शिमला: शिमला जिला के जुब्बल में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पर चल रहे दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आज समापन हो गया। शिविर के अंतिम दिन मास्टर ट्रेनर पंकज नेगी ने प्रदेशभर से आए बागवानों को पौधों की कांट-छांट एवं उच्च घनत्व सेब बागान लगाने पर विस्तार से जानकारी दी। पंकज नेगी ने कहा कि बागवानी में कांच-छांट का मुख्य उद्देश्य पौधे की अवांछित टहनियों को हटाकर उसे रोगमुक्त करके एक बेहतर आकार देना है ताकि व्यस्क होने पर पौधे से उच्च गुणवत्तायुक्त फल प्राप्त किया जा सके। पौधे की कांट-छांट करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसकी सभी टहनियों को हवा और सूर्य की रोशनी समान मात्रा में मिले। कांच-छांट सही तरह से ना होने से पौधे के विकास, फल के आकार एवं रंग पर भी प्रभाव पड़ता है। अगर ज्यादा कांच-छांट कर दी जाए तो पौधे में कैंकर भी आ सकता है जो एक घातक रोग है।
सघन बागवानी पर बात करते हुए पंकज नेगी ने कहा कि यह पारंपरिक बागवानी से थोड़ा हटकर है। बागवानी का यह एक वैज्ञानिक तरीका है जिसमें एक सीमित क्षेत्र में ज्यादा पौधे रोपे जा सकते हैं। इसमें मुख्यतः बौना प्रजाति की किस्में बोई जाती हैं। सघन बागवानी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें पौधा 3 साल बाद ही फल देने लायक हो जाता है जबकि परंपरागत बागवानी में पौधे को फल देने में 5 से 7 साल का समय लगता है। कम जगह में ज्यादा पौधे लगने से फलोत्पादन बढ़ता है जो बागवान की आय को औऱ सुदृढ़ करता है।
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पर आधारित इस शिविर में पहुंचे चंबा जिला के बागवान रविंद्र कुमार ने कहा कि पहले उन्हें सेब के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। उन्हें सेब की केवल 2-3 किस्मों के बारे में ही पता था और सेब की खेती से संबंधित काफी सारे सवाल थे जिनका वे उत्तर तलाश रहे थे। इस प्रशिक्षण शिविर ने उनकी कुंठा को शांत किया है और उन्हें सेब की खेती के बारे में काफी कुछ सीखने को मिला है। वे कहते हैं कि शिविर में मिली जानकारी को वे अपने क्षेत्र के बागवानों से भी साझा करेंगे ताकि क्षेत्र में हो रही बागवानी में संरचनात्मक सुधार लाया जा सके।
वहीं मंडी जिला के गोहर विकास खंड से आए बागवान मनोज कुमार ने कहा कि शिविर के दौरान उन्होंने जाना कि छोटे पौधे को किस तरह विकसित करना है और पौधों में नई शाखाएं लेने के लिए किस तरह से कांट-छांट करनी है। उन्होंने कहा कि कृषि विभाग को इस तरह के शिविरों का आयोजन करते रहना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान बागवानों तक सही तकनीकी जानकारियां पहुंचे जिनको अपनाकर वे अपनी आर्थिकी सुधार सकें।