चैत्र नवरात्र शुरू, जानिए: पूजा विधि, महत्‍व और नवरात्रि व्रत के नियम

शारदीय नवरात्रों में माँ के नौ रूपों की करें साधना,पूजा व व्रत से होंगे कार्य पूरे : आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा

 

नवरात्र कलश स्थापना पूजा विधि व मुहूर्त : कालयोगी आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा

नवरात्र कलश स्थापना पूजा विधि व मुहूर्त : कालयोगी आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा

माँ के नौ रूप में करे साधना, व्रत से होंगे कार्य पूरे। शारदीय नवरात्रे में कुम्भ स्थापित कर हरयाली जमाये घट सुबह 5.15 से 6 बजकर 12 मिनट तक करे नौ नारियल प्रतिदिन एक-एक करके इनके ऊपर भाग मुंड में कपूर से आग लगा दे और माँ को नारियल फोड़ दे, कमल बीज, इलायची लोंग और पान पते से माँ की पूजा करे इस नवरात्रे फूल पीले ही चढ़ाये। तुरन्त लाभ होगा। उपवास यदि नही कर पाओ आप तो अष्टमी को एक दिन व्रत रख सकते है। जिसका विवाह नही हुआ, अच्छे पति को 1 और 8 नवरात्र उपवास रखे बच्चे के लिए 3 और 9 वां व्रत रखे शत्रु मुक्ति के लिए 7 वां और 5 वां रखे। इसी तरह मान सम्मान को आप स्कंद माता की साधना करे।  बाकि विस्तार से सभी नवरात्रों के बारे हम नीचे जानकारी दे रहे हैं:-

शैलपुत्री – देवी सती के रूप में स्वयं बलिदान के बाद पार्वती ने भगवान हिमालय की बेटी के रूप में जन्म लिया। पर्वत के लिए संस्कृत में शील शब्द है, जिसके कारण देवी को पहाड़ी की बेटी शैलपुत्री के नाम से जाना गया। प्रतिपदा के दिन इनका पूजन-जप किया जाता है। मूलाधार में ध्यान कर इनके मंत्र को जपते हैं। धन-धान्य-ऐश्वर्य, सौभाग्य-आरोग्य तथा मोक्ष के देने वाली माता मानी गई हैं।

मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री शैलपुत्र्यै नम:।’ब्रह्मचारी – कुश्मंद रूप के बाद देवी पार्वती ने दक्षिणा प्रजापति के घर जन्म लिया। इस रूप में देवी पार्वती एक महान सती थीं और उसके अविवाहित रूप की देवी ब्रह्मचारी के रूप में पूजा की जाती है। स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। संयम, तप, वैराग्य तथा विजय प्राप्ति की दायिका हैं।

  • ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्म ब्रह्मचारिण्यै नम:।’

चंद्रघंटा – देवी पार्वती के रूप में शादीशुदा चंद्रघंटा हैं। भगवान शिव से विवाह के बाद देवी महागौरी ने अपने माथे को आधे चंद्र से प्रेरित किया, जिसके कारण देवी पार्वती देवी चंद्रघंटा के रूप में जानी जाती हैं। मणिपुर चक्र में इनका ध्यान किया जाता है। कष्टों से मुक्ति तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए इनकी पूजा की जाती है।

मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्र चन्द्रघंटायै नम:।’

कुष्मांडा – सिद्धिदत्री के रूप में जाने के बाद देवी पार्वती सूर्य के केंद्र में रहने लगीं, ताकि वह ऊर्जा को ब्रह्मांड में मुक्त कर सकें। तब से देवी को कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है। अनाहत चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। रोग, दोष, शोक की निवृत्ति तथा यश, बल व आयु की दात्री मानी गई हैं। उनके मुख्य मंत्र ‘ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः’ का 108 बार जाप करें। चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं।

  • मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं क्री कूष्मांडायै नम:।’

स्कंदमाता – जब देवी भगवान स्कंद की मां (भगवान कार्तिकेय) बन गईं, तो माता पार्वती को स्कंदमाता के नाम से जाना गया। इनकी आराधना विशुद्ध चक्र में ध्यान कर की जाती है। सुख-शांति व मोक्ष की दायिनी हैं।

  • मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री स्कंदमातायै नम:।’

कात्यायनी – महिषासुर को नष्ट करने के लिए देवी पार्वती देवी ने कात्यायनी रूप धारण किया था। यह देवी पार्वती का सबसे हिंसक रूप था। इस रूप में देवी पार्वती को भी योद्धा देवी के रूप में जाना जाता है। आज्ञा चक्र में ध्यान कर इनकी आराधना की जाती है। भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष की दात्री हैं।

  • मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं काम कात्यायनायै नम:।’

कालारात्रि – जब देवी पार्वती ने शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों को मारने के लिए बाह्य सोने की त्वचा को हटा दिया, उन्हें देवी कालरात्रि के रूप में जाना जाता था। कालारात्रि देवी पार्वती का सबसे भयानक और सबसे क्रूर रूप है। ललाट में ध्यान किया जाता है। शत्रुओं का नाश, कृत्या बाधा दूर कर साधक को सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देती हैं।

  • मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं काल कालरात्र्यै नम:।’

देवी महागौरी – हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह वर्ष की आयु में देवी शैलपुत्री के आकर्षक धवल रंग के कारण उन्हें महागौरी के रूप में पूजा जाने लगा। मस्तिष्क में ध्यान कर इनको जपा जाता है। इनकी साधना से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। असंभव से असंभव कार्य पूर्ण होते हैं।

  • मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं गं महागोरयेनम:।’

सिद्धिदात्री – सिद्ध करने वाली माँ और ब्रह्मांड की शुरुआत शंकर ने आदि-परशक्ति की पूजा की थी। देवी आदि-परशक्ति का कोई रूप नहीं था। शक्ति की सर्वोच्च देवी, आदि-पारशक्ति, भगवान शिव के बाएं आधे से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुई थी। मध्य कपाल में इनका ध्यान किया जाता है। सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं।शंकर की पूजा तभी सिद्ध होती है जब माँ सिद्धि दात्री का ध्यान करते है

 बीज मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री सिद्धि नम:।

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