
आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा
करवाचौथ की पूजा करवा चतुर्थी को की जाती है। पूजा मिट्टी के करवे से की जाती है। 13 अक्टूबर को करवा चौथ है, यह व्रत कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी का रखा जाता है। इस दिन सारी सुहागवती औरतें अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। औरते सुबह से बिना कछ खाये पिये पूरे दिन व्रत करती हैं और रात को चांद को देखकर करके ही अपना व्रत तोड़ती हैं। पूजा के दौरान करवा देवी की कथा पढ़ी जाती है। इस वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि 13 अक्तूबर को रात 01 बजकर 59 मिनट से शुरू हो जाएगी, जो 14 अक्तूबर को रात 03 बजकर 08 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। हिंदू धर्म में कोई भी व्रत-त्योहार उदया तिथि के आधार पर ही निर्धारित की जाती है। इस वजह से इस साल करवा चौथ का व्रत 13 अक्तूबर 2022 को ही मनाया जाएगा।
करवा चौथ चतुर्थी तिथि 2022
चतुर्थी तिथि आरंभ- 13 अक्तूबर 2022 को सुबह 01 बजकर 59 मिनट पर
चतुर्थी तिथि का समापन- 14 अक्तूबर 2022 को सुबह 03 बजकर 08 मिनट पर
करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त 2022
इस बार करवा चौथ की पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार 13 अक्तूबर 2022 को करवा चौथ पर पूजा का सबसे अच्छा मुहूर्त शाम 04 बजकर 08 मिनट से लेकर 05 बजकर 50 मिनट तक रहेगा। यह मुहूर्त अमृतकाल है। इसके अलावा सुहागिन महिलाएं करवा चौथ की पूजा दिन के अभिजीत मुहूर्त काल में भी की जा सकती है। मुहूर्त शास्त्र के अनुसार कोई भी शुभ कार्य या पूजा उस दिन के अभिजीत मुहू्र्त में किया जा सकता है।
अमृतकाल मुहूर्त- शाम 04 बजकर 08 मिनट से शाम 05 बजकर 50 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 21 मिनट से दोपहर 12 बजकर 07 मिनट तक
करवा चौथ व्रत के नियम
यह व्रत सूर्योदय से पहले से शुरू कर चांद निकलने तक रखना चाहिए और चन्द्रमा के दर्शन के पश्चात ही इसको खोला जाता है।
शाम के समय चंद्रोदय से 1 घंटा पहले सम्पूर्ण शिव-परिवार (शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी) की पूजा की जाती है।
पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए तथा स्त्री को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए।
करवा चौथ व्रत की पूजा-विधि
सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा घर की सफ़ाई करें। फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें।
यह व्रत उनको संध्या में सूरज अस्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना चाहिए और बीच में जल भी नहीं पीना चाहिए।
संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे (करवा चौथ के लिए ख़ास मिट्टी के कलश) रखें।
पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर आदि थाली में रखें। दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी रहना चाहिए, जिससे वह पूरे समय तक जलता रहे।
चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए। अच्छा हो कि परिवार की सभी महिलाएँ साथ पूजा करें।
पूजा के दौरान करवा चौथ कथा सुनें या सुनाएँ।
चन्द्र दर्शन छलनी के द्वारा किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए।

करवा चौथ व्रत नियम, पूजा का शुभ मुहूर्त व पूजा-विधि :
बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। इसके बाद इन देवताओं की पूजा करें।
करवों में लड्डू का या कोई भी मिठाई नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र और एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें। करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें। इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों और पति के माता-पिता को भोजन कराएं। भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा दें।
सासूजी को एक लोटा, वस्त्र और विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद लें। उनकी अनुपस्थिति में उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें। इसके पश्चात स्वयं और परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।
चन्द्र-दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में सजाकर मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनका आशीर्वाद ले और सास उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे।