- हिमाचल की जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रोफ़ाइल तैयार करने पर कार्यशाला आयोजित
- कार्यशाला का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर प्रतिभागियों की समझ और जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देना
सोलन: भारत के पहले राज्य स्तरीय जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रोफ़ाइल तैयार करने के अपने प्रयास में, नौणी स्थित डॉ॰ वाई एस परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में एक व्यापक परामर्श कार्यशाला आयोजित की गई। यह कार्यशाला, विश्व बैंक द्वारा समर्थित हिमाचल प्रदेश सरकार की इंटेग्रटेड डेव्लपमेंट प्रोजेक्ट (आईडीपी) और सीजीआईएआर(CGIAR) के जलवायु परिवर्तन, कृषि और खाद्य सुरक्षा अनुसंधान कार्यक्रम (CCAFS) ने नौणी विवि के पर्यावरण विज्ञान विभाग और अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र (CIMMYT) के साथ मिलकर की। इस कार्यशाला में हिमाचल प्रदेश वन, बागवानी, कृषि, पशुपालन, पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभागों के विशेषज्ञों और नौणी विवि के वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया।
कार्यशाला का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर प्रतिभागियों की समझ और जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देना था। इस चर्चा के नतीजों से भविष्य में जलवायु-स्मार्ट कृषि के समर्थन के लिए प्रमुख संस्थानों और राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त प्रौद्योगिकी पैकेज की पहचान करने में मदद मिलेगी।
सहायक वन संरक्षक डॉ. रेणु सैजल ने इस मौके पर सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और सीजीआईएआर और आईडीपी की बारे में जानकारी दी। अपने संबोधन में, जलवायु परिवर्तन, कृषि और खाद्य सुरक्षा अनुसंधान कार्यक्रम के क्षेत्रीय कार्यक्रम लीडर डॉ प्रमोद अग्रवाल ने बताया कि उनके कार्यक्रम ने विश्व बैंक के सहयोग से 20 देशों की जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रोफाइल तैयार की है। भारत में हिमाचल प्रदेश पहला राज्य हैं जहाँ इस तरह की प्रोफ़ाइल तैयार की जा रही है।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि उन्होनें हिमाचल को इसलिए चुना क्योंकि यह एक प्रगतिशील राज्य है जहां वर्तमान में चल रही परियोजनाओं का समृद्ध अनुभव और डेटा मौजूद है जिसका विश्लेषण किया जा सकता है। उनके अनुसार
वैश्विक स्तर पर जलवायु संबंधी घटनाएँ अधिक गंभीर हो रही हैं और हिमाचल भी इससे बचा नहीं है। यह और अधिक जरूरी है कि आज हम जो कर रहें हैं वह कल के लिए गलत न बनें। इसलिए वर्तमान और भविष्य की जलवायु चुनौतियों का समाधान करने के लिए राज्य के लिए एक कार्य योजना तैयार करना की जरूरत है।
कार्यशाला को दो सत्रों में बांटा गया था। पहला सत्र उन प्रौद्योगिकियों पर था जिन्हें राज्य में लागू किया जा सकता है और दूसरा संस्थानों और नीतियों पर केंद्रित था।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि कार्यशाला एक सहभागी प्रक्रिया थी जिसके माध्यम से हम यह जानना चाह रहे थे कि राज्य क्या कर रहा है। उन्होनें बताया कि प्रतिभागियों के फ़ीडबैक का विश्लेषण कर अंतिम रिपोर्ट को प्रसार कार्यशाला के दौरान प्रस्तुत किया जाएगा, जिससे राज्य की नीति तैयार करने में मदद मिलेगी। इस अवसर पर नौणी विवि के कुलपति डॉ एच सी शर्मा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता क्योंकि हमारा राज्य बहुत संवेदनशील है। उनके अनुसार जलवायु परिवर्तनशीलता फसल के पैटर्न में बदलाव लाएगी जिसके लिए उन फसलों के किस्मों और पशु नस्लों की पहचान करना महत्वपूर्ण होगा जो सूखा और तनाव का अच्छी तरह सामना कर सकें।
उन्होंने सार्वजनिक परिवहन और सुरंगों और स्तंभों के अधिकतम उपयोग के माध्यम से सड़कों का योजनाबद्ध विस्तार के लिए एक मजबूत नीति की वकालत की जिससे पहाड़ी ढलानों में पेड़-पौधे के लगने और प्राकृतिक जल के प्रवाह में बाधा न आए। उन्होनें भूजल को रिचार्ज करने के लिए घरों में वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और पानी की उपयोग दक्षता को अधिकतम करने के लिए सटीक खेती तकनीकों के प्रचार पर ध्यान केंद्रित किया।
विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एस. के. भारद्वाज ने राज्य के जलवायु परिदृश्य के बारे में बताते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और शमन पर सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राज्य में सर्दियां गर्म हो रही है और बर्फबारी नवंबर से फरवरी के दौरान होने की बजाए सिर्फ जनवरी और फरवरी तक ही सीमित हो गई है।
डॉ. एस. के भारद्वाज ने कहा कि प्रदेश में ट्री लाइन भी ऊपर की ओर बढ़ गई है और वर्षा अत्यधिक परिवर्तनीय हो गई है जिसके कारण लगातार सूखा और फ्लैश फ़्लड आते हैं। यह फसल उत्पादकता को प्रभावित करने के साथ-साथ राज्य की संपत्ति को भी भारी नुकसान पहुंचातें हैं। उन्होनें किसानों द्वारा बदलते मौसम को अनुकूलित करने और सेब के स्थान पर कीवी, अनार और सब्जियों जैसे वैकल्पिक फसलों को लगाने के प्रयासों की सराहना की। कुल्लू जिला इस प्रयास का सबसे अच्छा उदाहरण है।
कार्यशाला के दौरान सिंचाई, चरागाह प्रबंधन, कृषि प्रौद्योगिकी, मौसम आधारित फसल बीमा योजनाओं और कृषि गतिविधियों से प्रदूषण जैसे कई विषयों पर भी चर्चा की गई।