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कुछ बरस पूर्व यहां किसी बाहरी व्यक्ति के आने पर था प्रतिबंध
कुछ साल पहले तक यहां किसी बाहरी व्यक्ति का आना लगभग प्रतिबंधित था। चमड़े की बनी बाहर की कोई भी वस्तु को
गावं में लाना सख्त मना था। पर अब कुछ-कुछ बदलाव हो रहा है। लोगों की आवाजाही बढ़ी है। पर अभी भी बाहर वालों को दोयम नजर से ही देखा जाता है। इनके मंदिर के प्रांगण में किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है।
यहां करीब डेढ़ सौ घर हैं तथा कुल आबादी करीब पांच-छह सौ के लगभग है जिसे चार भागों में बांटा गया है। यहां के अपने रीति-रिवाज हैं जिनका पूरी निष्ठा तथा सख्ती के साथ पालन होता है। अपने किसी भी विवाद को निबटाने के लिये यहां दो सदन हैं, ऊपरी तथा निचला। यही सदन यहां के हर विवाद का फ़ैसला करते हैं। यहां के निवासियों ने कोर्ट कचहरी का नाम भी नहीं सुना है।
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भेड़-पालन यहां का मुख्य व्यवसाय
यहां आठवीं तक स्कूल, डाक खाना तथा डिस्पेंसरी भी है, पर साक्षरता की दर ज्यादा नहीं है वहीं इलाज वगैरह मे झाड-फ़ूंक का ही सहारा लिया जाता है। भेड़-पालन यहां का मुख्य कार्य है। वैसे नाम मात्र को चावल, गेहूं, मक्का इत्यादि की फसलें भी उगाई जाती हैं पर आमदनी का मुख्य जरिया भांग की खेती भी मानी जाती है।
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बाहरी व्यक्ति ने किसी चीज़ को छुआ तो जुर्माना
कुल्लू के मलाणा गांव में यदि किसी बाहरी व्यक्ति ने किसी चीज़ को छुआ तो जुर्माना देना पड़ता है। जुर्माने की रकम 1000 रुपए से 2500 रुपए तक कुछ भी हो सकती है। अपनी विचित्र परंपराओं लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण पहचाने जाने वाले इस गांव में हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। इनके रुकने की व्यवस्था इस गांव में नहीं है। पर्यटक गांव के बाहर टेंट में रहते हैं। अगर इस गांव में किसी ने मकान-दुकान या यहां के किसी निवासी को छू लिया तो यहां के लोग उस व्यक्ति से एक हजार रुपए वसूलते हैं।
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हिमाचल के मलाणा गांव में लगे नोटिस बोर्ड
ऐसा नहीं हैं कि यहां के निवासी यहां आने वाले लोगों से जबरिया वसूली करते हों। मलाणा के लोगों ने यहां हर जगह नोटिस बोर्ड लगा रखे हैं। इन नोटिस बोर्ड पर साफ-साफ चेतावनी लिखी गई है। गांव के लोग बाहरी लोगों पर हर पल निगाह रखते हैं, जरा सी लापरवाही भी यहां आने वालों पर भारी पड़ जाती है।
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दुकान के बाहर रखो रुपए फिर मिलता है सामान
मलाणा गांव में कुछ दुकानें भी हैं। इन पर गांव के लोग तो आसानी से सामान खरीद सकते हैं, पर बाहरी लोग दुकान में न जा सकते हैं न दुकान छू सकते हैं। बाहरी ग्राहकों को दुकान के बाहर से ही खड़े होकर सामान मांगना पड़ता है। दुकानदार पहले सामान की कीमत बताते हैं। रुपए दुकान के बाहर रखवाने के बाद सामान भी बाहर रख देते हैं।
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यहां के लोग खुद को मानते है सिकंदर के सैनिकों का वंशज, यहां नहीं चलते भारतीय कानून
