हिमाचल: किन्नौर जनपद की विवाह परंपरा, शादी में न तो मंडप बनाया जाता है, और न ही अग्नि के लिए जाते हैं फेरे

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लड़की के माता-पिता विवाह के लिए मान जाएँ तो विवाह की तिथि तय की जाती है

ग्राम्य देवता की स्वीकृति के बाद तय होती है तिथि

ग्राम्य देवता के मंदिर में जाकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं वर-वधू

न्योटङ : पूह मंडल में इसे ‘जिङ-दू’ कहते हैं। इस प्रकार के विवाह में यह देखा गया है कि लड़के-लड़की के रिश्तेदार विवाह संबंध जोड़ने का काम करते हैं। कई बार लड़के के माता-पिता भी किसी लड़की का चुनाव कर लेते हैं। तब यदि लड़की के माता-पिता भी विवाह के लिए मान जाएँ तो विवाह की तिथि निश्चित की जाती है और यह भी तय किया जाता है कि ‘माज़ोमी’ (मध्यस्थ) किसे बनाना है। तिथि का अंतिम निर्धारण गाँव के देवता द्वारा किया जाता है। जो तिथि माता-पिता द्वारा निश्चित की जाती है, उसे ग्राम्य देवता को जाकर बताया जाता है। यदि ग्राम्य देव उस तिथि को मान ले तो वह निश्चित हो जाती है अन्यथा ग्राम्य देवता अपने ‘ग्रोक्च’ (माली) के माध्यम से विवाह की तिथि बतलाता है। निश्चित तिथि को ‘माज़ोमी’ तथा उसके साथ दो-चार और व्यक्ति लड़की के घर जाते हैं और रात को वहाँ ठहर कर दूसरे दिन लड़की को लेकर आ जाते हैं। इसमें न तो ग्राम्य देवता को घर में बुलाया जाता है और न ही सभी रिश्तेदारों को। वर-वधू ग्राम्य देवता के मंदिर में जाकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

लड़की माँगने के लिए देखा जाता है शुभ दिन

लड़की के घर पहुँचकर उसके घर वालों को छंग दी जाती है और उनसे लड़की मांगी जाती है

पूह मंडल में इस प्रकार की शादी में लड़की माँगने के लिए शुभ दिन देखा जाता है। लड़की वालों को इसकी सूचना पहले ही दे दी जाती है, फिर लड़के का पिता, मामा तथा नज़दीकी चार-पाँच व्यक्ति सज-धजकर लड़की के घर जाते हैं। वे अपने साथ मिट्टी के एक बर्तन, जिसके ऊपर मक्खन के टुकड़े रखे होते हैं तथा जिसमें ‘खतग’ (सफ़ेद वस्त्र, जिसे माला के स्थान पर गले में पहनाया जाता है) बँधा होता है, में छंग (घर में निकाली गई विशेष प्रकार की शराब) ले जाते हैं। इसको ‘नामारेया’ कहा जाता है। लड़की के घर पहुँचकर उसके घर वालों को छंग दी जाती है और उनसे लड़की मांगी जाती है। लड़की वाले अपने नजदीक रहने वाले रिश्तेदारों को आमंत्रित करते हैं और वे सब मिलकर लड़की के विवाह करने और न करने पर विचार करते हैं। यदि लड़की के देने की बात तय हो जाती है तो विवाह का मुहूर्त धर्म का प्रभाव होने के कारण यहाँ विवाह का मुहूर्त गाँव का लामा निकालता है। मंगनी के दिन ही लड़की को गहने दे दिए जाते हैं। सोने-चाँदी के ये गहने मूंगे और फिरोज़े जड़ित होते हैं। शादी के दिन लड़का बारात लेकर लड़की के घर जाता है। बारात में अधिक लोग नहीं होते, केवल गिने-चुने लगभग पंद्रह के आस-पास रिश्तेदार ही होते हैं। लड़की (दुल्हन) के घर पहुँचकर उसके सभी रिश्तेदारों को लड़का (वर) ‘खतग’ पहनाता है और पैसे देता है साथ में माथा भी टेकता है। यह पहले निश्चित होता है कि बारात लड़की के घर कितनी के ठहरेगी और किस समय वापस लौटेगी।

छोटी शादी में दूल्हे की बारात वापिस आती है  तो अगले दिन कल्पा में ‘बीतोपोनो’, निचार  में ‘जिलोजिपो व पूह में निभाते हैं ‘कम्ज़ा’ रस्म

रस्म के तहत कुछ जायदाद (एक कमरा या नकदी और खेत-खलिहान) दूल्हन के नाम कर दी जाती है

