घंटों एक जगह पर बैठे रहने व व्यायाम न करने वाले ज्यादातर युवा नसों की बीमारी की चपेट में : डा. रावुल जिंदल

बुजुर्गों-महिलाओं के साथ-साथ नौजवान भी नसों के फूलने की बीमारी से पीडि़त

लेजर एब्लेशन व फोम स्कलेरोथेरेपी से वेरीकोज वेन्स के गंभीर से गंभीर मरीज हो रहे हैं स्वस्थ, दर्द रहित इलाज संभव

शिमला: जांघों व पिंडलियो में नीले-लाल व बेंगनी रंग की नसों का उभरना, भारीपन व अकडऩ जैसे लक्ष्ण दिखें तो इसे नजरअंदाज न करें यह नसों के फूलने की बीमारी है। यह बात जाने माने जाने माने वेस्कूलर सर्जन डा. रावुल जिंदल ने शिमला में आयोजित एक पत्रकारवार्ता में कही, जो कि वेरीकॉज वेनस यानि नसों के फूलने की बीमारी एवं इसके उपचार में आए तकनीकी बदलाव संबंधी जागरूक करने के लिए शहर में पहुंचे थे।

फोर्टिस अस्पताल में वेस्कूलर सर्जरी के डायरेक्टर डा. रावुल जिंदल ने कहा कि नसों की सूजन को नजरअंदाज करना हानिकारक हो सकता है। इस तरह के लक्षण नजर आने पर इसका तुरंत उपचार कराना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि कई बार पीडि़त मरीज द्वारा लगातार खुशकी करने से अल्सर भी हो सकता है। बीमारी के कारण पैर में तेज दर्द शुरू हो जाता है। मरीज अपना पैर हिला भी नहीं सकता। इस बीमारी का प्रमुख कारण लंबे समय तक खड़े रहना माना जाता है। उन्होंने कहा कि पहले बुजुर्गों व महिलाओं में ऐसी बीमारी के ज्यादा लक्ष्ण देखने को मिलते थे, परंतु अब खराब जीवनशैली के कारण युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं में इस बीमारी के फैलने का कारण शारीरिक व्यायाम न करना तथा एक ही जगह पर घंटों बैठे रहना है।

उन्होंने बताया कि ऐसी बीमारी का इलाज मात्र सर्जरी है तथा यदि पीडि़त व्यक्ति समय पर ऐसे अस्पताल पहुंचता है, जहां माहिर डाक्टरों की टीम व उत्तम तकनीक मौजूद हों, तो पीडि़त जल्द स्वस्थ हो सकता है। उन्होंने बताया कि हाल ही में शिमला की एक 37 वर्षीय महिला को बाइलैटरल वैरिकाज़ नसों (सूजी हुई और टेढ़ी-मेढ़ी नसों) के साथ-साथ अत्यधिक भारीपन, सूजन और पैर दर्द के कारण पैरों में तेज दर्द का अनुभव हो रहा था और चलते समय उसे असुविधा का सामना करना पड़ा। उसकी टखनों के आसपास की त्वचा (स्टेज C3) भी काली पड़ गई थी। मरीज के पैर का अल्ट्रासाउंड (डॉपलर स्कैन) किया गया जिसमें अक्षम वाल्व दिखाई दिए। इसके बाद, उन्होंने लेज़र एब्लेशन और वैरिकोसिटीज़ की फोम स्क्लेरोथेरेपी के साथ रोगग्रस्त नस का सफल लेज़र उपचार किया।

डॉ. जिंदल ने बताया कि लेजर एब्लेशन का प्रयोग गंभीर वैरिकाज़ नसों के इलाज और फोम स्क्लेरोथेरेपी से उभरी हुई वैरिकाज़ नसों और स्पाइडर नसों का इलाज किया जाता है।

इसी तरह शिमला की एक ही एक अन्य 46 वर्षीय महिला के टखनों के आसपास की त्वचा में शुरुआती बदलाव (चरण सी2-सी3) हुए थे। डॉपलर स्कैन से दोनों पैरों के वाल्व ख़राब होने का पता चला। जांच से पता चला कि वह बाइलैटरल लेग वैरिकोज वेन्स (सूजी हुई और टेढ़ी-मेढ़ी नसें) से पीड़ित थी। उसके दोनों पैरों की वैरिकोसिटीज़ के लिए फोम स्क्लेरोथेरेपी के साथ बाएं पैर का लेजर उपचार किया गया। उन्होंने बताया कि मरीज सर्जरी के उपरांत पूरी तरह से स्वस्थ है तथा बिना किसी सहारे के चलने में सक्षम हो पाया है।

वैरिकाज़ नसों के उपचार में नवीनतम तकनीकी प्रगति के बारे में चर्चा करते हुए हुए डॉ जिंदल ने कहा कि आधुनिक एडवांस्ड ट्रीटमेंट विकल्प कम दर्दनाक हैं और जल्दी ठीक होने को सुनिश्चित करते हैं। प्रक्रिया में लगभग 30 मिनट लगते हैं और रोगी प्रक्रिया के एक घंटे के भीतर घर जा सकता है। इसके अलावा, रोगी को काफी कम दवाओं की जरूरत पड़ती है और उसे सिर्फ अपनी कुछ अतिरिक्त देखभाल करनी पड़ती है।

डॉ. रावुल जिंदल व उनकी टीम आगामी 6 अप्रैल को सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक हरितारा अस्पताल एंड पेडिट्रिक सेंटर संजौली शिमला में एक चिकित्सा शिविर आयोजित करेगी

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