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के अति दुर्गम इलाके में स्थित है मलाणा गांव। इसे आप भारत का सबसे रहस्यमयी गांव कह
सकते है। यहां पर भारतीय क़ानून नहीं चलते है यहां की अपनी संसद है जो सारे फैसले करती है।
यहां अकबर ने जमलू देवता से मांगी थी माफ़ी, इसलिए होती है पूजा
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अकबर की प्रतिमा की पूजा की तैयारी करते मलाणावासी।
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अकबर ने ली थी जमलू देवता की परीक्षा
कुल्लू जिले का मलाणा गांव अपने आप में कई विविधताओं को समेटे हुए है। यहां के लोग अपने देवता जमलू के सिवाए किसी भगवान को नहीं मानते। इस गांव में प्राचीन काल से लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है। कहा जाता है कि मुगल सम्राट अकबर भी इस गांव को अपने अधीन नहीं कर पाया था। कहते हैं कि इस गांव को अपने अधीन करने के लिए अकबर ने यहां के देवता जमलू की परीक्षा लेनी चाही थी।
कहा जाता है कि अकबर बादशाह को सबक सिखाने के लिए जमलू देवता ने दिल्ली में बर्फ गिरवा दी थी। इसके बाद अकबर को जमलू देवता से माफी मांगनी पड़ी थी। इस गांव के रीति रिवाज हिंदुओं की तरह हैं यह लोग अपने आपको मानते भी हिंदू ही हैं। गांव में साल में एक बार यहां के मंदिर में अकबर की पूजा की जाती है। इस पूजा को बाहरी लोग नहीं देख सकते हैं।
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अकबर की होती है पूजा
स्थानीय लोग बताते हैं कि भिक्षा मांगते हुए दिल्ली पहुंचे दो साधुओं को सम्राट अकबर ने पकड़ कर उनसे उनकी झोली में से दक्षिणा छीन ली। इसके बाद जम्दग्नि ऋषि ने स्वप्न में अकबर को ये वस्तुएं लौटाने को कहा। अकबर ने फिर सैनिकों के हाथ यहां अपनी ही सोने की मूर्ति बनाकर बतौर दक्षिणा वापस भेजी। इस मूर्ति की तब से यहां पूजा होती है। यहां अकबर के लिए बकरा हलाल किया जाता है।
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मलाणा में देवता का स्थान
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फागली उत्सव
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लोगों के अपने रीति-रिवाज
आत्म केन्द्रित से यहां के लोगों के अपने रीति रिवाज हैं, जिनका पूरी निष्ठा तथा कड़ाई से पालन किया जाता है, और इसका श्रेय जाता है इनके ग्राम देवता जमलू को जिसके प्रति इनकी श्रद्धा, खौफ़ की हद छूती सी लगती है। अपने देवता के सिवाए लोग और किसी देवी-देवता को नहीं मानते। फागली उत्सव में अठारह करडू अपने मंदिर से बाहर निकलते हैं। अकबर की सोने की मूर्ति और चांदी के हिरण को भी बाहर निकाल कर इनकी पूजा की जाती है। कारदारों का कहना है कि अकबर के लिए समर्पित सिर्फ दो त्योहार हैं। उन्होंने बताया कि जम्दग्नि ऋषि और अकबर के बचन के आधार पर सभी हिंदुओं को यहां परंपरा का विधिवत निर्वहन करना पड़ता है। महिलाएं तीन दिन तक शाम के समय जम्दग्नि ऋषि की धर्म पत्नी रेणुका के दरबार में नृत्य करती हैं। ब्रेसतू राम और पुजारी सुरजणू का कहना है कि फागली उत्सव में जम्दग्नि ऋषि के बारह गांवों के लोग देवता की चाकरी के लिए पांच दिन तक मौजूद रहते हैं।
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सिकंदर वापस यूनान की ओर जाने लगा तो उसके कुछ सैनिक मलाणा में ही रुक गए