(छोटी शादी में जिस दिन दूल्हे की बारात वापिस आती है, उसके अगले दिन एक रस्म निभाई जाती है, जिसे कल्पा मंडल में ‘बीतोपोनो’, निचार मंडल में ‘जिलोजिपो तथा पूह मदत में ‘कम्ज़ा’ कहा जाता है। इस दिन दुल्हन के माता-पिता एवं रिश्तेदार भी दूल्हे के घर आमंत्रित होते हैं। यह रस्म इकरार नामा या शपथ-पत्र की होती है। कल्पा और निचार मंडल में इस रस्म के अंतर्गत कुछ जायदाद (एक कमरा या नकदी और खेत-खलिहान) दुल्हन के नाम कर दी जाती है तथा पूह मंडल में इस रस्म के समय यह तय कर लिया जाता है कि यदि बच्चे न हों तो लड़का दूसरी शादी कर सकता है। ऐसी स्थिति में पहली पत्नी को गुजारे के लिए एक कमरा तथा कुछ खाने-पीने का सामान रखने के लिए ‘शिड्मङ्’ (लकड़ी की पेटी तथा एक-दो खेत दिए जाने का प्रावधान होता है, जिन्हें ‘मजिङ् छिङा’ कहते हैं।

पूह के कुछ गाँवों में इस प्रकार की शादी में कुछ भिन्नता

बिना मुहूर्त के अथवा मंगनी वाले दिन ही लड़की को साथ लेकर किसी दूसरे के घर में रखते हैं

बाद में लामा पोथी देखकर वधू प्रवेश का दिन और समय निकालते हैं फिर दुल्हन को लाया जाता है घर

स्पीति की सीमा के साथ लगते पूह मंडल के कुछ गाँवों में इस प्रकार की शादी में कुछ भिन्नता पाई जाती है। जब लड़के वाले किसी लड़की के घर उसे माँगने के लिए जाते हैं तो उस समय गाँव का कोई वरिष्ठ राजपूत, लंबरदार या प्रधान, लड़के का पिता तथा एक-दो अन्य व्यक्ति ही शामिल होते हैं। ये लोग अपने साथ ‘खतग’ और घर में निकाली गई पाँच लीटर शराब लेकर जाते हैं। लड़की वाले अपने निकट संबंधियों को बुलाकर रिश्ते की बातचीत करते हैं। यदि लड़की वाले मान जाते हैं तो गाँव का लामा शादी की तिथि निकालता है। जो लोग शादी या मंगनी की बात करने लड़की के घर गए होते हैं, बाद में भी वही लोग निश्चित की गई तिथि को लड़की के घर जाते हैं और लड़की को लेकर आ जाते हैं। ये लोग बड़ी शादी में सबसे अलग दिखते हैं, जिसका उल्लेख आगे किया गया है। कई बार ऐसा भी होता है कि वे बिना मुहूर्त के अथवा मंगनी वाले दिन ही लड़की को लेकर आ जाते हैं। लेकिन तब दुलहिन को किसी दूसरे के घर में रखते हैं। बाद में लामा पोथी देखकर वधू प्रवेश का दिन और समय निकालता है। तत्पश्चात् उसे अपने घर लाया जाता है। दारोश डबडब अथवा ख्युब चुरनेट : पूह मंडल में इसे ‘नामाकुया’ कहा जाता है। इसका अर्थ होता है- चोरी करना या हरण करना। यह विवाह अपने आप में रोमांचक विवाह का एक नमूना है। इस विवाह को भी दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। प्रथम श्रेणी में लड़का लड़की के माता-पिता को सूचित किए बिना लड़की का हरण कर लेता है। दूसरी श्रेणी, जो वर्तमान समय में अधिक प्रचलित है, में लड़की के माता-पिता को सूचित करके लड़की का अपहरण किया जाता है। इन दोनों ही श्रेणियों में जाति एक समान होनी चाहिए। उक्त प्रथम श्रेणी में लड़का दो माज़ोमी (मध्यस्थ) का चुनाव कर लेता है और वह अपने कुछ मित्रों के साथ लड़की के गाँव चला जाता है तथा इस ताक में रहता है कि लड़की किस समय घर में अकेली है अथवा घर से बाहर अकेली निकले। इस कार्य में कई बार लड़की की सखी की सहायता ली जाती है, जो उसे किसी बहाने घर से बाहर निकालती है। तब, जब वह अकेली घर से कहीं दूर निकलती है तो लड़का अपने मित्रों के साथ उसके पीछे-पीछे जाता है और उसे सबसे पहले स्पर्श करता है। उसके पश्चात् लड़के के साथी उसे उठाकर जैसे-तैसे (वर्तमान संदर्भ में गाड़ी में) ले आते हैं। ठीक उसी समय माज़ोमी लड़की के घर पहुँच जाते हैं और उसके माता-पिता को सूचना देते हैं कि हमारे लड़के ने आपकी लड़की का हरण कर लिया है, अतः हम आपकी सहमति लेने आए हैं। इस स्थिति में कई बार बड़ा विरोध होता है और बहस भी होती है। प्रायः देखा गया है कि अंततः लड़की के माता-पिता उस रिश्ते को स्वीकार कर लेते हैं। ‘माज़ोमी’ ‘कोरङ’ (शराब) की एक बोतल तथा एक से पाँच हज़ार तक की नक़दी लेकर गए होते हैं, जिन्हें वे वहाँ पहुँचते ही लड़की के माता-पिता के सामने रख देते हैं। जब लड़की के माता-पिता मान जाते हैं तो वे नक़दी उठाकर गिनते हैं। यदि उन्हें नक़दी कम लगे तो और पैसे की माँग करते हैं। कई बार लड़की के माता-पिता बहुत अधिक रुपयों की माँग कर लेते हैं, जो पूरी करनी पड़ती हैं। रिश्ता स्वीकृति की स्थिति में लड़की के माता-पिता ‘माज़ोमी’ द्वारा लाई गई राशि रख लेते हैं और ‘कोरङ’ की बोतल की अपने कुल देवता के सामने पूजा करते हैं। उधर जब लड़की को लेकर लड़का अपने गाँव पहुँचता है तो उसे सीधे अपने घर नहीं ले जाता, बल्कि किसी सगे-संबंधी के घर रखता है। यदि ‘माज़ोमी’ का घर पास हो तो लड़की को उसी के घर में रखा जाता है। पूह एवं उसके आस-पास के गाँवों में लड़की को लड़के के मामा के घर में रखने का रिवाज है, जिसे ‘नङलालिंज़ा’ कहते हैं। लड़की को जिस घर में रखा जाता है, उसे वहीं से सजा-सँवारकर दूल्हे के घर उस समय लाते हैं, जब लड़की का पिता एवं सगे-संबंधी लड़के के घर खाना खाने आते हैं। जब लड़की का पिता लड़के के घर के दरवाज़े के पास पहुँचता है, तब लड़की को वहाँ लाया जाता है। ‘माज़ोमी’ लड़की का हाथ पकड़कर उसे घर के अंदर ले जाता है। लड़की के पिता और सगे-संबंधी को अंदर बैठाया जाता है। लड़की की अपने पिता और संबंधियों से बातचीत के बाद उन्हें भोजन कराया जाता है। इस प्रकार के विवाह में यदि लड़के वाले लड़की को मनाने में असफल हो जाते हैं तो उसे पूरे सम्मान के साथ माता-पिता के यहाँ पहुँचाना पड़ता है, नहीं तो कानूनी कार्यवाही भी हो सकती है।

