धौलधार की ऊंचे पर्वत पर बसा प्राचीन मंदिर “भागसूनाग”

“भागसूनाग” के पवित्र जल के स्नान-पान करने से दूर होती हैं रोग-ब्याध्यिां

भागसू की इस विनम्र प्रार्थना से नागदेव शंकर शांत हो गए और उसकी इच्छा के बारे में जानना चाहा। असुरराज भागसू बोला कि प्रभु यदि आप कृपा करें तो मेरी अंतिम इच्छा  यही है कि मेरे राज्य में पानी पहुंच जाएं जिससे वहां की प्रजा की रक्षा हो सके। और आपके हाथों मेंरी मुक्ति हुई है। इसलिए आपके नाम के साथ-साथ मेरा नाम भी अमर रहे ऐसा कुछ उपाय कीजिएद्ध कहकर भागसू ने प्राण त्याग दिए।

भागसूनाग भगवान शिव का अत्यंत प्राचीन स्थान है

भागसूनाग भगवान शिव का अत्यंत प्राचीन स्थान है

इसके बाद नागदेव ने उसके प्रदेश में वर्षा की और जल के अनेक स्त्रोत बहा दिए। फिर अपने नाम जोडक़ार उसे सदा-सदा के लिए अमरत्व प्रदान कर दिया। तभी से इस स्थान का नाम भागसूनाग प्रसिद्ध हुआ। नागदेव अपने आराघ्य शिव का रूप धारण कर यहां प्रकट हुआ। इससे मंदिर में उनका स्वयंभू का अर्थ है जो स्वंय प्रकट हुआ हो।

कालान्तर में यहां के राजा धर्मचंद को भगवान भागेश्वर ने सपने अपने यहां होने की सूचना दी। राजा धर्मचंद के नाम से ही इस नगरी का नाम धर्मशाला पड़ा है। भागसूनाग के ऊपर कुछ दूरी पर धर्मकोट गांव भी राजा धर्मचंद के नाम से विद्यमान है। इसी ऊंचाई पर राजा धर्मचंद के किले के अवशेष भी मिलते हैं। राजा धर्मचंद द्वारा ही यहां मंदिर बनवाकर विधिपूर्वक भगवान भागेश्वर की स्थापना की गयी इस सिद्धपीठ पर निष्ठापूर्वक यदि कोई साधना उपासना करता है तो भगवान भागसूनाग उसकी सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

मंदिर के नीचे निकलने वाले से इस पवित्र जल में स्नान पान आदि करने से नाना प्रकार की रोग-ब्याध्यिां दूर हो जाती हैं। मंदिर के साथ ही कमरे  में कुछ में कुछ पुरानी समाधियां हैं, जिससे एक बड़ी समाधि को किसी सिद्ध ने अपनी जीवित रहते ही ले लिया था।

नाग देवता का स्थान

देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश के मनोहारी पर्यटक स्थल धर्मशाला के ऊपरी हिस्से मैक्लॉडगंज से भी करीब दो किलोमीटर ऊपर है प्राचीन भागसूनाग मंदिर। यहां से बायीं

 मनोहारी पर्यटक स्थल धर्मशाला के ऊपरी हिस्से मैक्लॉडगंज से भी करीब दो किलोमीटर ऊपर है

मनोहारी पर्यटक स्थल धर्मशाला के ऊपरी हिस्से मैक्लॉडगंज से भी करीब दो किलोमीटर ऊपर है

ओर कुछ ही दूरी पर डल नाम की एक झील भी है। भागसूनाग देव मन्दिर के पुजारी ने प्रचलित कथा सुनाते हुए बताया कि

भागसूनाग देव मन्दिर के पुजारी

भागसूनाग देव मन्दिर के पुजारी

द्वापर युग के मध्यकाल में दैत्यों के राजा भागसू की राजधानी अजमेर देश में थी। उस के राज्य में बहुत दिनों तक पानी न बरसने के कारण प्रजा ने दुखी होकर उससे कहा कि या तो वह पानी का प्रबंध करे या फिर वे कहीं और चले जाएंगे। राजा भागसू ने उन्हें सांत्वना दी और स्वयं पानी की खोज में निकल पड़ा। जब वह यहां स्थित डल झील के पास पहुंचा तो अपनी माया से उसने नाग देवता की इस ङील का सारा पानी अपने कमंडल में भर लिया और लौटने लगा। रात होने के कारण वह उसी स्थान पर विश्रम करने लगा, जहां आज यह मंदिर है। जब नाग देवता ने आकर देखा कि उनका डल सूखा हुआ है तो वह पैरों के निशान देखते हुए वहां पहुंचे, जहां भागसू विश्रम कर रहा था।

दोनों में युद्घ हुआ, जिससे सारा पानी यहीं गिर गया। डल फिर से भर गया और इस स्थान पर एक झरना बहने लगा। मरते समय दैत्यराज भागसू ने नाग देवता की स्तुति की। इससे प्रसन्न होकर नाग देवता ने उससे वर मांगने को कहा। तब भागसू ने कहा- मरने के बाद मेरा भी नाम हो यानी मुझे लोग दुर्भावना के साथ न याद करें और मेरे देश में पानी हो जाए। नाग राजा ने कहा कि जब तक पृथ्वी रहेगी इस स्त्रोत का नाम भागसु नाथ रहेगा और तब नाग देवता नेकहा- इस स्थान पर पहले तेरा नाम आएगा और बाद में मेरा। यह मंदिर से 5100 वर्ष से भी ज्यादा पहले बना। यह प्रदेश गद्दियों का वास स्थान है। धौलाधार के पार भरमौर है जो गद्दियों का देश है।

कलयुग में यहां के राजा धर्मचंद कोभगवान शंकर ने स्वप्न में आकर कहा कि यहां नाग देवता का पवित्र जल होने से मैं स्वयं यहां आ गया हूं। तब राजा ने यहां मंदिर की स्थापना कराई। तभी से इस जगह को भागसूनाग मंदिर के नाम से जाना जाता है। रोजाना बड़ी संख्या में सैलानी यहां आते हैं और पूजा-अर्चना के करते हैं। झरने से आने वाला पानी यहां बनाए गए एक साफ-सुथरे स्विमिंग पूलमे इकट्ठा कर लिया जाता है, जिसमें लोग स्नान भी करते हैं। इस मंदिर से दायीं ओर आगे जाने पर वह झरना मिलता है। रोमांच के शौकीन सैलानी यहां तक भी जरूर जाते हैं।

Pages: 1 2

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *