हमारा इतिहास विश्व में सर्वाधिक प्राचीन; हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय की प्राचीनता- भाग-2

मानव का इतिहास मानव के जनयिता से आरम्भ होता है। हमारे इतिहासकारों ने इसका आरम्भ स्वायंभुव मनु से किया है। मानव समाज मनुओं की सन्तान है। स्वायंभुव मनु के पवित्र कर कमलों के द्वारा ऋषियों के संरक्षण में हमारे राष्ट्र की स्थापना हुई। हमारी इस मातृभूमि पर आदिकाल में इसका बीजारोपण हुआ। स्वायंभुव मनु ने प्रथम मन्वन्तर का प्रवर्तन किया था। उनके वंशज महाराज भरत के नाम पर हिमालय के दक्षिण में स्थित महादेश भारत कहलाया।

हिमालय में हुई मानव सृष्टि की उत्पत्ति और सभ्यता का विकास

पुराणों के अनुसार भारत के ब्रह्मावर्त प्रदेश में ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना का आरम्भ किया। पुराणवेता पार्जिटर आदि ख्यात नामा भारतीय इतिहासज्ञों ने गन्वेषणा कर यह सिद्ध किया है कि वैवस्वत मनु और वैवस्वत युग का आरम्भ लगभग 12 सहस्त्र वर्ष पूर्व हुआ था। प्रलय के पश्चात मानव सृष्टि की उत्पत्ति हिमालय में हुई, सभ्यता का विकास भी यहीं हुआ। सुप्रसिद्ध महान कवि जयशंकर प्रसाद के काव्य कामायनी में वर्णन है कि प्रलय काल में मनु की नाव हिमालय की उपत्यका में किनारे पर लगी और वहीं से सृष्टि का प्रारम्भ हुआ। पुराणों में मत्स्य अवतार की कथा सर्वविदित है। वैवस्वत मनु को जल प्रलय के समय भगवान ने मत्स्य का रूप धारण करके बचाया था। वही मत्स्य भगवान यहूदियों, ईसाइयों, मुसलमानों के हजरत नूह कहलाए। मिश्री भाषा में नूह का अर्थ मछली होता है। मनु से सृष्टि के मानव का विस्तार हुआ जो लाखों वर्ष पुरानी घटनाओं का रूप, काल और स्थान के भेद से अस्पष्ट होता जाता है। शत पथ ब्राह्मण और भागवत में भी इस कथा का वर्णन है। मनवन्तर के नवयुग के प्रवर्तक के रूप में मनु की कथा आर्यों की अनुश्रुति में दृढ़ता से मानी गई है, उन्हें इतिहासिक पुरुष मानना उचित है।

इस श्लोक के अनुसार देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। प्रमाणों से भी यही सिद्ध होता है कि भारत के उत्तराखण्ड अर्थात ब्रह्मवर्त में ही मानवता की सृष्टि हुई। देविका नदी वितस्ता (सतलुज) नदी की शाखा है।

मनुस्मृति में श्रेष्ठ मानव समाज की उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार है:

“हिमालया भिधानो यं ख्यातो लोकेषु पावनः। अर्थ योजन विस्तारः पंचयोजन मायतः ।। परिमण्डले या र्मध्ये मेरूरूत्तम् पर्वतः। ततः सर्वा समुत्पन्ना वृत्तेयो द्विज सत्तम् ।। एरावती वितस्ता व विशाला देविका कुहू। प्रस्तूतिर्यस्य विप्राणां श्रूयते भरतर्षभ।।”

अर्थात विश्व प्रसिद्ध पवित्र पर्वत श्रेणी हिमालय जो विस्तार में आधा योजन और चौड़ाई में पांच योजन है, उन्हीं श्रेष्ठ पर्वतीय क्षेत्र मेरू में जो मण्डलाकार में स्थित है द्विज (श्रेष्ठ संस्कारित) जनों की उत्पत्ति हुई। हे भरत सभी विप्रजन दम क्षेत्र में नहां ईरावती, वितस्ता, विशाला, देविका और कुहू नदियां बहती हैं, का वास है। भारतीय संस्कृति, सभ्यता और शास्त्रों का विकास तपोनिधि ऋषियों द्वारा किया गया है। जिनकी तपोभूमि हिमालय और उसकी पश्चिमी श्रेणियां रही हैं। भारतीय विचारधारा इसी भूमि में विकसित हुई। तपोनिष्ठ वैदिक ऋषियों ने कालविज्ञान का व्यवस्थित विकास किया। आर्यावत के अतिरिक्त और किसी देश में सृष्टि के आरम्भ का हिसाब नहीं पाया जाता है। सृष्टि के उद्भव, विकास, प्रलय का कालगणना का वृतान्त पुराणों, शास्त्रों में विशदरूप से किया गया है जिसमें पृथ्वी के वर्तमान स्वरूप में व्यक्त होने के रहस्य का प्रकटीकरण होता है। प्राचीन भारत के ऋषियों ने सृष्टि सम्वत् का प्रयोग इतिहास लेखन में किया है।

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