स्वयं में इतिहास समेटे हुए जहां का लोकतंत्र, विश्व का एकमात्र कुल्लू का “मलाणा” गांव

स्वयं में इतिहास समेटे हुए जहां का लोकतंत्र, विश्व का एकमात्र कुल्लू का “मलाणा” गांव

  • प्राचीन लोकतांत्रिक प्रणाली को जीवित रखे हुए गाँव मलाणा

  • लोकतंत्रीय व्यवस्था सबसे पुरानी

विश्व की प्राचीनतम संसद से युक्त मल्लाना

विश्व की प्राचीनतम संसद से युक्त मल्लाना

हिमाचल प्रदेश के जिले कुल्लू के गांव मलाणा में जो लोकतंत्रीय व्यवस्था है वह सबसे पुरानी कही जाती है। मलाणा गांव के बारे में कई तरह की किवदंतियां प्रसिद्ध हैं। इन किवदंतियों के सच-झूठ के बारे में तो विश्वास के साथ कुछ कहना कठिन है परन्तु एक बात तो सत्य है कि मलाणा में संसदीय लोकतांत्रित व्यवस्था सदियों से चल रही है। यह विश्व का सबसे प्राचीन संसदीय लोकतंत्र का उदाहरण है।

समुद्र तल से लगभग 12 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थापित कुल्लू जिले के मलाणा गांव की संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था सबसे पुरानी और अच्छी मानी जाती है। यह व्यवस्था देश गुलाम होने से भी पहले की बताई जाती है। इस व्यवस्था के अंतर्गत लोकसभा और राज्यसभा की ही भांति ज्येष्टांग (अपर हाउस) और कनिष्टांग (लोअर हाउस) है। प्रत्येक तीन वर्ष के उपरांत इन दोनों हाउस के चुनाव होते हैं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार यह चुनाव देवता जमदग्रि ऋषि के आदेशानुसार कराए जाते हैं।

गांव में किसी भी तरह के विवाद या अन्य किसी महत्वपूर्ण मसले पर चर्चा के लिए परिषद की बैठक बुलाई जाती है। यह बैठक गांव के बीचों-बीच पत्थरों से बने चबूतरे पर होती है। गांववासी परिषद के फैसलों का सम्मान करते हैं और उन्हें मानते हैं। सभी प्रकार के निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं। इतिहासकार इस गांव की उत्पति के बारे में विभिन्न मतों में बंटे हुए हैं। बहुत से इतिहासकार मलाणावासियों को यूनानियों के वंशज मानते हैं और मलाणा को हिमालय का एथेंस कहते हैं।

देश और दुनिया का एकमात्र गांव मलाणा जहां का लोकतंत्र स्वयं में इतिहास समेटे है। इस गांव को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र माना जाता है। मलाणा शायद हिन्दुस्तान का एक मात्र गांव है जो आदिम परम्पराओं के साथ प्राचीन लोकतांत्रिक प्रणाली को बचाए हुए है। यहां की संसद और न्याय प्रणाली को देखते हुए इसे दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्रों में शामिल किया जा सकता है।

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के 8700 फुट की ऊँचाई पर एक मनोरम घटी में बसे गांव धाराबेद तथा साराबेड नाम के दो मोहल्लों में बंटा हुआ है। यहां सिर्फ दो समुदाय के लोग रहते हैं ,एक ठाकुर और दूसरे हरिजन। गांववासी गांव से बाहर आये लोगों को अछूत मानते है और उनमें से कोई भी अगर भूले से गांव के पवित्र माने जाने वाले विशेष स्थानों, पत्थरों या मंदिरों को छु ले तो उनसे जुर्माने के रूप में पैसे या बकरा देना पड़ता है।

  • मलाणा गांव बसने की कहानी काफी रोचक

मलाणा गांव बसने की कहानी काफी रोचक है। कहते हैं इसे सात यूनानी सैनिकों ने बसाया था। 326 ई.पु. में सिकंदर अपनी सेना के साथ व्यास नदी के पास पहुंचा था। वह अपने विश्व विजयी अभियान को जारी रखना चाहता था परन्तु थकी सेना वापिस यूनान लौट जाना चाहती थी। उन्हें लगा कि सिकंदर अपना अभियान जल्दी समाप्त नहीं करेगा और उन्हें पूरा जीवन युद्धों में बिताना पड़ेगा। कुछ सैनिकों को ये आशंका हो गयी थी कि उनकी वापसी भी जोखिमो से खाली नहीं होगी। क्योंकि जिन क्षेत्रों और कबीलों से जीतकर वो आगे बड़े है वे बदला लिए बिना उन्हें जाने नहीं देंगे। कहते हैं कि एक दिन ऐसे ही सात सैनिकों ने सदा के लिए भारत में बस जाने का निर्णय लेकर सिकंदर की सेना को छोड़ दिया। वे ब्यास नदी पार करके किसी उपयुक्त स्थान की तलाश में निकल पड़े। अतंत: उन्हें एक दुर्गम सुरम्य और उपजाऊ भूमि मिली और इस तरह मलाणा गांव अस्तित्व में आया।

  • मलाणा की नींव कुल्लू के काली बिजली गांव के दो सगे भाईओं ने डाली थी…

एक कहानी ये भी है कि मलाणा की नींव कुल्लू के काली बिजली गांव के दो सगे भाईओं ने डाली थी। एक दिन दोनों भाई

मलाणा की नींव कुल्लू के काली बिजली गाँव के दो सगे भाईओं ने डाली थी...

मलाणा की नींव कुल्लू के काली बिजली गाँव के दो सगे भाईओं ने डाली थी…

शिकार की तलाश में काफी दूर निकल गए। शाम हो जाने पर उन्हें गांव लौटना असंभव लगा। अत: उन्होंने रात के भोजन के लिए सत्तू घोलते समय उसमें मिले जौ के कुछ साबुत दाने धरती पर बो दिए और कुछ दिन बाद ही उन्होंने आश्चर्य से देखा कि वहां जौ के पौधे उग आये है। उस धरती की उर्वरता देखकर दोनों भाईओं ने वहीँ बस जाने का फैसला किया।

बड़ा भाई विवाहित था और वह गांव जाकर अपनी पत्नी को भी साथ ले आया। इन तीनों का पहला आश्रय एक गुफा बनी। कहा जाता है कि मलाणा में आज जो हरिजन परिवार रह रहा है वे बड़े भाई के वंशज है। ये कहानी आज भी गांव में मौजूद है।

  • पुजारी को छोड़कर अन्य किसी व्यक्ति को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं

मलाणा वासी जमदग्नि ऋषि को अपना ग्राम देवता मानते हैं। पुजारी को छोड़कर अन्य किसी व्यक्ति को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। चेत्र , आषाढ़ और भादों में ग्राम देवता की विशेष पूजा आयोजित की जाती है। पुजारी प्रतिमा को एक खाली थाली से छुआ कर पुनः उसे मंदिर में यथास्थान रख देता है। बाद में इस खाली थाली को गाँव के द्वार द्वार पर ले जाया जाता है, ताकि लोग ग्राम देवता की पूजा कर सके। ग्राम देवता के पुजारी का पद पैतृक नहीं होता। पुजारी की बाकायदा नियुक्ति होती है। पुजारी को विभिन्न प्रतिबंधों का पालन करना पड़ता है। वह चमड़े या प्लास्टिक के जूते नहीं पहन सकता। वह केवल बकरी के ऊन से बने स्पेशल जूते पहनता है जो जूते कम जुराबे ज्यादा लगते हैं।

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