शारदीय नवरात्रि में माँ के नौ रूपों की करें साधना, पूजा व व्रत – आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा
शारदीय नवरात्रि में माँ के नौ रूपों की करें साधना, पूजा व व्रत – आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा
आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा के अनुसार 22 सितंबर को प्रतिपदा से नवरात्र की शुरुआत होगी और एक अक्टूबर, बुधवार को महा नवमी के साथ इसका समापन होगा। इसके अगले दिन, 2 अक्टूबर गुरुवार को विजयादशमी मनाई जाएगी। इस बार श्राद्ध पक्ष में एक तिथि लुप्त हो रही है और चतुर्थी तिथि दो दिन रहने से नवरात्र 9 के बजाय 10 दिन की होगी। पंडितों के अनुसार, तिथि की यह वृद्धि अत्यंत शुभ मानी जाती है।
आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा ने जानकारी देते बताया कि इस वर्ष शारदीय नवरात्र 22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। 10 दिनों तक चलने वाला यह पर्व शक्ति उपासना का सबसे बड़ा अवसर है, जिसमें भक्त मां से अपनी मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं।
कलश स्थापना का मुहूर्त: 22 सितंबर को प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना होगी। पूरे दिन शुभ मुहूर्त उपलब्ध रहेगा, लेकिन अभिजीत मुहूर्त (सुबह 11:20 से दोपहर 12:09 तक) में स्थापना विशेष फलदायी मानी गई है।
शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि पर सुबह में एक मुहूर्त बन रहा है जिसमें घटस्थापना करना उत्तम रहेगा, लेकिन अगर किसी कारण से इस मुहूर्त में घटस्थापना न हो पाए तो अभिजीत मुहूर्त भी इस दिन उपलब्ध है। इसके अलावा, स्नान-दान के लिए ब्रह्म मुहूर्त भी मौजूद है।
कलश स्थापना: नवरात्र के पहले दिन शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना करें, जो देवी को घर में आमंत्रित करने का प्रतीक है।
माँ के नौ रूपों की पूजा:नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की विधि-विधान से पूजा करें, जो मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।
अखंड ज्योति:अगर संकल्प लिया है तो नौ दिनों तक अखंड ज्योति जलाकर रखें, यह सुख-समृद्धि लाती है।
सात्विक भोजन:व्रत रखने वाले फल, दूध, कुट्टू, सिंघाड़े का आटा आदि सात्विक भोजन का सेवन करें।
मंत्र जाप:दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें।
दान-पुण्य: नवरात्र में जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करना बहुत शुभ माना जाता है।
साफ-सफाई:घर और पूजा स्थल को साफ रखें ताकि सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
भोग बनाते समय शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
अगर किसी कारणवश पूरा भोग न बना सकें तो फल या मिठाई से भी पूजा कर सकते हैं।
देवी को भोग अर्पित करने से पहले दीप और धूप जरूर जलाएं।
व्रत और साधना का महत्व:
नवरात्रि के दौरान व्रत और उपवास को पवित्र माना जाता है, जिससे शरीर की शुद्धि होती है और मन अनुशासित होता है।
व्रत करने से संयम और साधना के माध्यम से भक्ति गहरी होती है।
देवी के नौ रूपों की पूजा करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्य पूरे होते हैं।
नवरात्रि सिर्फ व्रत-उपवास का पर्व नहीं है, बल्कि यह साधना और आस्था का प्रतीक है। देवी को प्रिय भोग अर्पित करना, उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण दिखाने का एक माध्यम है।
नवरात्रि की शुरुआत मां शैलपुत्री की पूजा से होती है। वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं। इस दिन मां शैलपुत्री को घी अर्पित करना शुभ होता है। इससे सुख, सौभाग्य और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।
दूसरा दिन – मां ब्रह्मचारिणी को मिश्री का भोग; दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। वे तपस्विनी रूप में जानी जाती हैं। भोग: मिश्री या चीनी का भोग अर्पित करें। इससे आयु लंबी होती है और मनचाही इच्छाएं पूरी होती हैं।देवी को कमल का फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है।
तीसरा दिन – मां चंद्रघंटा को दूध से बनी मिठाइयां जैसे खीर, बर्फी या रसगुल्ला चढ़ाएं। मां चंद्रघंटा का रूप शांति और सौंदर्य का प्रतीक है। इससे जीवन के दुख और परेशानियां दूर होती हैं और घर में शांति बनी रहती है। मां का प्रिय फूल कमल, बेला और चमेली है।
