आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा के अनुसार इस दिन सुबह से चतुर्थी रहेगी। करवा चौथ महिलाओं के लिए इस बार खास रहेगी, चंद्रोदय रात 8.55 पर रोहिणी नक्षत्र में होगा। शास्त्रों के अनुसार ज्योतिषशास्त्र रोहिणी नक्षत्र में चंद्रोदय होने से पति-पत्नी में प्रेम बढ़ेगा और घर में सुख-समृद्धि बढ़ेगी। रोहिणी नक्षत्र में चंद्रमा की पूजा से स्त्रियों के रोग एवं शोक दूर होंगे। इस दिन किए गए शुभ कामों का पूरा फल मिलेगा। इस बार करवा चौथ पर ग्रह दशा, नक्षत्र, वार तीनों के अद्भुत संयोग से महासंयोग बन रहा है। इस दिन व्रत करने से महिलाओं को 100 व्रतों का वरदान मिलेगा। गणेश जी की पूजा का भी विशेष महत्व रहेगा। यही नहीं ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक भी बुध समृद्धि का परिचायक है।
- करवा चौथ का त्यौहार इस बार बुधवार को मनाया जा रहा है।
- बुधवार को शुभ कार्तिक मास का रोहिणी नक्षत्र है।
- इस दिन चन्द्रमा अपने रोहिणी नक्षत्र में रहेंगे।
- इस दिन बुध अपनी कन्या राशि में रहेंगे।
- इसी दिन गणेश चतुर्थी और कृष्ण जी की रोहिणी नक्षत्र भी है।
- बुधवार गणेश जी और कृष्ण जी दोनों का दिन है।
- ये अद्भुत संयोग करवाचौथ के व्रत को और भी शुभ फलदायी बना रहा है।
- इस दिन पति की लंबी उम्र के साथ संतान सुख भी मिल सकता है।
स्त्रियां इस व्रत को पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। यह व्रत अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप रखा जाता है, लेकिन इन मान्यताओं में थोड़ा-बहुत अंतर होता है। सार तो सभी का एक होता है- पति की दीर्घायु। इस पर्व पर महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाती हैं, 16 श्रृंगार करती हैं एवं पति की पूजा कर व्रत का पारण करती हैं।
करवा चौथ में लगने वाली आवश्यक पूजन सामग्री को एकत्र करें। व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-
‘मम सुख सौभाग्य पुत्र-पौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये.’
पूरे दिन निर्जला रहें। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा मांडें। इसे ‘वर’ कहते हैं।चित्रित करने की कला को ‘करवा धरना’ कहा जाता है।
8 पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं। पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेश जी बनाकर बिठाएं। गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं।बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें। जल से भरा हुआ लोटा रखें। वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शकर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं।गौरी-गणेश और चित्रित करवे की परंपरानुसार पूजा करें।
करवे पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवे पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। 13 दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।
- यम से अपने पति को छुड़ाकर वापस लाने में सक्षम ये चतुर्थी :
- करवा चौथ की पूजा करने के लिए बालू या सफेद मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय,
- चंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
- पूजा के बाद करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर छलनी से अपने पति को देखना चाहिए। पति के हाथों से ही पानी पीकर व्रत खोलना चाहिए। इस प्रकार व्रत को सोलह या बारह वर्षों तक करके उद्यापन कर देना चाहिए।
- (हिमाचल में शुभ मुहूर्त :साल 2015 में करवा चौथ के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 34 मिनट से लेकर 06 बजकर 59मिनट तक का है। इस वर्ष करवा चौथ के दिन चंद्रोदय रात 08.39 बजे होगा। करवा चौथ के दिन चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत पारण करना चाहिए।)
- करवा यानि मिट्टी का बर्तन और चोथ यानि चतुर्थी करवाचौथ हिन्दू धर्म में विवाहित स्त्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की लंबी आयु, सुखी जीवन और भाग्योदय के लिए व्रत करती हैं चंद्रमा की पूजा की जाती है।करवाचौथ का त्यौहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है। ‘करवाचौथ’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘करवा’ यानी ‘मिट्टी का बरतन’ और ‘चौथ’ यानि ‘चतुर्थी’। इस त्यौहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। करवा पति-पत्नी के बीच प्यार और स्नेह का प्रतीक माना जाता है और पति परमेश्वर की लंबी आयु और सती धर्म को को जीवित रखने का ये त्यौहार है
