विश्व खाद्य पुरस्कार विजेता अमेरिकी अर्थशास्री प्रोफेसर “हॉवर्थ बौइस” ने दिया “शूलिनी विवि” में लैक्चर

  • प्रदेश की पहली कमर्शियल फूड टेस्टिंग लैब का किया शिल्लान्यास
  • स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय खाद्य अनुसंधान संस्थान से डॉक्टरेट डिग्री हासिल करने वाले प्रो॰ बौइस हार्वेस्टप्लस प्रोग्राम के संस्थापक और निदेशक
  • प्रो॰ बौइस ने हार्वेस्टप्लस प्रोग्राम के इतिहास और बायो दुर्गकरण प्रोग्राम की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।
  • विश्व भर में खनिज और विटामिन की कमी के पैटर्न पर चर्चा की
  • भारत में बायो दुर्गकरण फसलों के प्रति जागरुकता की कमी : प्रोफेसर बौइस
विश्व खाद्य पुरस्कार विजेता अमेरिकी अर्थशास्री प्रोफेसर हॉवर्थ बौइस ने दिया शूलिनी विवि में लैक्चर

विश्व खाद्य पुरस्कार विजेता अमेरिकी अर्थशास्री प्रोफेसर हॉवर्थ बौइस ने दिया शूलिनी विवि में लैक्चर

शिमला: बुधवार का दिन शूलिनी विश्वविद्यालय के बहुत ही खास रहा। साल 2016 के विश्व खाद्य पुरस्कार विजेता के अलावा, रूस के नैनोटैकनोलजी और भारत के प्रसिद्ध चिकित्सा वैज्ञानिक विशेषज्ञ, विश्वविद्यालय में अलग-अलग कार्यों के लिए मौजूद रहे। अमेरिकी अर्थशास्री प्रोफेसर हॉवर्थ बौइस शूलिनी विश्वविद्यालय में स्थापित होने जा रही प्रदेश की पहली व्यावसायिक खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला (कमर्शियल फूड टेस्टिंग लैब) का शिल्लान्यास किया। बौइस को वर्ष 2016 के लिए संयुक्त रूप से विश्व खाद्य पुरस्कार से नवाज़ा गया था। 285.39 लाख रुपये की लागत से बनने वाली इस लैब को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा मंजूरी दी गई है। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत में से 163.20 लाख सरकार द्वारा दिया जा रहा है जबकि शेष राशि शूलिनी विश्वविद्यालय भवन-निर्माण कार्यों और दूसरे खर्चों के लिए देगा।

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय खाद्य अनुसंधान संस्थान से डॉक्टरेट डिग्री हासिल करने वाले प्रो॰ बौइस हार्वेस्टप्लस प्रोग्राम के संस्थापक और निदेशक है। यह प्रोग्राम, इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रोपिकल एग्रिकल्चर और इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा संचालित है।

हार्वेस्टप्लस प्रोग्राम पोषण, स्वास्थ्य और आजीविका को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। इसके लिए वह मुख्य खाद्य फसलों को माइक्रो पोषक तत्वों से बायो दुर्गकरण (bio fortification) नामक प्रक्रिया से और समृद्ध बनाया जाता है। प्रो॰ बौइस ने इस प्रक्रिया पर अपना कैरियर समर्पित किया है और उनके प्रयासों के कारण ही यह मुहिम एक वैश्विक आंदोलन के रूप में उभर कर आई है और इसका लाभ 1.5 करोड़ लोगों तक पहुंच रहा है।

अपने व्याख्यान में प्रो॰ बौइस ने हार्वेस्टप्लस प्रोग्राम के इतिहास और बायो दुर्गकरण प्रोग्राम की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने विश्व भर में खनिज और विटामिन की कमी के पैटर्न पर चर्चा की और बताया कि बायो दुर्गकरण से कैसे इसका हल ढूंढा जा सकता है।

छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में बायो दुर्गकरण फसलों (bio fortified crops) के प्रति जागरुकता की कमी है। उन्होंने भारतीय सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी॰डी॰एस सिस्टम) के माध्यम से इन फसलों को बढ़ावा देना का सुझाव दिया ताकि किसान भी इन फसलों को लगाना शुरू करें।

प्रदेश की पहली कमर्शियल फूड टेस्टिंग लैब का किया शिल्लान्यास

प्रदेश की पहली कमर्शियल फूड टेस्टिंग लैब का किया शिल्लान्यास

हार्वेस्टप्लस अब तक भारत समेत 30 देशों में बायो दुर्गकरण फसलों ला चुका है और 25 अन्य देशों में इनकी टेस्टिंग चल रही है। इनमें चावल, गेहूं, मक्का, बाजरा, दाल आदि शामिल हैं। इस प्रोग्राम के माध्यम से, विश्व के अनेक देशों में खाने के पोषण मूल्य की कमी पर काबू पाने में सफल हुए हैं। बुधवार को एक अन्य कार्यक्रम में प्रो॰ रमेश चंदर महाजन ने विश्वविद्यालय में ओमिक्स और जैव विविधता अनुसंधान सेंटर का उद्घाटन किया। इस सेंटर का उद्देश्य हिमालय की जैव विविधता का जीनोम, ट्रांसकृप्तओमिक्स और प्रोटिओमिक्स के ज़रिये समन्वेषण करना है।

बोस साइंटिस्ट रहने के अलावा, प्रो महाजन को भारत के किसी भी मेडिकल संस्थान में पहला मेडिकल परजीवीविज्ञान का डिपार्टमेंट स्थापित करने का श्रेय जाता है। एक अन्य लैक्चर में रूस की समारा स्टेट विश्वविद्यालय के नैनो टैकनोलजी सेंटर के निदेशक प्रो व्लादिमीर पवेल्येव ने नैनो मटिरियल के बारे में छात्रों को बताया। उन्होनें विवि स्थित हिमालयन नैनो टैकनोलजी सेंटर का भी दौरा किया और भविष्य में संयुक्त कार्यों करने पर चर्चा की। इस मौके पर शूलिनी विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रो पी॰के॰ खोसला ने कहा कि इन तीन वैज्ञानिकों का शूलिनी विश्वविद्यालय में आना, विवि का विश्व स्तरीय बनने की राह में एक मील का पथर हैं।

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