चौथा दिन – मां कूष्मांडा देवी को मालपुआ का भोग अर्पित करें। नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की उपासना की जाती है। इससे साधक को बुद्धि, विवेक और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।माता रानी को गुड़हल व पीले कनेर के फूल पसंद हैं।
पांचवा दिन – मां स्कंदमाता मां को केले का भोग लगाएं।; मां स्कंदमाता की पूजा पांचवें दिन की जाती है। वे भगवान कार्तिकेय की माता हैं। इससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और संतान संबंधी परेशानियां दूर होती हैं। देवी को कमल, गुड़हल और गुलाब का फूल बहुत प्रिय है।
छठा दिन – मां कात्यायनी को शहद का भोग अर्पित करें। मां कात्यायनी छठे दिन पूजित होती हैं और इन्हें वैवाहिक जीवन की देवी माना जाता है। इससे वैभव, सम्मान और विवाह से जुड़ी बाधाएं दूर होती हैं।
सातवां दिन – मां कालरात्रि को गुड़ से बनी चीजें अर्पित करें। सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है। उनका रूप उग्र और संकट-नाशक है। इससे भय, संकट और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
आठवां दिन – मां महागौरी नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा होती है। उनका स्वरूप पवित्रता और सौंदर्य का प्रतीक है। नारियल या नारियल से बनी मिठाइयां जैसे नारियल लड्डू अर्पित करें। इससे साधक को सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
नौवां दिन – मां सिद्धिदात्री नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। हलवा, पूरी और काले चने का भोग लगाएं।इससे पूरे साल कार्यों में सफलता, सिद्धि और समृद्धि मिलती है।
उपवास यदि नही कर पाओ आप तो अष्टमी को एक दिन व्रत रख सकते है। जिसका विवाह नही हुआ, अच्छे पति को 1 और 8 नवरात्र उपवास रखे बच्चे के लिए 3 और 9 वां व्रत रखे शत्रु मुक्ति के लिए 7 वां और 5 वां रखे। इसी तरह मान सम्मान को आप स्कंद माता की साधना करे। बाकि विस्तार से सभी नवरात्रों के बारे हम नीचे जानकारी दे रहे हैं:-
जारी………………………………….
जारी………………………………….
शैलपुत्री – देवीसती के रूप में स्वयं बलिदान के बाद पार्वती ने भगवान हिमालय की बेटी के रूप में जन्म लिया। पर्वत के लिए संस्कृत में शील शब्द है, जिसके कारण देवी को पहाड़ी की बेटी शैलपुत्री के नाम से जाना गया। प्रतिपदा के दिन इनका पूजन-जप किया जाता है। मूलाधार में ध्यान कर इनके मंत्र को जपते हैं। धन-धान्य-ऐश्वर्य, सौभाग्य-आरोग्य तथा मोक्ष के देने वाली माता मानी गई हैं।
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री शैलपुत्र्यै नम:।’ब्रह्मचारी – कुश्मंद रूप के बाद देवी पार्वती ने दक्षिणा प्रजापति के घर जन्म लिया। इस रूप में देवी पार्वती एक महान सती थीं और उसके अविवाहित रूप की देवी ब्रह्मचारी के रूप में पूजा की जाती है। स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। संयम, तप, वैराग्य तथा विजय प्राप्ति की दायिका हैं।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्म ब्रह्मचारिण्यै नम:।’
चंद्रघंटा – देवी पार्वती के रूप में शादीशुदा चंद्रघंटा हैं। भगवान शिव से विवाह के बाद देवी महागौरी ने अपने माथे को आधे चंद्र से प्रेरित किया, जिसके कारण देवी पार्वती देवी चंद्रघंटा के रूप में जानी जाती हैं। मणिपुर चक्र में इनका ध्यान किया जाता है। कष्टों से मुक्ति तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए इनकी पूजा की जाती है।
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्र चन्द्रघंटायै नम:।’
कुष्मांडा – सिद्धिदत्री के रूप में जाने के बाद देवी पार्वती सूर्य के केंद्र में रहने लगीं, ताकि वह ऊर्जा को ब्रह्मांड में मुक्त कर सकें। तब से देवी को कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है। अनाहत चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। रोग, दोष, शोक की निवृत्ति तथा यश, बल व आयु की दात्री मानी गई हैं। उनके मुख्य मंत्र ‘ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः’ का 108 बार जाप करें। चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं।
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं क्री कूष्मांडायै नम:।’
स्कंदमाता – जब देवी भगवान स्कंद की मां (भगवान कार्तिकेय) बन गईं, तो माता पार्वती को स्कंदमाता के नाम से जाना गया। इनकी आराधना विशुद्ध चक्र में ध्यान कर की जाती है। सुख-शांति व मोक्ष की दायिनी हैं।
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री स्कंदमातायै नम:।’