दम चलशिश अथवा बाग्याशीश : इसका अभिप्राय है प्रेम विवाह अथवा भागकर शादी करना । प्रेम विवाह का प्रचलन वर्तमान समय में बहुत बढ़ गया है। इसमें अंतर्जातीय विवाह अधिक हो रहे हैं। इसमें कई बार लड़के व लड़की दोनों को सगे-संबंधियों या समाज का विरोध झेलना पड़ता है। ऐसे विवाह में भी जब लड़का लड़की को ले आता है तो ‘माज़ोमी’ लड़की के पर जाते हैं। यदि लड़की के माता-पिता न मानें तो ‘माज़ोमी’ वापिस आ जाते हैं, क्योंकि लड़का-लड़की एक-दूसरे से प्यार करते हैं, इसलिए शादी तो हो ही जाती है। यदि लड़की के माता-पिता मान जाएँ तो रीति रिवाज के अनुसार वही रस्में निभाई जाती हैं, जो हरण विवाह और शास्त्रोक्त विवाह में निभाई जाती हैं।

न्योट‌माझोमिर : इसका अर्थ है- युगल बिचौलिए संग। इसे ‘न्योटडू बरमीरह’ भी कहते हैं। इस प्रकार की शादी तब होती है, जब लड़का एवं लड़की दोनों पक्ष आर्थिक दृष्टि से कमजोर हों। इसमें माज़ोमी और उसका एक साथी, जिसे ‘मडडोनो क्युपचा’ कहते हैं, लड़की के पर जाते हैं और उसे लेकर आ जाते हैं। लड़की के घर से कोई अन्य साथ नहीं आता। इस प्रकार की शादी में कोई भी रस्म नहीं निभाई जाती। ऐसी शादियों बहुत कम होती हैं।

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