- करवाचौथ का त्यौहार पति-पत्नी के बीच प्रेम का प्रतीक है। करवाचौथ के दिन पत्नी अपने पति के प्रति अपना प्रेम और आदर भाव प्रकट करती है। माना जाता है कि यह त्यौहार विवाहित जोड़ों के बीच प्यार, समर्पण और विश्वास को बनाए रखता है।
- बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं यानि सत्य युग के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रहदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
- ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रहदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।
- विवाहित स्त्रियां सुंदर कपड़े, गहने पहन कर सोलह श्रृंगार करती हैं और चंद्रमा की पूजा करती हैं। हिन्दू परंपराओं के अनुसार श्रृंगार की बहुत-सी चीज़ें केवल स्त्री के रूप को नहीं निखारती बल्कि उसपर सकारात्मक प्रभाव भी डालती हैं। श्रृंगार की कुछ वस्तुएं जैसे नथनी, सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां आदि उसके विवाहित होने का संकेत देती हैं।
- करवाचौथ के समय पूरा दिन व्रत रखने के बाद स्त्रियां चांद निकलने का इंतजार करती हैं। जब चांद निकलता है तो सभी विवाहित स्त्रियां चांद को देखती हैं और सारी रस्में पूरी करती हैं। पूजा करने बाद वे अपना व्रत खोलती हैं और जीवन के हर मोड़ पर अपने पति का साथ देने वादा करती हैं। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष मे चंद्रदेव के साथ-साथ भगवान शिव, देवी पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि अगर इन सभी की पूजा की जाए तो माता पार्वती के आशीर्वाद से जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं।
- करवा चौथ व्रत विधि :-
- करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें।
- व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’
- पूरे दिन निर्जला रहें।
- दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
- आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
- पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
- गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
- जल से भरा हुआ लोटा रखें।
- वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
- रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
- गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
- करवाचौथ की प्राचीन कथा
- करवाचौथ की कथा वीरावती नाम की एक लड़की से जुड़ी है। वीरावती, वेद शर्मा नाम के ब्राह्मण की इकलौती पुत्री थी। वीरावती सात भाइयों की अकेली बहन थी और सबकी लाडली भी बहुत थी। जल्द ही उसका विवाह सुदर्शन नाम के एक ब्राह्मण लड़के से हो गया। शादी के बाद करवाचौथ के दिन वीरावती और उसकी ननद दोनों ने करवाचौथ का व्रत रखा। वीरावती को व्रत बहुत कठिन लग रहा था। उसे बहुत भूख लगी थी और वह चांद निकलने का इंतजार भी नहीं कर पा रही थी। अपनी बहन को भूख से तड़पता देख वीरावती के भाइयों ने जाकर जंगल में आग लगा दी। एक कपड़े की मदद से उन्होंने आसमान में चांद निकलने का नकली दृश्य बनाया। एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है इसलिए अब वह पूजा करके अपना व्रत खोल सकती है।
- वीरावती ने ऐसा ही किया लेकिन उसे इसका दंड भी भोगना पड़ा। कुछ समय बाद ही उसका पति सुदर्शन भयंकर तरीके से बीमार पड़ गया। किसी भी प्रकार के इलाज से कोई फायदा नहीं हुआ। एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ के दिन धरती पर आईं। वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की। देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा। इस बार वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा। उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती को आशीर्वाद दिया। धीरे-धीरे वीरावती के पति की सेहत में सुधार होने लगा और दोनों खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगे। कहा जाता है कि इसके बाद भारतीय स्त्रियों के लिए करवाचौथ के व्रत की महत्ता और भी बढ़ गई।