जोगिंद्रनगर के सुनील ने कृषि वैज्ञानिक बनने का सपना छोड़ शुरू किया मशरूम का कारोबार; साल में कर रहे 35 से 40 लाख रुपए की कमाई

25 स्थानीय लोगों को दे रहे रोजगार

ज़िला कांगड़ा में 500 इकाईयों में सालाना हो रहा 3 हज़ार मीट्रिक टन मशरुम का उत्पादन

कांगड़ा: जहां आज की युवा पीढ़ी खेतीबाड़ी के व्यवसाय से विमुख होकर सरकारी नौकरी की तरफ दौड़ रही है वहीं कुछ लोग पढ़ा-लिखा होने के बावजूद भी स्वरोजगार को अपना कर समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन कर नई मिसाल पेश कर रहे हैं। मण्डी जिला की उप तहसील मकरीड़ी (जोगिंद्रनगर) लांगना गांव के रहने वाले पढ़े-लिखे युवा सुनील दत्त की बचपन से ही कृषि वैज्ञानिक बनने की इच्छा थी, ताकि वह गरीब किसानों के दर्द को समझते हुए उनकी मदद कर सकें। डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी (सोलन) से बीएससी तथा एमएससी (औद्यानिकी) की डिग्री हासिल करने के बाद सुनील दत्त ने वर्ष 2006 में चंडीगढ़ में एग्रो डच इंडस्ट्रीज लिमिटेड में बतौर प्रबंधक अपनी सेवाएं आरंभ की। उसके बाद वह प्रदेश के पाबंटा साहिब में हिमालयन इंटरनेशनल तथा नालागढ़ में इंका फूड्स मशरूम उत्पादन कंपनियों में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे।

सुनील ने कृषि वैज्ञानिक बनने का सपना छोड़ शुरू किया मशरूम का कारोबार

प्रगतिशील किसान सुनील ने कृषि क्षेत्र में मिल रहे सवर्णिम अवसरों का फायदा उठाने का मन बनाया। मशरूम का कारोबार शुरू करने के लिए उन्होंने वर्ष 2012 में नगरोटा सूरियां विकास खंड के तहत अनुही गांव में 12 कनाल भूमि खरीदी। लेकिन आर्थिक स्थिति राह में बाधा बन रही थी। उन्होंने इसके लिए बागवानी विभाग से सम्पर्क कर केंद्र प्रायोजित एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत वर्ष 2016 में बैंक से एक करोड़ रुपए का ऋण लेकर धौलाधार मशरुम फार्म खोल कर कारोबार शुरू किया। जिसके लिए उन्हें प्रदेश के बागवानी विभाग द्वारा 22 लाख रुपए का अनुदान प्रदान किया गया। इस राशि से उन्होंने अनुही में मशरुम तथा खाद तैयार करने की इकाई स्थापित की है। कड़ी मेहनत के बल पर आज सुनील निरन्तर ऊँचाइयों को छू रहे है। इस प्लांट में प्रतिदिन 5 क्विंटल तक मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं। जिसे वह सीमांत राज्य जम्मू, पंजाब तथा प्रदेश के अन्य स्थानों में बेच कर अच्छे दाम प्राप्त कर रहे हैं। वह अपने मशरूम यूनिट में 25 स्थानीय महिला एवं पुरुषों को भी रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं । इस क्षेत्र में हाल ही में डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी (सोलन) से समझौता हस्ताक्षरित (एमओयू) हुआ है। स्थानीय लोगों के साथ अध्धयनरत बच्चे प्रशिक्षण प्राप्त करने और अवलोकन करने के लिए उनकी मुशरूम यूनिट में आते हैं।

सुनील अपने प्लांट में प्रतिवर्ष दो करोड रुपए के मशरूम तथा खाद का कारोबार कर 35 से 40 लाख रुपए की सालाना कमाई कर रहे हैं। मशरुम उत्पादन से उन्होंने समाज में एक अलग पहचान बनाई है।

क्या कहते है विभागीय अधिकारी बागवानी विभाग के उप निदेशक कमलशील नेगी का कहना है कि प्रदेश सरकार ने किसानों को मशरुम व ढींगरी का कारोबार शुरू करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। जिसके लिए समय-समय पर उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है। विभाग द्वारा हर वर्ष 300 से 500 किसानों को मशरुम की खेती करने के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। ज़िला में वर्तमान में 500 से अधिक छोटी व बड़ी खुम्ब इकाईयां स्थापित हैं। जिनमें सालाना 3 हज़ार मीट्रिक टन मशरुम का उत्पादन हो रहा है। विभाग द्वारा एक लाख तक की छोटी इकाई स्थापित करने के लिए 50 प्रतिशत जबकि 55 लाख रुपए तक बड़ा यूनिट लगाने के लिए 40 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाती है। जिसमें मशरुम व कम्पोस्ट यूनिट के लिए 8-8 लाख रुपए जबकि मशरुम स्पान लैब के लिए 6 लाख रुपए (कुल 22 लाख रुपए ) का अनुदान मुहैया करवाया जाता है।

उनका मानना है कि मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सूक्खु के प्रयासों से निकट भविष्य में खुम्ब उत्पादन में कांगड़ा ज़िला भी मशरुम व ढींगरी कारोबार का हब बन कर उभरेगा तथा खुम्ब शहर सोलन जिला की तरह देश में अपनी अलग पहचान स्थापित करेगा।

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