्थिति में बागवान रोग ग्रसित पत्तियों और पुष्प गुच्छों की छंटाई करके प्राथमिक रोगकारक की मात्रा को कम कर सकते हैं। इसके अलावा बौर निकलने के समय कवकनाशी दवा हेक्साकोनाजोल (मात्रा 0.5 मिलिलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर) या बेटेबल सल्फर (मात्रा 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर) का छिड़काव करना काफी लाभप्रद होता है। संक्रमण अधिक होने पर दवाई का दूसरा छिडकाव 15-20 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।

आम का पर्ण फुदका फीट (हॉपर) छोटे आकार के रस चूसक कीट होते हैं और आम की फसल पर यह प्रजाति विनाशकारी होती है। इसके प्रभाव से कई बार तो पूरी फसल ही खत्म हो जाती है। इस कीट की मादा बौर वाली शाखाओं और फूलों पर बड़ी संख्या में अंडे देती है तथा इन अंडों से निकले हुए कीट आम के बौरों और पुष्पक्रमों की डंडियों से रस चूसते हैं जिसके परिणाम स्वरुप बढ़वार रुक जाती है, फूल सूखकर झड़ने लगते हैं और छोटे फल रस चूसने की वजह से सूख कर गिरने लगते हैं। साथ ही पत्तियों की सतह पर काली फफूंद जम जाती है जोकि पौधों को भोजन बनाने में बाधाकारक है। इससे बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल दवाई (मात्रा 0.25 मिलिलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर) का छिड़काव करें।

उपनिदेशक ने बागवानों को सलाह दी है कि वे रसायनों का उपयोग सुरक्षित तरीकों से करें और यदि तेज हवा चल रही हो तो इनका छिड़काव न करें।

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