सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर बनाना सरकार का दायित्‍व

सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर बनाना सरकार का दायित्‍व

  • भारत में पोषण संबंधी जरूरतें पूरी करने के लिए सरकार की पहल
  • फीचर
  • संतोष जैन पासी, अकांक्षा जैन

वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2016 में स्पष्ट रूप से इंगित किया गया है कि किस प्रकार भारत कुपोषण से प्रभावी ढंग से निपटने में अभी तक पीछे है। कुपोषण वृद्धि रुकने,अपक्षय,सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और वजन बढ़ने/ मोटापे के रूप में परिलक्षित होता है। वृद्धि रुकने के संबंध में भारत 132 देशों में से 114 वें स्थान (मामले: 38.7%) पर है, जबकि अपक्षय के संबंध में 130 देशों में से 120 वें स्थान (मामले:15.1%) पर है । गर्भधारण करने की आयु वाली महिलाओं के बीच एनीमिया प्रसार के बारे में, भारत 185 देशों में से 170 वें स्थान (मामले: 48.1%) पर है – और यह गंभीर चिंता का विषय है। बीते वर्षों में, सरकार ने अपनी जनता के बीच व्‍याप्‍त कुपोषण से निपटने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना 1975 में प्रारंभ की गयी थी। आईसीडीएस बच्‍चों की देखभाल और विकास के लिए दुनिया के विशालतम और सबसे अनोखे आउटरीच कार्यक्रमों में से एक है,जिसके अंतर्गत देश के सभी जिलों और प्रखंडों को शामिल किया गया है। इसी तरह, मध्‍यान्‍न भोजन योजना को 1995 में सर्वव्‍यापी बनाया गया था। हालांकि विभिन्‍न क्षेत्रों में तालमेल का अभाव है,जो कुपोषण की अंतर-पीढ़ीगत और बहुमुखी प्रकृति से निपटने के लिए बेहद आवश्‍यक है।इसी तरह, हालांकि वैश्विक स्तर पर यह अच्छी तरह से स्वीकार किया है कि पहले 1000 दिनों (गर्भाधान से 2 वर्ष प्रसवोत्तर) ध्यान केंद्रित करने से बच्चे कुपोषण से निपटने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, भारत में, पोषण कार्यक्रम मुख्यतः जन्‍म के बाद की अवस्‍था पर ध्‍यान केंद्रित करते हैं। अनुसंधानों से संकेत मिलता है कि 2 साल की उम्र में विकास में होने वाली 50 प्रतिशत कमीमुख्य रूप से गर्भावस्था के दौरान और उससे पहले मां के खराब पोषण के कारण गर्भ में ही हो जाती है। इसलिए, पर्याप्त पोषण की स्थिति (गर्भाधान से पूर्व और पहले तीन महीनों के दारान जब ज्‍यादातर महिलाओं को अपनी गर्भावस्था के बारे में पता नहीं होता) भ्रूण के उचित विकास के लिए महत्वपूर्ण है। अल्पपोषित लड़कियों के अल्पपोषित माता बनने की संभावना अधिक होती है। ऐसी माता के बच्चे का जन्म के समय वजन कम होता है और कुपोषण का यह अनुवांशिक चक्र चलता रहता है। किशोर माताओं में यह और अधिक हो जाता है। ऐसी माताएं दो शारीरिक अवस्थाओं (किशोर तथा गर्भधारण) से गुजरती हैं।

समावेशी विकास के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) का सार्वभौमिककरण और वंचित इलाकों में लघु आंगनवाड़ी केन्द्र स्थापित किए गए। फिर भी सफल मॉडलों को अपनाते हुए अपेक्षा से कम प्रदर्शन करने वाले राज्यों में आईसीडीएस को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा (मई, 2016) आईसीडीएस को नया रूप दिए जाने से देश की पौष्टिकता की स्थिति में सुधार होने की आशा है। सरकार अब आंगनवाड़ियों के डिजिटीकरण से पौष्टिकता कार्यक्रमों पर निगरानी रख रही है। इससे पूरी प्रणाली में बदलाव आने की संभावना है क्योंकि डिजिटीकरण से प्रत्येक बच्चें की पौष्टिकता स्थिति पर रियल टाईम में नजर रखी जा सकेगी और आवश्यकता पड़ने पर तात्कालिक रूप से हस्ताक्षेप किया जा सकेगा। इसी तरह डायरिया का बच्चें की पौष्टिकता स्थिति पर सीधा प्रभाव पड़ता है। सरकार द्वारा युद्ध स्तर पर शौचालय बनाने और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे है। इससे रहन-सहन की स्थिति स्वच्छ होगी और सभी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।

