शिमला पहुंचे शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने किया राममंदिर कार्यक्रम का बहिष्कार….जानिए क्यों?

शिमला: उत्तर दिशा के ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 1008 पहली बार राजधानी शिमला पहुंचे।। शंकराचार्य गो हत्या को रोकने और गो माता को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाने के लिए राजधानी के प्रसिद्ध जाखू मंदिर में गो ध्वज की स्थापना की। इसके बाद शहर के श्रीराम मंदिर में धर्मसभा का आयोजन रखा गया था, लेकिन उन्होंने इस कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया और जाखू मंदिर से ही संदेश दिया। साईं की मूर्ति होने की वजह से शंकराचार्य श्रीराम मंदिर नहीं गए। 
श्री शंकराचार्य स्वागत समिति हिमाचल प्रदेश के उपाध्यक्ष नरेंद्र भारद्वाज ने श्री राम मंदिर स्थित साईं बाबा की मूर्ति विवाद पर स्पष्टीकरण दिया है। उन्होंने बताया कि सनातन धर्म में कहीं भी वेद शास्त्रों पुराणों में साईं बाबा की पूजा पद्धति का उल्लेख नहीं है इसलिए सनातन समाज साईं बाबा को मंदिर में स्थान की अनुमति नहीं देता। उन्होंने कहा कि सनातन का साईं बाबा से सीधा कोई बैर विरोध नहीं है बल्कि शास्त्रोक्त पद्धति से साईं बाबा को मंदिर में स्थान देना वर्जित घोषित किया गया है। उन्होंने बताया कि श्री राम मंदिर ट्रस्ट एवं मंदिर समिति के पदाधिकारीगण से इस संबंध में वार्ता की जाएगी और जो भी निर्णय होगा उसे सार्वजनिक तौर पर साझा किया जाएगा। उन्होंने सनातन समाज से किसी प्रकार की अफवाहें से बचने की अपील जारी की है।

मंदिर के दीवार पर साईं की मूर्ति बनी होने की वजह से कार्यक्रम स्थल पर नहीं पहुंचे शंकराचार्य। जाखू मंदिर पर किया गया गौ ध्वज स्थापना और जाखू मंदिर से शंकराचार्य ने कहा श्री राम मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारी अध्यक्ष ‌राजीव शूद व अन्य पदाधिकारियो के आश्वासन पर कि वह अतिशीघ्र साईं की मूर्ति को हटा देंगे इसी बात पर शंकराचार्य ने एक प्रतिनिधिमंडल को भेज कर एक दूसरा गौ ध्वज भी श्री राम मंदिर में गोपाल मणी व देवेन्द्र पाण्डेय द्वारा स्थापित करवाया।

जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि

गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित करें सरकार

गोरक्षकों को ही वोट दे हिन्दू समाज
जिसदिन गोहत्या रुकेगी , उसदिन हमारा सारा कर्ज उतरना शुरु हो जाएगा

गो हत्यारी पार्टियों को वोट देकर गो हत्या का पाप न लें हिन्दू

ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘१००८’

जगद्गुरु शंकराचार्य जी राजधानी पहुंचे वहां पर पादुका पूजन हुआ। उसके बाद शंकराचार्य जी महाराज जी ने गौ ध्वज स्थापना किया। गौ ध्वज स्थापना भारत यात्रा के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए परमाराध्य परमधर्माधीष उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज ने कहां कि पूज्य शंकराचार्य जी महाराज गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित कराने के लिए पिछले २२ सितम्बर २०२४ को अयोध्या धाम में पहुंचकर रामकोट की परिक्रमा कर इस यात्रा की शुरुआत की थी, ये ऐतिहासिक यात्रा पूर्वोत्तर के प्रायः सभी राज्यों में जाकर गोप्रतिष्ठा ध्वज की स्थापना कर चुकी ।

इस ऐतिहासिक यात्रा को विगत दिनों तब एक बडी सफलता मिली जब पूज्यपाद शंकराचार्य जी महाराज के निर्देश पर महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री श्री एकनाथ सम्भाजी शिन्दे जी ने देसी (रामा) गाय को राज्यमाता घोषित करके केबिनेट की प्रस्ताव की कापी शंकराचार्य जी के चरणों में सौंपा ।

पूज्य शंकराचार्य जी महाराज इस ऐतिहासिक यात्रा के माध्यम से भारत भूमि की ऊपर से सम्पूर्णतया गौहत्या का कलंक मिटाकर गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित कराने के लिए है।

भक्तों को सम्बोधित करते हुए पूज्यपाद शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि गो गंगा कृपाकांक्षी गोपालमणि जी का ये आन्दोलन अत्यन्त पवित्र है इसलिए इस आन्दोलन को बल देने के लिए हम इस अभियान में लगे हुए हैं ।

गाय को दूध समझने वाले और गाय को मांस समझने वाले दोनों ही गाय के महत्व से अनभिज्ञ है , भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि हमारे साथ भगवान ने यज्ञ को प्रकट किया और हम परस्पर एक दूसरे के लिए बनाए गए हैं ।

एकबार प्रजीपति ब्रह्मा जी द्वारा – देवता , दैत्य और मानव निमंत्रित किए गए , तैयार होने के बाद सुन्दर व्यंजन परोस दिया गया लेकिन ब्रह्मलोक के सेवकों ने सबके हाथ में एक लम्बा डंडा रस्सी के साथ बांध दिया । दैत्यों ने भोजन का बहिष्कार कर वहां से निकल गए । देवता और मनुष्यों ने एक दूसरे का सहयोग करते हुए एक दूसरे को खिलाकर परम तृप्ति का अनुभव किया । दूसरे को खिलाने से संतुष्ट होते हैं हम भारतीय । हम अपने देवता, अतिथि और बच्चों के लिए भोजन बनाते हैं इसी को यज्ञ कहा जाता है । मंत्र और हवि के द्वारा यज्ञ होता है जिससे देवता प्रसन्न होते हैं । ब्राह्मण और गोमाता ही यज्ञ को सम्पन्न कराते हैं । बिना गाय के सारी पूजा उपासना व्यर्थ है , ३३ कोटि देवता की सेवा ही गौसेवा है । पहली रोटी हम अपने ३३कोटि देव स्वरूपा गोमाता को समर्पित करते हैं ।

महाराज दिलीप सर्वसामर्थ्यवान थे लेकिन पुत्र विहीन होने के कारण दुखी थे , गुरु वशिष्ठ के आदेश का परिपालन करते हुए ४० दिन तक अहर्निश गौसेवा की परिणाम अज नामका पुत्र हुआ उनके धर में , आगे चलकर इसी पवित्र वंश में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम नें अवतार धारण किया ।

भगवान को पाना है तो गोसेवा करो , भगवान ने कह रखा है – ‘गवां मध्ये वसाम्यहम्’ मैं सदा गायों के बीच में ही रहता हूं ।

‘मातीति माता’ जो सबको अपने अन्दर समा ले वही माता है । गौमाता में सबकुछ समाहित है । ललितासहस्रनाम में भगवती को ‘गोमाता’ कहकर सम्बोधित किया गया है । गौमाता सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी है, हम सनातनी केवल दूध नहीं अपितु आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गौसेवा करते हैं

आज के कार्यक्रम में निम्न लिखित लोग उपस्थित रहे ।

 

 

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