किन्नौर में मनाया जाता है फूलों का त्यौहार "फुलैच उत्सव"

किन्नौर का “फुलैच उत्सव” यानि फूलों का त्यौहार

  • भादों के उतरार्द्ध में किन्नौर में मनाया जाता है “फुलैच उत्सव”

  • फूलों का त्यौहार है फुलैच

भादों के उतरार्द्ध में किन्नौर में मनाया जाता है "फुलैच उत्सव"

भादों के उतरार्द्ध में किन्नौर में मनाया जाता है “फुलैच उत्सव”

फुलैच वास्तव में फूलों का त्यौहार है जो कि भादों के उतरार्द्ध में अथवा आसुज के प्रारम्भ में मनाया जाता है। यह उत्सव केवल किन्नौर में मनाया जाता है और विभिन्न तिथियों को मनाया जाता है। इसे उख्यांग भी कहा जाता है जो कि वास्तव में दो शब्दों से मिलकर बना है उ और ख्यांग। उ का अर्थ है फूल और ख्यांग का अर्थ है फूल की ओर देखना। जिसका अर्थ है फूलों की ओर देखने का आनन्द।

  • लोग गांव के निकट की सभी चोटियों पर मनाते हैं इस त्यौहार को उत्सव से पूर्व प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति पहाड़ों पर जाता है फूल इक्कठे करने के लिए सामान्यत: गांव के निकट की सभी चोटियों पर लोग इस त्यौहार

ग्राम देवता को पहनाए जाते हैं पर्वतों से लाए गए फूल और मालाएं

ग्राम देवता को पहनाए जाते हैं पर्वतों से लाए गए फूल और मालाएं

को मनाते हैं। उत्सव के एक या दो दिन पूर्व प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति फूल इक्कठे करने के लिए पहाड़ों पर जाता है। दूसरे दिन गांव के सारे लोग गांव की चौपाल में इक्ट्ठे होते हैं।

  • ग्राम देवता को पहनाए जाते हैं पर्वतों से लाए गए फूल और मालाएं

ग्राम देवता को मंदिर से बाहर लाया जाता है। पर्वतों से लाए गए फूल और फूलों की मालाएं ग्राम देवता को पहनाई जाती हैं। बाद में ये हार लोगों में बांट दिए जाते हैं। इस अवसर पर पुजारी भविष्यवाणी करता है और ऋतु परिवर्तन व होने वाली फसल के विषय में बताता है। लोग फूलों को अपने-अपने घर ले जाते हैं।

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