कात्यायनी – महिषासुर को नष्ट करने के लिए देवी पार्वती देवी ने कात्यायनी रूप धारण किया था। यह देवी पार्वती का सबसे हिंसक रूप था। इस रूप में देवी पार्वती को भी योद्धा देवी के रूप में जाना जाता है। आज्ञा चक्र में ध्यान कर इनकी आराधना की जाती है। भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष की दात्री हैं।
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं काम कात्यायनायै नम:।’
कालारात्रि –जब देवी पार्वती ने शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों को मारने के लिए बाह्य सोने की त्वचा को हटा दिया, उन्हें देवी कालरात्रि के रूप में जाना जाता था। कालारात्रि देवी पार्वती का सबसे भयानक और सबसे क्रूर रूप है। ललाट में ध्यान किया जाता है। शत्रुओं का नाश, कृत्या बाधा दूर कर साधक को सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देती हैं।
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं काल कालरात्र्यै नम:।’
देवी महागौरी –हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह वर्ष की आयु में देवी शैलपुत्री के आकर्षक धवल रंग के कारण उन्हें महागौरी के रूप में पूजा जाने लगा। मस्तिष्क में ध्यान कर इनको जपा जाता है। इनकी साधना से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। असंभव से असंभव कार्य पूर्ण होते हैं।
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं गं महागोरयेनम:।’
सिद्धिदात्री –सिद्ध करने वाली माँ और ब्रह्मांड की शुरुआत शंकर ने आदि-परशक्ति की पूजा की थी। देवी आदि-परशक्ति का कोई रूप नहीं था। शक्ति की सर्वोच्च देवी, आदि-पारशक्ति, भगवान शिव के बाएं आधे से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुई थी। मध्य कपाल में इनका ध्यान किया जाता है। सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं।शंकर की पूजा तभी सिद्ध होती है जब माँ सिद्धि दात्री का ध्यान करते है
बीज मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री सिद्धि नम:।
मान्यता है कि प्रत्येक देवी को उनके प्रिय फूल अर्पित करने से वे जल्द ही प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं लेकिन ध्यान रखें:- फूल हमेशा ताजे और साफ होने चाहिए। बासी या मुरझाए हुए फूल कभी न चढ़ाएं। फूलों को तोड़ने से पहले स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। फूल चढ़ाते समय मन में पूरी श्रद्धा और भक्ति होनी चाहिए। अगर कोई विशेष फूल न मिल पाए, तो आप गुड़हल के फूल भी देवी को चढ़ा सकते हैं, क्योंकि यह माता रानी का प्रिय है।
पहला दिन मां शैलपुत्री का है। देवी को गुड़हल, सफेद कनेर या चमेली के फूल बहुत प्रिय हैं। मां शैलपुत्री को ये फूल चढ़ाने से सुख, शांति और स्थिरता की प्राप्ति होती है।
दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी का है। देवी को कमल का फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है। कहते हैं कि मां ब्रह्मचारिणी को ये फूल अर्पित करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
तीसरा दिन मां चंद्रघंटा का है। मां का प्रिय फूल कमल, बेला और चमेली है। देवी को ये फूल चढ़ाने से साहस, पराक्रम की प्राप्ति होती है।
चौथा दिन का मां कूष्मांडा का है। माता रानी को गुड़हल व पीले कनेर के फूल पसंद हैं। कहा जाता है कि इन फूलों को चढ़ाने से रोग-शोक दूर होते हैं और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
पांचवां दिन मां स्कंदमाता का है। देवी को कमल, गुड़हल और गुलाब का फूल बहुत प्रिय है। स्कंदमाता माता को कमल का फूल चढ़ाने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही संतान से जुड़ी मुश्किलें दूर होती हैं।
छठा दिन मां कात्यायनी का है। देवी को गेंदा, कमल व गुड़हल का फूल अर्पित करना बहुत फलदायी माना जाता है। कहते हैं कि ये फूल अर्पित करने से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।
सातवां दिन मां कालरात्रि का है। देवी का प्रिय फूल रातरानी व गुड़हल है। ये फूल चढ़ाने से भय, दुख और नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है।
आठवां दिन मां महागौरी का है। मां का प्रिय फूल सफेद मोगरा व बेला, चमेली है। मां महागौरी को सफेद फूल बहुत प्रिय हैं। इन्हें चढ़ाने से पापों से मुक्ति मिलती है।
नौवां दिन मां सिद्धिदात्री का है। जगदंबा का प्रिय फूल कमल व चंपा है। ये फूल अर्पित करने से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है और हर काम में सफलता मिलती है।