संविधान के अनुच्‍छेद 47 में कहा गया है “पोषण और जीवन स्‍तर में वृद्धि करना तथा सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर बनाना सरकार का दायित्‍व है।”

राष्‍ट्रीय पोषण सप्‍ताह (1-7 सितम्‍बर)का प्रारंभ खाद्य एवं पोषण बोर्ड ने 1982 में किया था। यह अपार महत्‍व वाली एक महत्‍वपूर्ण घटना है। इसका लक्ष्‍य जनता के बीच पोषण/स्‍वास्‍थ्‍य से संबंधित जागरूकता बढ़ाना है, जिसका उत्‍पादकता, आर्थिक प्रगति और अंतत देश के विकास पर व्‍यापक असर पड़ सकता है। इस सप्‍ताह के दौरान, सरकार/गैर सरकारी संगठनों द्वारा संचालित किए जाने पोषण संबंधी शिक्षा  और प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर प्रमुख रूप से बल दिया जाता है।

http://pibphoto.nic.in/documents/rlink/2016/sep/i20169702.jpg2016 का विषय हैलाइफ साइकल एप्रोच फॉर बैटर न्‍यूट्रिशन’    

 


पोषण प्रतिरक्षा प्रदान करने के माध्‍यम से मानव विकास का आधार तैयार करता है और इस प्रकार अस्‍वस्‍थता,मृत्‍यु और अक्षमता से संबंधित मामलों में कमी लाता है। इसके अलावा यह सीखने की आजीवन क्षमताओं को संवर्धित उत्‍पादकता को बढ़ावा देता है। दूसरी ओर, कुपोषण से बच्‍चों के बौद्धिक स्‍तर और संज्ञात्‍मक योग्‍यता में कमी आती है, इसके परिणामस्‍वरूप स्‍कूल में उनके प्रदर्शन और बाद के जीवन की उत्‍पादकता पर असर पड़ता है। कम वजन वाले बच्‍चों न केवल प्रतिरोधन कार्य क्षीण होता है, बल्कि प्रौढ़ावस्‍था के दौरान उनमें गैर-संचारी रोगों का जोखिम बढ़ जाता है।

2013 में सरकार ने खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित किया। इसके तहत प्रतिमाह व्यक्ति को पांच किलोग्राम खाद्यन सब्सिडी दर पर देने की व्यवस्था की गई। यह सराहनीय बात है कि टीपीडीएस, एमजीएमआरईजीए, आईसीडीएस तथा एमडीएमएस जैसे अनेक राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों के स्तर से खाद्य और पौष्टिकता सुरक्षा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम पौष्टकिता संवेदी विषयों के समाधान के लिए हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से दी जाने वाली खाद्य सामग्रियों पर भी ध्यान दिया जा रहा है ताकि देश में कुपोषण की समस्या से निपटा जा सके।

सूखा, बाढ़ तथा महामारी जैसी आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए उच्च स्तरीय त्वरित व्यवस्था आवश्यक है इसलिए तेजी के साथ पौष्टिकता संबंधी डाटा को एकत्रित करने की आवश्यकता है (अभी 5-7 वर्षों में डाटा एकत्रित किए जाते है) अधिक तेजी से डाटा एकत्रित करने से पौष्टिकता संबंधी बदली आवश्यकताओं की जानकारी मिलेगी और पौष्टिकता संबंधी उपायों का प्रभाव भी दिखेगा। राष्ट्रीय पौष्टिकता रणनीति इस तरह बनाई गई है ताकि अल्पपोषित को सर्वोच्च प्राथमिकता मिले। भारत की पौष्टिकता संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक कार्यवाई की जरूरत है ताकि तेजी से लिंग संवेदी समावेशी और सतत विकास सुनिश्चित हो सके।

  • पौष्टिकता दोधारी तलवार है- अल्प और अधिक पौष्टिकता हानिकर है…….
  • ……अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी नियमित शारीरिक सक्रियता के साथ अधिकतम पौष्टिकता है।
  • डॉ. संतोष जैन पासी- सार्वजनिक स्वास्थ्य पौष्टिकता परामर्शदाता, हॉम इकोनॉमिक्स इंस्टीट्यूट दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक।
  • अकांक्षा जैन- पीएचडी शोधकर्ता- सार्वजनिक स्वास्थ्य और पौष्टिकता के क्षेत्र में कार्यरत।ई है, तथा पर्यावरण संरक्षण को भी बल मिला है।

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